चलती औसत तुलना

ये 3 निफ्टी पीएसयू एफडी ब्याज की तुलना में अधिक लाभांश का भुगतान करते हैं
कई निवेशक उच्च डिविडेंड-भुगतान करने वाली कंपनियों को उसी निवेश की संभावित पूंजी प्रशंसा के ऊपर और ऊपर नकदी प्रवाह की एक नियमित धारा के रूप में पसंद करते हैं जिसका हमेशा स्वागत किया जाता है। हालांकि, ऐसी कंपनियों के लिए स्क्रीनिंग करते समय निवेशक अक्सर असाधारण रूप से उच्च डिविडेंड यील्ड के शिकार हो जाते हैं।
हालांकि एक डिविडेंड पोर्टफोलियो को क्यूरेट करते समय एक अच्छा डिविडेंड यील्ड एक महत्वपूर्ण मानदंड होना चाहिए, निवेशकों को व्यवसाय के मूल सिद्धांतों को भी देखना चाहिए। लंबे समय में टिकाऊ नहीं होने पर उच्च डिविडेंड का क्या मतलब है? खैर, कई अत्यधिक प्रतिफल या तो एकमुश्त अप्रत्याशित लाभ या कंपनी के शेयर की कीमत में भारी गिरावट के कारण होते हैं, जो आमतौर पर स्मॉल कैप और कभी-कभी मिड-कैप के मामले में होता है।
इसलिए, लार्ज-कैप स्पेस से ऐसे शेयरों की तलाश करना हमेशा पसंद किया जाता है, क्योंकि इन ब्लू चिप्स में उच्च डिविडेंड भुगतान को बनाए रखने के लिए उनके संचालन, मजबूत वित्तीय, योग्य प्रबंधन आदि में उच्च स्थिरता होती है। इसलिए, हमने तीन कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया है जो कम से कम सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज को सीएमपी पर 6% + डिविडेंड के साथ हरा रही हैं, लेकिन बाजार पूंजीकरण के मामले में देश की शीर्ष 50 कंपनियों में भी शामिल हैं।
पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
गुरुग्राम स्थित पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NS: PGRD ) एक इकाई है जो भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के अधीन आती है। पावर ग्रिड निफ्टी 50 इंडेक्स से सबसे ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनी है, जो वर्तमान में 11.01% की डिविडेंड उपज पर कारोबार कर रही है।
कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1,56,808 करोड़ रुपये है, जो इसे भारत की 31वीं सबसे बड़ी कंपनी बनाती है। पिछले एक साल में पावर ग्रिड के शेयरों में 26.98% की तेजी आई है। टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (NS: TTPW ) और टोरेंट पावर लिमिटेड (NS: TOPO ) जैसे प्रतिस्पर्धी, दोनों ही 40 से अधिक के पी/ई अनुपात पर कारोबार कर रहे हैं। पावर ग्रिड 10 से कम के पी/ई अनुपात पर ट्रेड करता है, जो इसे साथियों के मुकाबले अत्यधिक आकर्षक बनाता है।
कोल इंडिया लिमिटेड
कोल इंडिया लिमिटेड (NS: COAL ) सूची में एक अन्य सरकारी स्वामित्व वाली संस्था है और यह भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के अंतर्गत आती है। कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1,20,080 करोड़ रुपये है, जो इसे देश का 41वां सबसे बड़ा निगम बनाता है।
कोल इंडिया के शेयर 8.72% के आकर्षक डिविडेंड यील्ड पर कारोबार कर रहे हैं और कोयले की बढ़ती कीमतों के कारण पिछली कुछ तिमाहियों में इसमें काफी तेजी आई है। पिछले एक साल में स्टॉक 24.7% ऊपर है, निफ्टी 50 इंडेक्स के मुकाबले एक महत्वपूर्ण आउटपरफॉर्मेंस जो इसी अवधि में केवल 5.19% है।
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NS: ONGC ) के शेयर सूची में अंतिम हैं, लेकिन कम आकर्षक नहीं हैं, खासकर डिविडेंड को देखते हुए। कंपनी INR 1,93,673 करोड़ बड़ी है, जो इसे देश की 28वीं सबसे बड़ी कंपनी बनाती चलती औसत तुलना है।
पिछले एक साल में 29.3% के स्वस्थ रिटर्न के बावजूद, स्टॉक अपने 6.82% डिविडेंड यील्ड के साथ डिविडेंड प्रेमियों को भी प्रभावित कर रहा है जो कि उद्योग के औसत 1.6% से काफी अधिक है। नैचुरल गैस फ्यूचर्स की आसमान छूती कीमत, जो आज एमसीएक्स पर अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है, भी स्टॉक को गति देने में मदद कर रही है।
Covid का आर्थिक प्रभाव भारत के कृषि प्रधान राज्यों की तुलना में औद्योगिक राज्यों पर ज्यादा रहा : RBI
RBI के अर्थशास्त्रियों का एक नया पेपर, आवाजाही से प्रभावित संकट के समय में अपनी नीतियों को तैयार करने और लागू करने वाले राज्यों के महत्व को रेखांकित करता है.
पंजाब के लुधियाना में पीपीई बनाने वाले कारखाने के कर्मचारियों की प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो: उर्जिता भारद्वाज | दिप्रिंट
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अर्थशास्त्रियों के एक अध्ययन से पता चलता है कि कोविड के समय लगाए गए प्रतिबंधों ने उद्योग और सेवाओं की उच्च हिस्सेदारी वाले राज्यों की आर्थिक गतिविधियों को कृषि और खनन पर अधिक भरोसा करने वाले राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाया है.
आरबीआई के मासिक बुलेटिन में पिछले शुक्रवार को प्रकाशित ‘इम्पैक्ट ऑफ कोविड -19 ऑन इकोनॉमिक एक्टिविटी अक्रॉस इंडियन स्टेट्स’ शीर्षक वाले पेपर को बैंक के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के सुधांशु गोयल, आकाश कोवुरी और रमेश गोलेत ने लिखा था. उन्होंने बताया कि आवाजाही पर रोक लगाने वाली नीतियां – यहां लॉकडाउन- कृषि गतिविधियों को उतना बाधित नहीं कर पाईं, जितना उन्होंने औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों को किया था.
महामारी के दो सालों में 18 राज्यों पर महामारी के ‘डिफरेंशियल इम्पैक्ट’ के बारे में अध्ययन के निष्कर्षों ने आवाजाही से प्रभावित संकट के समय में राज्य की आर्थिक संरचना के आधार पर अपनी नीतियों को तैयार करने और उन्हें लागू करने वाले राज्यों के महत्व को रेखांकित किया है.
संक्षेप में लेखकों ने संकेत दिया कि वन-साइज-फिट्स-ऑल यानी सभी के लिए एक जैसी नीतियां देश की आर्थिक सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं.
लेखकों ने लिखा, ‘राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बेहतर जानकारी और समन्वित नीतिगत निर्णयों से इस तरह के बड़े संकट के दौरान आर्थिक गतिविधियों को कम से कम नुकसान पहुंचेगा.’ उन्होंने कहा कि इससे रिकवरी भी तेज होगी.
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‘आर्थिक गतिविधि’ को कैसे मापा गया?
राज्यों के ‘विविध आर्थिक प्रक्षेपवक्र’ को मापने के लिए लेखकों ने माल और सेवा कर (जीएसटी), बिजली उत्पादन, रोजगार दर, निर्यात, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग और पीएम जन धन योजना के तहत खातों में जमा सहित आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न संकेतकों को शामिल करते हुए एक इंडेक्स तैयार किया था.
लेखकों ने अलग-अलग संदर्भों के अध्ययन के लिए 18 राज्यों में दो साल – मार्च 2020 से फरवरी 2022 तक– हुई गतिविधियों का इस्तेमाल किया, जिनका डेटा पूरी तरह से उपलब्ध था और जिनकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 93 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
लेखकों के मुताबिक, इस सूचकांक का सकारात्मक रहना औसत से अधिक आर्थिक गतिविधियों को दर्शाता है और सूचकांक का नकारात्मक होना इसके उलट है.
आर्थिक गतिविधि सूचकांक बताता है कि अप्रैल-मई 2020 में लगा पहला और सबसे सख्त लॉकडाउन, भारत की आर्थिक गतिविधियों के लिए सबसे मुश्किल समय था.
अप्रैल 2020 में 18 राज्यों के लिए औसत आर्थिक गतिविधि सूचकांक स्कोर -2.1 था और उस साल दिसंबर तक यह नकारात्मक रहा.
जब मई 2021 में देश में महामारी की दूसरी लहर आई, तो 18 राज्यों का औसत सकारात्मक था – लगभग – 0.005. हालांकि इस समय में बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा को छोड़कर अधिकांश राज्यों का औसत नकारात्मक था.
जनवरी-फरवरी 2022 में जब तक ओमिक्रॉन वेरिएंट आया, तब तक आर्थिक गतिविधि सूचकांक सभी राज्यों के लिए सकारात्मक बना रहा. इसका मतलब था कि वे इस प्रभाव का सामना करने में सक्षम थे, हालांकि सफलता की दर सबके लिए अलग-अलग थी.
इस साल फरवरी में औसत स्कोर 0.8 था. कर्नाटक (1.49), बिहार (1.29), ओडिशा (1.28), राजस्थान (1.16), उत्तर प्रदेश (1.09), झारखंड (0.9) हरियाणा (0.89) और गुजरात (0.83) राष्ट्रीय औसत से ऊपर बने रहे. इस समय सूचकांक में सबसे कम स्कोर करने वाले राज्य असम (0.26), केरल (0.34) और तमिलनाडु (0.43) थे.
आंकड़े दर्शाते हैं कि लंबे समय तक लगे प्रतिबंधों ने कुछ राज्यों की आर्थिक गतिविधियों को दूसरों की तुलना में ज्यादा प्रभावित किया था. हालांकि कुछ राज्यों ने निरंतर प्रतिबंधों के बावजूद तेजी से वापसी की. वहीं दूसरे राज्यों को अपने पैर जमाने में काफी समय लग गया.
कोविड ने राज्यों को अलग-अलग तरह से क्यों प्रभावित किया?
यह समझने के लिए कि कोविड -19 प्रतिबंधों का प्रभाव राज्यों पर अलग-अलग कैसे रहा, लेखकों ने उस समय किस तरह की आर्थिक गतिविधियां चल रहीं थी, उसको आवाजाही से जोड़कर देखने का प्रयास किया.
इसके लिए उन्होंने दो चीजों का हिसाब लगाया.
उसमें से एक थी, उस दौरान होने वाली आवाजाही यानी कितने लोग घरों से बाहर निकल रहे थे. इसके लिए उन्होंने Google की कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट के डेटा का इस्तेमाल किया था. कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट अलग-अलग जगहों पर मसलन स्टोर, पार्क, कार्यस्थल, आदि में लोगों की आवाजाही को चार्ट बनाकर रिपोर्ट तैयार करती है. दूसरा थी, राज्य को होने वाली आय में विभिन्न क्षेत्रों का योगदान.
विश्लेषण से पता चला कि आवाजाही ने कृषि गतिविधियों को ज्यादा प्रभावित नहीं किया था. इसका मतलब यह है कि आवाजाही पर लगी रोक से कृषि गतिविधियों को प्रभावित करने की संभावना कम है. अखबार ने कहा कि कृषि क्षेत्र के भीतर, वानिकी और लॉगिंग में शामिल लोगों पर प्रभाव सबसे कम था.
रिपोर्ट के अनुसार, आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के बीच संबंध काफी गहरा था. जिसका अर्थ है कि आवाजाही पर लगाए गए ज्यादा प्रतिबंध, आर्थिक गतिविधियों को कम कर देते हैं. इसने उन राज्यों पर सबसे ज्यादा असर डाला, जिनकी मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में हिस्सेदारी काफी ज्यादा है.
पेपर के मुताबिक, खनन और उत्खनन की हिस्सेदारी पर भी आवाजाही पर लगी रोक का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. और इसलिए प्रतिबंध लगाने की नीति ने इस तरह की इंडस्ट्री पर ज्यादा असर नहीं डाला.
सेवा क्षेत्र के मामले में आंकड़े बताते हैं कि आवाजाही पर लगे प्रतिबंध का असर उन राज्यों पर सबसे ज्यादा पड़ा, जो लोगों के संपर्क में आकर दी जाने वाली सेवाओं पर काफी निर्भर थे, जैसे व्यापार, होटल और ट्रांसपोर्ट.
लेखकों के अनुसार, भारत में अगली बार आपातकाल के उस समय में, जब आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाना हो, तो इन निष्कर्षों का इस्तेमाल अपनाए जाने वाले उपायों में किया जा सकता है.
लेखकों ने लिखा, चलती औसत तुलना ‘उप-क्षेत्रीय स्तर और आर्थिक संरचना पर इस तरह के बारीक विश्लेषण राष्ट्रीय नीति बनाते समय अपने आर्थिक ढांचे के आधार पर राज्यों द्वारा एक अलग नीति प्रतिक्रिया की जरूरत और महत्व पर जोर देते हैं.चलती औसत तुलना ’ उन्होंने कहा, यह ‘आर्थिक विकास के पहिये’ को ‘बड़े आर्थिक रुकावटों के बाद तेजी से ठीक होने’ में मदद करेगा.
यह विश्लेषण अर्थशास्त्रियों के निजी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है और इसे आरबीआई के आधिकारिक बयान के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
अहमदाबाद में कोरोना से मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से अधिक
अहमदाबाद के नगर आयुक्त विजय नेहरा ने सोमवार को कहा कि मृत्यु दर को कम करने के लिए लोगों को वरिष्ठ नागरिकों की अतिरिक्त देखभाल करने की आवश्यकता है क्योंकि उनके अन्य की तुलना में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है।
गुजरात सरकार के आंकड़ों के अनुसार अहमदाबाद में कोरोना वायरस के अब तक 2,167 मामले सामने आए हैं। इनमें से 102 मरीजों की मौत हो चुकी है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि शहर में कोविड-19 की मृत्यु दर 4.71 प्रतिशत है जो नई दिल्ली और मुंबई तथा राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
दिल्ली में कुल 2,919 मामलों में से कोविड-19 के 54 मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है। इससे पता चलता है कि मृत्यु दर 1.85 प्रतिशत है। मुंबई में, मृत्यु दर 3.77 प्रतिशत है क्योंकि अभी तक कुल 5,407 मामलों में से 204 मरीजों की मृत्यु हुई है। इसके अलावा, देश में कोरोना वायरस के कुल 26,917 मामले सामने आए हैं। इनमें से 826 मरीजों की मौत हुई है, जिससे मृत्यु दर 3.07 प्रतिशत होने का पता चलता है।
अहमदाबाद में मृत्यु दर गुजरात की तुलना में भी अधिक है, जहां कोविड-19 के कुल 3,301 मामलों में से 151 मरीजों या 4.57 प्रतिशत मरीजों की मृत्यु हुई है। नेहरा ने कहा कि मृत्यु दर को कम करने का सबसे अच्छा तरीका वरिष्ठ नागरिकों की अतिरिक्त देखभाल करना है क्योंकि उनके अन्य की तुलना में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है।
उन्होंने कहा, 'मैं लोगों से वरिष्ठ नागरिकों, विशेष रूप से उन लोगों की देखभाल करने का आग्रह करता हूं, जो किसी न किसी तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। यह मृत्यु दर नीचे लाने के लिए जरूरी है। ऐसे नागरिकों को स्थिति में सुधार होने तक परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दूरी बनाए रखने, मास्क लगाने और अपने घरों से बाहर नहीं निकलना चाहिए।'
इस बीच, प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) जयंती रवि ने कहा कि गुजरात सरकार संक्रमण से अधिक प्रभावित क्षेत्र (हॉटस्पॉट) अहमदाबाद में कोविड-19 के ऐसे 75 रोगियों को आयुर्वेदिक उपचार देगी जिनमें कोरोना वायरस के कोई लक्षण नहीं हैं। ऐसा आयुष इलाज के तहत 'उनके ठीक होने की अवधि' देखने के लिए किया जाएगा।
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने कहा कि राज्य आयुष विभाग ने गुजरात में 1.26 करोड़ से अधिक लोगों को एक आयुर्वेदिक दवा मुफ्त में वितरित की थी। इसका उद्देश्य उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना था। उन्होंने कहा, 'पृथक-वास में रखे गए 7,778 लोगों को आयुर्वेदिक दवा दी गई और उनमें से केवल 21 कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गए।'
ऐसे में जब कोरोना वायरस से अहमदाबाद में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है, शहर में ऐसे रोगियों की मृत्यु दर 4.71 प्रतिशत है, जो देश के कुछ प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
अहमदाबाद के नगर आयुक्त विजय नेहरा ने सोमवार को कहा कि मृत्यु दर को कम करने के लिए लोगों को वरिष्ठ नागरिकों की अतिरिक्त देखभाल करने की आवश्यकता है क्योंकि उनके अन्य की तुलना में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है।
गुजरात सरकार के आंकड़ों के अनुसार अहमदाबाद में कोरोना वायरस के अब तक 2,167 मामले सामने आए हैं। इनमें से 102 मरीजों की मौत हो चुकी है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि शहर में कोविड-19 की मृत्यु दर 4.71 प्रतिशत है जो नई दिल्ली और मुंबई तथा राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
दिल्ली में कुल 2,919 मामलों में से कोविड-19 के 54 मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है। इससे पता चलता है कि मृत्यु दर 1.85 प्रतिशत है। मुंबई में, मृत्यु दर 3.77 प्रतिशत है क्योंकि अभी तक कुल 5,407 मामलों में से 204 मरीजों की मृत्यु हुई है। इसके अलावा, देश में कोरोना वायरस के कुल 26,917 मामले सामने आए हैं। इनमें से 826 मरीजों की मौत हुई है, जिससे मृत्यु दर 3.07 प्रतिशत होने का पता चलता है।
अहमदाबाद में मृत्यु दर गुजरात की तुलना में भी अधिक है, जहां कोविड-19 के कुल 3,301 मामलों में से 151 मरीजों या 4.57 प्रतिशत मरीजों की मृत्यु हुई है। नेहरा ने कहा कि मृत्यु दर को कम करने का सबसे अच्छा तरीका वरिष्ठ नागरिकों की अतिरिक्त देखभाल करना है क्योंकि उनके अन्य की तुलना में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है।
उन्होंने कहा, 'मैं लोगों से वरिष्ठ नागरिकों, विशेष रूप से उन लोगों की देखभाल करने का आग्रह करता हूं, जो किसी न किसी तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। यह मृत्यु दर नीचे लाने के लिए जरूरी है। ऐसे नागरिकों को स्थिति में सुधार होने तक परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दूरी बनाए रखने, मास्क लगाने और अपने घरों से बाहर नहीं निकलना चाहिए।'
इस बीच, प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) जयंती रवि ने कहा कि गुजरात सरकार संक्रमण से अधिक प्रभावित क्षेत्र (हॉटस्पॉट) अहमदाबाद में कोविड-19 के ऐसे 75 रोगियों को आयुर्वेदिक उपचार देगी जिनमें कोरोना वायरस के कोई लक्षण नहीं हैं। ऐसा आयुष इलाज के तहत 'उनके ठीक होने की अवधि' देखने के लिए किया जाएगा।
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने कहा कि राज्य आयुष विभाग ने गुजरात में 1.26 करोड़ से अधिक लोगों को एक आयुर्वेदिक दवा मुफ्त में वितरित की थी। इसका उद्देश्य उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना था। उन्होंने कहा, 'पृथक-वास में रखे गए 7,778 लोगों को आयुर्वेदिक दवा दी गई और उनमें से केवल 21 कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गए।'
भारत के पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट पर अधिक बारिश क्यों होती है?
वर्षा के वितरण में स्थलाकृति और हवा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। घाट का अर्थ नदी किनारे बनी सीढ़ियाँ या पर्वतीय दर्रा होता है। भारत में प्रायद्वीप के दक्कन के पठार के दोनों किनारों पर बने पर्वतों को भी पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट कहते हैं। इस लेख में हमने, सामान्य जागरूकता के लिए भारत के पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट पर अधिक बारिश होने के कारण बताया हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
वर्षा के वितरण में स्थलाकृति और हवा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। घाट का अर्थ नदी किनारे बनी सीढ़ियाँ या पर्वतीय दर्रा होता है। भारत में प्रायद्वीप के दक्कन के पठार के दोनों किनारों पर बने पर्वतों को भी पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट कहते हैं। क्यों भारत के पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट पर अधिक बारिश होती है, यह जानने से पहले हमे ये जानना जरुरी है "पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट क्या हैं?"
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत शृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं। दक्कनी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ-साथ यह पर्वतीय शृंखला उत्तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लम्बी है। विश्व में जैविकीय विवधता के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्व में इसका 8वां स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्त हो जाती है। वर्ष 2012 में यूनेस्को ने पश्चिमी घाट क्षेत्र के 39 स्थानों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। यहाँ की पहाड़ियों का कुल क्षेत्र 160,000 वर्ग किलोमीटर है और औसत उंचाई लगभग 1200 मीटर (3900 फीट) है।
पूर्वी घाट
पूर्वी घाट का विस्तार पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश से तमिलनाडु तक हैं। पूर्वी घाट की पहाड़ियों के मध्य से प्रायद्वीपीय भारत की चार प्रमुख नदिया होकर जाती हैं, जिसे गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी नाम से जाना जाता है। पूर्वी घाट पर्वत श्रृंखला बंगाल की खाड़ी के समांतर चलती है। दक्कन पठार, पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट के बीच, सीमा के पश्चिम में स्थित है। कोरोमंडल तट क्षेत्र सहित तटीय मैदानों, पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। पूर्वी घाट पश्चिमी घाट के अपेक्षा ज्यादा ऊचा नहीं है।
भारत के पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट पर अधिक बारिश क्यों होती है?
क्या कारण है की भारत के पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट पर अधिक बारिश होती है, इस पर नीचे चर्चा की गई है:
1. अरब सागर की हवा जब 900-1200 मीटर की ऊचाई वाली पश्चिमी घाट की ढलानों पर चढ़ती हैं लेकिन जल्दी ही वो शांत जाती है और नतीजतन, पश्चिमी घाट पर 250 सेमी और 400 सेमी के बीच भारी भारी वर्षा होती है। जब ये हवा पूर्वी घाट की तरफ तो इनकी शक्ति और आर्द्रता कम हो जाती है जिसके वजह से यहाँ कम बारिश होती है।
2. पश्चिमी घाट बारिश करने वाली हवाओं को अपने पश्चिमी ढलानों से रोकता है जिसके वजह से यहाँ भारी वर्षा होती है। जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसून पूर्वी घाट के समानांतर चलते हुए निकल जाती है क्युकी यहाँ नमी से भरपूर हवाओं को अवरुद्ध करने वाले ऊँचे-ऊँचे ढलान नहीं हैं।
3. पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की अरब सागर शाखा के बारिश से भरे क्षेत्र में स्थित है, जबकि पूर्वी घाट दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की अरब सागर शाखा के बारिश छाया क्षेत्र में स्थित है।
Source: google image
4. पश्चिमी घाट में एक सभ्य ढलान है जो सूरज की रोशनी अवशोषण के लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करता है जबकि पूर्वी घाट पर विषम ढलान है।
शहरी मतदाताओं में उदासीनता एक बार फिर आयी सामने
हिमाचल प्रदेश में 12 चलती औसत तुलना नवंबर के विधानसभा चुनाव के दौरान हालांकि, रिकॉर्ड 75.6 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, लेकिन पर्वतीय राज्य के शहरी मतदाताओं की उदासीनता एक बार फिर सामने आयी। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि शिमला में 62.53 प्रतिशत मतदान न केवल राज्य में सबसे कम था, बल्कि 2017 के चुनावों की तुलना में भी 1.4 प्रतिशत कम है। सरकारी कॉलोनियों सहित शहरी शिमला के महत्वपूर्ण इलाकों में लगभग 50 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया जो सबसे कम मतदान प्रतिशत में से एक है। इससे शिमला विधानसभा सीट का मतदान प्रतिशत राज्य में सबसे कम रहा। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि हालांकि 75.6 प्रतिशत मतदान राज्य का अब तक का सबसे अधिक मतदान है लेकिन शहरी क्षेत्रों से अधिक भागीदारी से बेहतर मतदान प्राप्त करने में मदद मिल सकती थी। इसके अलावा, महत्वपूर्ण शहरी क्षेत्रों में औसत मतदान ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत कम था। अधिकारियों ने कहा कि यदि शिमला, सोलन, कसुम्प्टी और धर्मशाला के कुछ वर्ग के मतदाता यदि इस बार समान उत्साह के साथ घरों से बाहर निकलते तो मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड बहुत अधिक हो सकता था। आंकड़ों से पता चलता है कि महिला मतदाताओं का मतदान पुरुष मतदाताओं की तुलना में लगभग 4.5 प्रतिशत अधिक था और कुल मतदान प्रतिशत की तुलना में लगभग दो प्रतिशत अधिक था। जहां 76.8 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, वहीं केवल 72.4 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया।