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चलती औसत तुलना

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सागर में बारिश के सीजन का कोटा पूरा: सामान्य बारिश की तुलना में 101% हुई बारिश, नालों में उफान आने से सड़क और घरों में भरा पानी

बारिश का सीजन शुरू होने और मानसून की दस्तक के बाद से ही सागर में मानसून मेहरबान रहा है। जिले में लगातार बारिश हो रही है। जिससे बारिश के इस सीजन का कोटा पूरा हो गया है। जिले की सामान्य बारिश 1230.5 मिमी है। जिसकी तुलना में अब तक 1254.4 मिमी औसत बारिश हो चुकी है। यानी जिले में बारिश के इस सीजन में सामान्य बारिश की तुलना में 101 प्रतिशत बारिश हो चुकी है। अभी बारिश के सीजन के 15 दिन बाकी हैं। सागर में मंगलवार से शुरू हुई बारिश बुधवार को भी जारी रही। बुधवार सुबह से रुक-रुककर चलती औसत तुलना चलती औसत तुलना बारिश का सिलसिला चलता रहा।

बारिश से शहर के नालों में उफान आई। मधुकरशाह वार्ड, यादव कॉलोनी क्षेत्र में नाले का पानी घरों में घुस गया। अंबेडकर वार्ड में सड़कों पर जलजमाव की स्थिति बनीं। जिससे लोग परेशान हुए। मौसम विभाग के अनुसार सिस्टम सक्रिय होने और बंगाल की खाड़ी के अलावा अरब सागर से नमी मिल रही है। इस कारण से सागर समेत मप्र में रुक-रुककर बारिश हाे रही है। सागर जिले के कुछ स्थानों पर आगामी 24 घंटों में गरज-चमक के साथ बारिश होने की संभावना है। 18 सितंबर काे बंगाल की खाड़ी में एक और चलती औसत तुलना चलती औसत तुलना कम दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है।

नाले में उफान आने से मधुकरशाह वार्ड के घरों में भरा पानी।

पिछले साल की तुलना में इस वर्ष 462 मिमी अधिक हुई औसत बारिश
सागर जिले में लगातार बारिश हो रही है। बारिश के सीजन के 15 दिन शेष है। लेकिन अभी भी जिले में बारिश की संभावना मौसम विभाग ने जताई है। जिससे इस वर्ष जिले में सामान्य से अधिक बारिश होगी। 1 जून से अब तक सागर जिले में 1254.4 मिमी सामान्य बारिश हो चुकी है। जबकि पिछले वर्ष 14 सितंबर तक जिले में 792.5 मिमी औसत बारिश दर्ज की गई थी। इस प्रकार पिछले साल की तुलना में इस वर्ष जिले में 462 मिमी यानी 53 प्रतिशत अधिक औसत बारिश हुई है।

बारिश के पानी से नाले हुए चोक, सड़कों पर जमा हुआ पानी।

सबसे ज्यादा केसली ब्लाक में हुई बारिश
बारिश के इस सीजन में सबसे ज्यादा बारिश केसली क्षेत्र में 1491 मिमी दर्ज की गई है। वहीं सबसे कम शाहगढ़ में 860 मिमी बारिश हुई है। इसके अलावा सागर में 1126, जैसीनगर में 1468, राहतगढ़ में 1355, बीना में 1473, खुरई में 1193, मालथौन में 1123, बंडा में 889, गढ़ाकोटा में 1236, रहली में 1438 और देवरी में 1397 मिमी बारिश दर्ज की गई है।

अहमदाबाद में कोविड-19 से मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से अधिक

अहमदाबाद, 27 अप्रैल (भाषा) ऐसे चलती औसत तुलना में जब कोरोना वायरस से अहमदाबाद में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है, शहर में ऐसे रोगियों की मृत्यु दर 4.71 प्रतिशत है, जो देश के कुछ प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय औसत से अधिक है।अहमदाबाद के नगर आयुक्त विजय नेहरा ने सोमवार को कहा कि मृत्यु दर को कम करने के लिए लोगों को वरिष्ठ नागरिकों की अतिरिक्त देखभाल करने की आवश्यकता है क्योंकि उनके अन्य की तुलना में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है।गुजरात सरकार के आंकड़ों के अनुसार अहमदाबाद में कोरोना वायरस के अब तक 2,167 मामले सामने

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Penis Size: क्या अमेरिकी पुरुषों की तुलना में भारतीय पुरुषों के पेनिस का आकार होता है बड़ा? जानें लेटेस्ट अध्ययन की रिपोर्ट

क्या लिंग का आकार मायने रखता है? यह एक बड़ा सवाल है जिसे कभी सुलझाया नहीं जा सकता, लेकिन जो तय किया जा सकता है वह दुनिया भर में औसत लिंग का आकार है और कम से कम इससे संबंधित शोध मौजूद हैं. हाल ही के एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय पुरुषों के लिंग अमेरिकी पुरुषों की तुलना में लंबे हो सकते है.

Penis Size: क्या अमेरिकी पुरुषों की तुलना में भारतीय पुरुषों के पेनिस का आकार होता है बड़ा? जानें लेटेस्ट अध्ययन की रिपोर्ट

Penis Size: क्या लिंग यानी पेनिस का आकार ( Penis Size)मायने रखता है? यह एक बड़ा सवाल है जिसे कभी सुलझाया नहीं जा सकता, दुनिया भर के पुरुषों के औसत लिंग के आकार को तय जरूर किया जा सकता है. पुरुषों के लिंग (Penis) के अकार से संबंधित कई शोध मौजूद हैं. इसी कड़ी में हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय पुरुषों (Indian Men) के लिंग अमेरिकी पुरुषों (American Men) की तुलना में बड़े हैं. अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय पुरुषों के लिंग की औसत लंबाई 5.40 इंच है, इसके बाद अमेरिकी पुरुष हैं जिनके लिंग की औसत लंबाई 5.35 इंच है. सबसे लंबा लिंग होने की दौड़ में हैती, फ्रेंच और ऑस्ट्रेलिया के पुरुष सबसे आगे हैं. अध्ययन के अनुसार, इन पुरुषों के लिंग सबसे बड़े होते हैं.

सर्वेक्षण के अनुसार, इक्वाडोर (Ecuador) के पुरुषों के लिंग आकार सबसे बड़ा होता है, जिसकी औसतन लंबाई 6.93 इंच है, इसके बाद कैमरून (Cameroon) के पुरुष हैं जिनकी औसत लिंग लंबाई 5.56 है. बोलीविया (Bolivia) के पुरुष 6.50 की औसत लिंग लंबाई के साथ पंक्ति में तीसरे स्थान पर हैं. सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि सबसे छोटा लिंग कंबोडिया में पाया जा सकता है, जहां पुरुष के लिंग की लंबाई औसतन 3.95 इंच होती है. फ्रांसीसी पुरुषों के लिंग की लंबाई 6.20 इंच है, जबकि चलती औसत तुलना ऑस्ट्रेलिया 5.69 इंच के साथ 43वें स्थान पर है. हैती में पुरुषों के लिंग का आकार सीधा होने पर औसतन 6.30 इंच होता है. इन निष्कर्षों का खुलासा एक ऑनलाइन फ़ार्मेसी चलती औसत तुलना फ्रॉम मार्स (online pharmacy From Mars) द्वारा किया गया था. यह भी पढ़ें: Does Penis Size Matter: क्या सेक्स के लिए पेनिस साइज रखता है अत्यधिक महत्व? जानें इसके बारे में कैसी है महिलाओं की पसंद

दरअसल, हर जगह पुरुष इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि उनका लिंग उम्मीद से छोटा है या वे अपने पार्टनर को संतुष्ट कर पाएंगे या नहीं, लेकिन शोध से पता चला है कि ज्यादातर पुरुष अपने लिंग के आकार की वजह से खुद को कम आंकते हैं और उनके आत्मसम्मान को चोट लगती है. पुरुषों ने हमेशा अपने लिंग के आकार को बहुत महत्व दिया है. कई संस्कृतियां लिंग के आकार को मर्दानगी से जोड़ती हैं. कुछ पुरुष अपने लिंग का आकार बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपाय भी करते हैं.

ऑनलाइन फार्मेसी फ्रॉम मार्स के प्रवक्ता नवीन खोसला ने द सन से कहा कि ज्यादातर पुरुषों ने कभी न कभी सोचा है कि क्या उनका लिंग काफी बड़ा है. लिंग का आकार आत्मविश्वास और आत्म-छवि पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है. साल 2015 में करीब 15,000 पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, एक वयस्क लिंग का औसत आकार इस प्रकार बताया गया था- लंबाई: 13.12 सेमी (5.16 इंच) जब यह अपने पूरे आकार में होता है और जब इरेक्ट करता है तो इसकी लंबाई 11.66 सेमी (4.59 इंच) होती है.

एक रिपोर्ट के अनुसार लिंग के आकार को लेकर महिलाओं और पुरुषों की सोच में अंतर रखा गया. इसमें कहा गया, 85% महिलाएं अपने साथी के लिंग के आकार से संतुष्ट थीं, जबकि पुरुषों का अपने लिंग के आकार से संतुष्ट होने का प्रतिशत 55% था.

भारतीयों से 8 साल ज्यादा जीते हैं चीनी लोग, जानें आखिर कैसे पिछड़ गया भारत?

चीन की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वहां के लोगों की औसत उम्र बढ़कर 77.9 साल हो गई है. जबकि, हाल ही में भारत ने जो आंकड़े दिए थे, वो बताते हैं कि यहां औसत उम्र 69.7 साल है. लेकिन इस मामले में चीन से कैसे पिछड़ गया है भारत? समझें.

चीन के लोगों की औसत उम्र 77 साल से ज्यादा है. (फाइल फोटो-AP/PTI)

प्रियंक द्विवेदी

  • नई दिल्ली,
  • 06 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 06 जुलाई 2022, 4:47 PM IST)
  • चीन में हेल्थ को लेकर जागरूकता बढ़ रही
  • भारतीयों से ज्यादा पैदल चलते हैं चीनी लोग
  • फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने पर चीन का जोर

भारत और चीन. दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देश. इन दोनों देशों में दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी रहती है. दोनों पड़ोसी भी हैं. लेकिन इन दोनों देशों में रहने वाले लोगों की औसत आयु में 8 साल से ज्यादा का अंतर है. चीन के लोग जहां 77 साल से भी ज्यादा जीते हैं, तो वहीं भारतीयों की औसत उम्र 70 साल से भी कम है.

चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन (NHC) ने मंगलवार को लाइफ एक्सपेक्टेंसी यानी जीवन प्रत्याशा का आंकड़ा दिया है. जीवन प्रत्याशा से पता चलता है कि उस देश के लोगों की औसत उम्र क्या होगी? यानी, कोई व्यक्ति कितने लंबा जीवन जी सकता है?

एनएचसी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, चीनी नागरिकों की औसत उम्र बढ़कर 77.9 हो गई है. यानी, वहां के लोग औसतन 77 साल 9 महीने जीते हैं.

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1949 में जब वहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन शुरू हुआ था, तब चीन के लोगों की औसत उम्र 35 साल थी. वहीं, भारत जब आजाद हुआ था तो यहां के लोगों की औसत आयु 32 साल थी. हाल ही में सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि भारतीयों की औसत उम्र बढ़कर 69.7 साल हो गई है. लिहाजा, चीन के लोग भारतीयों से लगभग 8 साल ज्यादा जीते हैं.

लेकिन, चीन ने ऐसा कैसे कर दिया?

- एनएचसी में प्लानिंग डिपार्टमेंट के डायरेक्टर माओ कुनान ने स्थानीय मीडिया को बताया कि चीन के लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जानकारी बढ़ रही है, वो अच्छी डाइट ले रहे हैं, फिटनेस प्रोग्राम में हिस्सा ले रहे हैं और साथ ही मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान दे रहे हैं.

- माओ ने दावा किया है कि चीनी नागरिकों में हेल्थ लिटरेसी लेवल बढ़कर 25.4% हो गया है. उन्होंने दावा किया कि हार्ट और ब्रेन से जुड़ी बीमारियों, कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियों को नियंत्रित किया गया है.

- माओ का दावा है कि 2020 में 37.2% आबादी चलती औसत तुलना ने नियमित रूप से फिजिकल एक्सरसाइज में हिस्सा लिया था. ये आंकड़ा 2014 की तुलना में 3% ज्यादा था. इसके अलावा 2022 में नेशनल फिजिकल फिटनेस टेस्ट का पासिंग रेट भी 90.4% पर आ गया है.

- चीनी सरकार से जुड़े अधिकारी गाओ युआन्यी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि चीन में एक्सरजाइज फैसेलिटीज पहले से ज्यादा बढ़ गई है. एक व्यक्ति के पास एक्सरसाइज करने के लिए करीब ढाई वर्ग मीटर की जगह है.

2025 तक औसत उम्र 78.3 साल पहुंचाने का टारगेट

चीन ने 2025 तक औसत उम्र को 78.3 साल तक पहुंचाने का टारगेट रखा है. इसके तहत 2025 तक बुजुर्गों के लिए नर्सिंग होम में 1 करोड़ बेड बनाए जाएंगे. 2025 तक सभी शहरी इलाकों और रेसिडेंशियल कम्युनिटीज में बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी. साथ ही 95% बुजुर्गों का लाइफ इंश्योरेंस भी किया जाएगा. इन सबके अलावा हर व्यक्ति के लिए स्पोर्ट्स फैसेलिटी के लिए 2.6 वर्ग मीटर की जगह उपलब्ध कराने का टारगेट भी रखा गया है.

भारत कैसे पीछे रह गया?

- डॉक्टरों की कमीः भारत की जितनी आबादी है, उस हिसाब से उतने डॉक्टर नहीं हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में हर 10 हजार लोगों पर 11.7 डॉक्टर्स हैं. जबकि, वर्ल्ड बैंक का आंकड़ा बताता है कि चीन में हर 10 हजार आबादी 22 से ज्यादा डॉक्टर्स हैं.

- स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच नहींः 2018 में आई साइंस जर्नल लैंसेट की एक स्टडी बताती है कि भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं तक आसानी से पहुंच नहीं है. लैंसेट ने हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स में 195 देशों की लिस्ट में भारत को 145वें नंबर पर रखा था, जबकि चीन 48वें नंबर पर था. इस लिस्ट में भारत श्रीलंका (71), बांग्लादेश (133) और भूटान (134) से भी पीछे था.

- स्वास्थ्य पर खर्चः भारत में स्वास्थ्य पर होने वाला सरकारी खर्च भी काफी कम है. भारत में स्वास्थ्य में जीडीपी का 2.1% ही खर्च होता है, जबकि चीन 7% से ज्यादा खर्च करता है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2020 के मुताबिक, 2017-18 में देश में हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सालभर में होने वाला सरकारी खर्च मात्र 1,657 रुपये था. यानी हर दिन 5 रुपये से भी कम.

- आलसपनः चीनी लोगों की तुलना में भारतीय ज्यादा आलसी होते हैं. 2017 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी आई थी. इसके मुताबिक, भारतीय हर दिन औसतन 4,297 कदम चलते हैं, जबकि चीन के लोग हर दिन 6,880 कदम चलते हैं. ज्यादा लंबे समय तक बैठे रहने या कम चलने से दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे समय से पहले मौत हो जाती है.

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ग्रीनहाउस गैसों ने 1990 की तुलना में 2021 में 49 फीसदी अधिक बढ़ाई गर्मी: नोआ

नोआ की माप से पता चला है कि 2021 में सीओ2 की वैश्विक औसत सांद्रता 414.7 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) थी।

By Dayanidhi

On: Wednesday 25 May 2022

ग्रीनहाउस गैसों ने 1990 की तुलना में 2021 में 49 फीसदी अधिक बढ़ाई गर्मी: नोआ

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ) के वैज्ञानिकों के मुताबिक लोगों की गतिविधियों के कारण होने वाले ग्रीनहाउस गैस प्रदूषण ने 1990 की तुलना में 2021 में वातावरण में 49 फीसदी अधिक गर्मी को बढ़ाया।

नोआ का वार्षिक ग्रीनहाउस गैस इंडेक्स, जिसे एजीजीआई के नाम से जाना जाता है। यह कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और 16 अन्य रसायनों सहित गर्मी को बढ़ाने वाली गैसों के मानव उत्सर्जन के बढ़ते तापमान के प्रभाव में वृद्धि करता है।

वार्षिक ग्रीनहाउस गैस सूचकांक (एजीजीआई) जटिल वैज्ञानिक गणनाओं को परिवर्तित करता है कि ये गैसें एक ही संख्या में कितनी अतिरिक्त गर्मी को बढ़ा सकती है, जिसकी तुलना पिछले वर्षों से आसानी से की जा सकती है और परिवर्तन की दर पर नजर रखी जाती है।

एजीजीआई को 1990 में स्थापित किया गया था, यह साल क्योटो प्रोटोकॉल के लिए और साथ ही इस वर्ष जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने जलवायु परिवर्तन पर पहला वैज्ञानिक आकलन भी प्रकाशित किया गया था।

नोआ की ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी (जीएमएल) के कार्यवाहक निदेशक एरियल स्टीन ने कहा कि एजीजीआई हमें वह दर बताता है जिससे बढ़ते तापमान के बारे में जानकारी मिलती है। हमारी माप से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार प्रमुख गैसें तेजी से बढ़ रही हैं, जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान अधिक स्पष्ट हो जाता है। वैज्ञानिक निष्कर्षों से पता चलता है कि मनुष्य इस वृद्धि के लिए जिम्मेदार है।

2021 में एजीजीआई का स्तर 1.49 पर पहुंच गया, जिसका अर्थ है कि मानव-उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों ने 1990 की तुलना में वातावरण में 49 फीसदी अधिक गर्मी को बढ़ाया है। क्योंकि यह मुख्य रूप से दुनिया भर में एकत्र किए गए हवा के नमूनों में ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक सटीक माप पर आधारित है, लेकिन इसके परिणामों में थोड़ी अनिश्चितता होती है।

Source: NOAA

सबसे बड़ा अपराधी

कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) अब तक की सबसे प्रचुर मात्रा में मानव-उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस है। यातायात, विद्युत उत्पादन, सीमेंट निर्माण, वनों की कटाई, कृषि और कई अन्य तरीको से हर साल लगभग 36 बिलियन मीट्रिक टन सीओ 2 उत्सर्जित होती है। आज उत्सर्जित सीओ 2 का एक बड़ा हिस्सा वातावरण में 1,000 से अधिक वर्षों तक बना रहेगा।

नोआ की माप से पता चला है कि 2021 में सीओ 2 की वैश्विक औसत सांद्रता 414.7 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) थी। इस वर्ष के दौरान वार्षिक वृद्धि 2.6 पीपीएम थी, जो पिछले दशक की औसत वार्षिक वृद्धि के बारे में थी और 2000 से 2009 के दौरान मापी गई वृद्धि से बहुत अधिक थी।

1990 के बाद से सीओ 2 के स्तर में 61 पीपीएम की वृद्धि हुई है, जो उस वर्ष से एजीजीआई द्वारा ट्रैक की गई बढ़ी हुई गर्मी का 80 फीसदी हिस्सा है।

जीएमएल के वैज्ञानिक पीटर टैन्स ने कहा कि सीओ2 मुख्य रूप से जिम्मेवार है, क्योंकि यह हजारों वर्षों तक वातावरण और महासागरों में रहता है और यह बढ़ते तापमान के लिए अब तक का सबसे बड़ा अपराधी है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के किसी भी प्रयास में सीओ 2 प्रदूषण को खत्म करना सबसे पहले और केंद्र में होना चाहिए।

जलवायु वैज्ञानिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक यह है कि 2006 से दूसरी सबसे बड़ी ग्रीनहाउस गैस-मीथेन में तेज और निरंतर वृद्धि क्यों हो रही है।

वायुमंडलीय मीथेन या सीएच 4, का स्तर 2021 के दौरान औसतन 1,895.7 भाग प्रति बिलियन था। 2021 में दर्ज की गई 16.9 पीपीबी वृद्धि 1980 चलती औसत तुलना के दशक की शुरुआत के बाद से सबसे तेज थी।

मीथेन का स्तर वर्तमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में लगभग 162 फीसदी अधिक है। नोआ के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2021 में उत्सर्जित मीथेन की मात्रा 1984 से 2006 की अवधि की तुलना में 15 फीसदी अधिक थी।

दुनिया को गर्म करने में मीथेन दूसरी सबसे बड़ी ग्रीनहाउस गैस है। पूर्व-औद्योगिक काल से सीएच 4 के गर्म करने का प्रभाव सीओ2 से लगभग एक चौथाई है।

2007 के बाद से हो रही वृद्धि के कारणों को पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन नोआ के वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि समय के साथ वायुमंडलीय मीथेन की संरचना में बदलावों की पीछे माइक्रोबियल स्रोत हैं, जिसमें आर्द्रभूमि, कृषि और लैंडफिल की ओर इशारा करते हैं। उनका सुझाव है कि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन एक छोटे से हिस्से के लिए जिम्मेवार है।

ग्लोबल मॉनिटरिंग लैब में काम कर रहे एक वैज्ञानिक शिन लैन ने कहा कि हमें मानव निर्मित मीथेन उत्सर्जन पर पूरी तरह से गौर करना चाहिए, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से, क्योंकि यह उन्हें नियंत्रित करने के लिए तकनीकी रूप से संभव है।

अगर आद्रभूमि में बढ़ते तापमान के कारण ये अधिक मीथेन छोड़ रहे हैं और सीओ2 के बढ़ते स्तर के कारण दुनिया भर में बारिश में बदलाव हो रहा है, तो यह कुछ ऐसा है जिसे हम सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। यह आने वाले समय में बहुत ही चिंताजनक होगा।

तीसरी सबसे बड़ी ग्रीनहाउस गैस नाइट्रस ऑक्साइड या एन2ओ, एक और लंबे समय तक रहने वाली गैस है जो हर साल बढ़ रही है। लेकिन यह इस मायने में अलग है कि यह आबादी के बढ़ने से बढ़ रही है, न कि ऊर्जा की मांग से। एन2ओ प्रदूषण मुख्य रूप से कृषि और खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए उर्वरक के उपयोग की वजह से होता है।

एजीजीआई रिपोर्ट का नेतृत्व करने वाले जीएमएल वैज्ञानिक ने कहा कि हम जीवाश्म ईंधन को बदलने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत ढूंढ सकते हैं, लेकिन खाद्य उत्पादन से जुड़े उत्सर्जन में कटौती करना बहुत मुश्किल काम है।

ये तीन ग्रीनहाउस गैसें, साथ ही दो प्रतिबंधित ओजोन को नष्ट करने वाले केमिकल, 1750 के बाद से मानव गतिविधि के कारण वातावरण में जमा अतिरिक्त गर्मी का लगभग 96 फीसदी हिस्सा हैं। शेष 4 फीसदी 16 अन्य ग्रीनहाउस गैसों से है, जिन्हें एजीजीआई द्वारा भी ट्रैक किया गया है। कुल मिलाकर उन्होंने 2021 में सीओ2 के 508 पीपीएम के बराबर गर्मी की मात्रा को बढ़ाया है।

एक नंबर को ट्रैक करने से जलवायु पर मनुष्य के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है

नोआ के वैज्ञानिकों ने नीति निर्माताओं, शिक्षकों और जनता को समय के साथ जलवायु पर ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को समझने में मदद करने के लिए 2006 में पहला एजीजीआई जारी किया था।

एजीजीआई नोआ के ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस रेफरेंस नेटवर्क से हर साल दुनिया भर के अलग-अलग हिस्सों से एकत्र किए गए हजारों हवा के नमूनों पर आधारित है।

इन ग्रीनहाउस गैसों और अन्य रसायनों की मात्रा बोल्डर, कोलोराडो में नोआ की वैश्विक निगरानी प्रयोगशाला में उन नमूनों के विश्लेषण के माध्यम से निर्धारित की जाती है। वैज्ञानिक तब इन गैसों द्वारा पृथ्वी प्रणाली में जमा अतिरिक्त गर्मी की मात्रा की गणना करते हैं।

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