यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं

भारतीय रियल एस्टेट में निवेश करने से पहले 5 चीजों को एनआरआई को पता होना चाहिए
अब जब भारत सरकार अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिए भारत में संपत्ति खरीदने के लिए आसान बनाता है, तो बाजार में बड़े विदेशी निवेश को आकर्षित करने की उम्मीद है वर्तमान में, भारतीय पासपोर्ट रखने वाले एक अनिवासी भारतीय संपत्ति में निवेश कर सकते हैं, जो एक कृषि भूमि, वृक्षारोपण या खेत घर नहीं है। इसलिए, अगर आप भारत में अचल संपत्ति में निवेश करने के लिए एनआरआई की योजना यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं बना रहे हैं, तो यहां उन चीजों को ध्यान में रखने की जरूरत है, जिनके लिए आप को ध्यान में रखना चाहिए: कर लाभ के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण एक निवेश की अवधि को परिभाषित करें जो आपको कर लाभ हासिल करने में मदद करेंगे। न्यूनतम तीन साल का निवेश अनुशंसित है। यह विशेष रूप से उपयोगी है जब निवेश के प्रयोजनों के लिए कोई संपत्ति खरीदते हैं आयकर (आईटी) के नियमों के मुताबिक, यदि आप खरीद के तीन साल के भीतर संपत्ति बेचते हैं, तो उसे शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन के रूप में माना जाएगा और कर लगाया जाएगा। बिक्री से प्राप्त आय भी एनआरआई की आय में जोड़ दी जाएगी। यदि संपत्ति तीन साल के बाद बेची जाती है, तो आईटी विभाग एक अन्य संपत्ति खरीद में आय को निवेश करके दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर को कम करने का विकल्प प्रदान करता है। भारत में आईटी रिटर्न फाइल करने के लिए तैयार हो जाओ यदि आप भारत में कोई संपत्ति खरीदते हैं, तो आपको संपत्ति के लिए स्टैंप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क के साथ भारत में संपत्ति कर का भुगतान करना होगा। इसलिए, निवेश की योजना से पहले सभी लागतों का आकलन करें। इसके अलावा, यदि आप भारत में किराया यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं के माध्यम से पैसा कमाते हैं, तो यह आयकर के अधीन होगा इसलिए, भारत में आईटी रिटर्न फाइल करने के लिए एक अकाउंटेंट की सेवाएं लीजिए और कागजी कार्रवाई के लिए। हालांकि अनिवार्य नहीं है, बाद में वित्तीय प्रक्रियाओं को कम करने के लिए निवेश करने से पहले एक पैन कार्ड प्राप्त करने की सलाह दी जाती है। डेवलपर्स के संघ परिसंघ ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CREDAI) द्वारा सभी प्रस्तावों की जांच करें एनआरआई के लिए नियमित रूप से प्रदर्शनियों का आयोजन करता है और कई ऑफ़र देता है उनमें से कुछ शीर्ष बैंक, डिस्काउंट या भत्ते से हाजिर ऋण प्रदान करते हैं, जहां डेवलपर मूल्य वर्धित कर (वैट) या पंजीकरण शुल्क या सेवा शुल्क आदि को कवर करने से सहमत है। आसान किस्तों और संपत्ति के लिए अग्रिम भुगतान को कम करने के लिए भी पेशकश की जाती है। इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप एक अच्छा सौदा मिलते हैं, निवेश करने से पहले सभी क्रेडाई ऑफ़र्स का अध्ययन करें ईएमआई और विदेशी मुद्रा प्रभाव को जानें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एनआरआई को एक संपत्ति के मूल्य के 80 प्रतिशत तक ऋण लेने की अनुमति दी है। हालांकि, इन ऋणों को रुपए में वितरित किया जाएगा और बाद में उन्हें रुपए में भी भुगतान करना होगा। यदि आप विदेश में अपनी निजी कमाई के साथ समान मासिक किस्तों (ईएमआई) का भुगतान करने की योजना बना रहे हैं, तो विदेशी मुद्रा (विदेशी मुद्रा) के प्रभाव से सावधान रहें क्योंकि उतार-चढ़ाव बोझ बढ़ सकता है। यदि संभव हो, तो सुनिश्चित करें कि किसी प्रमुख संपत्ति से किराये की आय से ऋण का एक बड़ा हिस्सा भुगतान किया जाएगा। पैसे वापस लेना आसान नहीं है यदि आप निवेश के लिए विशेष रूप से भारत में एक अपार्टमेंट खरीद रहे हैं, तो अपने घर देश को वापस लेने में आसान नहीं है सरकार जब तक यह $ 1 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं है तब तक घर से बिक्री के घर के प्रत्यावर्तन की अनुमति है। हालांकि, भारत में पूंजीगत लाभ कर और आयकर का भुगतान करना होगा। यदि आपका घर देश यह स्वीकार नहीं करता है कि आपके द्वारा प्राप्त धन पर लगाया गया है, तो संभावना है कि आपको दो बार कर देना होगा। दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर 20 प्रतिशत के बराबर हो सकता है। इन करों से लाभ की मात्रा कम हो सकती है जो आप इसे प्राप्त कर सकते हैं (काट्या नायडू पिछले नौ यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं वर्षों से एक कारोबारी पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं, और बैंकिंग, फार्मा, हेल्थकेयर, दूरसंचार, प्रौद्योगिकी, बिजली, बुनियादी ढांचा, शिपिंग और वस्तुओं में धड़कता है)
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स्टॉक या म्यूचुअल फंड? इन दोनों में क्या अंतर है और निवेश के लिए आपको क्या चुनना चाहिए?
निवेश के शुरुआती दिनों में अक्सर निवेशकों में कई बातों को लेकर असमंजस की स्थिति होती है. इनमें से एक असमंजस इस बात की भी होती है कि उन्हें सीधे स्टॉक में निवेश करना चाहिए या म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए. इन दोनों में क्या अंतर है और किसमें उन्हें फायदा मिल सकता है.
ज्यादातर निवेशक इस दुविधा में रहते हैं कि वो स्टॉक या म्यूचुअल फंड में से किसी एक को कैसे चुनें? इसका कोई गलत या सही जवाब नहीं है. मामला पूरी तरह से सब्जेक्टिव है और इसका एक दूसरे से तुलना करना सेब और संतरे की तुलना करने जैसा है. सीधे शब्दों में कहें, यदि आप शेयरों में निवेश कर रहे हैं, तो आप अपनी पिक के लिए जिम्मेदार हैं. दूसरी ओर, यदि आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो फंड मैनेजर आपकी ओर से यह कॉल लेता है. अपने गोल्स को अचीव करने के लिए आपके कुछ फैक्टर्स को ध्यान में रखकर स्टॉक या म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए.
यदि आपके पास आवश्यक जानकारी और एक्सपीरियंस है, तो शेयर बाजार में सीधे निवेश करना आपके लिए फायदेमंद हो साबित हो सकता है. हालांकि, अगर आप कभी-कभार ही शेयरों में निवेश करते हैं या सलाह के लिए किसी तीसरे पक्ष पर निर्भर हैं, तो आपको निवेश से पहले दो बार सोचना चाहिए. दूसरी ओर, म्यूचुअल फंड के साथ मामला अलग है. फंड मैनेजर आपके पोर्टफोलियो की देखभाल करता है. यानी यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं आपको बार-बार मार्केट को ट्रैक करने की जरूरत नहीं होती. संक्षेप में कहे तो म्यूचुअल फंड पैसिव इन्वेस्टर्स के लिए अच्छा काम करते हैं जिनके पास समय की कमी है और अनुभव कम है.
निवेश के मूल सिद्धांतों में से एक, पोर्टफोलियो डायवर्सिफाई करना होता है. ये रिस्क को कम करने और पोर्टफोलियो को संतुलित करने में यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं मदद करता है. विभिन्न क्षेत्रों में 10-15 शेयरों के बास्केट से आपको पोर्टफोलियो डायवर्सिफाई करने का मौका मिलता है. जब आप किसी एक स्टॉक में निवेश करते हैं, तो आपको उस डोमेन में एक्सपोजर मिलता है जिसे कंपनी संचालित करती है. उदाहरण के लिए, यदि आप किसी तकनीकी फर्म के शेयर खरीदते हैं, तो आपका एक्सपोजर उस क्षेत्र तक ही सीमित हो जाता है. दूसरी ओर जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो आपका पैसा अलग-अलग सेक्टर्स और स्टॉक में लगता है. इससे आपका पोर्टफोलियो अपने आप ही डायवर्सिफाई हो जाता है.
स्टॉक से आपको कभी खुशी तो कभी गम मिल सकता है. यदि आपके पास एक मल्टीबैगर है, तो आपका रिटर्न कुछ ही समय में बढ़ सकता है. ये रातों-रात आपके रिटर्न को कई गुना कर सकता है. दूसरी ओर अगर आप से गलत स्टॉक का चुनाव हो गया तो ये आपके इन्वेस्टमेंट को डूबा भी सकता है. म्यूचुअल फंड में हमेशा आपका पोर्टफोलियो डायवर्सिफाई रहता है इसलिए इसमें न तो बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम रिटर्न मिलता है.
हर महीने छोटा निवेश करके SIP से कमा सकते हैं मोटा मुनाफा
भारत में ज्यादातर लोग ऐसे निवेश विकल्प की तलाश करते हैं, जिसमें जोखिम कम से कम हो और रिटर्न ज्यादा (Low Risk, High Return Investment) मिले. इसलिए सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश को मोटा मुनाफा कमाने का बेहतरीन विकल्प माना जाता है. SIP के जरिए मासिक, तिमाही या छमाही आधार पर निश्चित राशि जमा की जा सकती है. लंबी अवधि के लिए निवेश से कम्पाउंडिंग बेनेफिट मिलता है और रिटर्न कई गुना बढ़ जाता है. SIP उन लोगों के लिए सबसे बेहतर है, जो शेयर बाजार (Share Market) में सीधे या किसी भी विकल्प में एकमुश्त निवेश नहीं करना चाहते हैं. यदि आप 5 हजार रुपये प्रतिमाह जमा करते हैं तो आपक टोटल कॉर्पस 95 लाख रुपये तक बन सकता है.
हाल के सालों में SIP में निवेश करने वाले लोगों की संख्यां में इजाफा हुआ है. अक्टूबर माह में SIP के जरिए 13041 करोड़ रुपये निवेश किए गए, जो वित्त वर्ष 2023 में अबतक का सबसे अधिक है. आइए जानते हैं आपको आरडी या SIP किसमें निवेश की प्लानिंग करनी चाहिए.
किसमें निवेश करना होगा बेहतर, RD स्कीम या एसआईपी
RD स्कीम में एक निवेशक बिना रिस्क के 5.8 से 7 फीसदी के सालाना ब्याज पर निवेश कर सकते हैं. जबकि SIP के जरिए म्युचुअल फंड में निवेश करने पर औसतन 12 यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं फीसदी का ब्याज मिल सकता है. हालाकि अगर बाजार की स्थिति अच्छी रही तो लॉन्ग टर्म में आपको 15 से 18 फीसदी की ब्याज भी मिल सकता है. म्युचुअल फंड में लॉन्ग टर्म निवेश अच्छा होता है, क्योंकि इसपर चक्रवृद्धि ब्याज दिया जाता है.
ज्यादा रिटर्न के लिए एसआईपी कंटीन्यू रखना जरूरी
SIP के जरिए निवेश करने की शुरुआत तो आसान होती है लेकिन इसे जारी रखना थोड़ा मुश्किल भरा हो जाता है. शेयर बाजार पर यह निवेश आधारित होता है इसलिए आपका पोर्टफोलियो कभी फायदे में रहता है तो कभी नुकसान में. लेकिन आपको निवेश जारी रखना होता है. अगर निवेश की जाने वाली रकम छोटी है, लेकिन कंटीन्यूटी कायम है तो जितनी लंबी अवधि के लिए राशि जमा होगी उतना रिटर्न अधिक मिलेगा.
उदाहरण से समझें
अगर आप हर महीने 5 हजार रुपये आरडी और एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड में जमा कर रहे हैं, तो पांच साल में कुल 3 लाख रुपये जमा होंगे. आरडी में 7 फीसदी की अधिकतम ब्याज पर 59,663 रुपये केवल ब्याज के जमा होंगे यानी की कुल मैच्योरिटी राशि 3 लाख 59 हजार 663 रुपये मिलेंगे. जबकि एसआईपी के मामले में औसत रिटर्न 12 फीसदी पर ब्याज 1 लाख 12 हजार 432 रुपये मिलेंगे और कुल राशि 4,12,432 रुपये होगी.
Mutual funds क्या हैं, इसके बारे में पूरी जानकारी यहां पढ़ें
यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं तो आप गलती कर रहे हैं, आप अपना नुकसान खुद कर रहे हैं. कारण साफ है कि अगर 10 साल यह पैसा ऐसा ही पड़ा रहा तो यह आपको क्या देगा.
म्यूचुअल फंड के बारे में पूरी जानकारी.
अगर आप नौकरीपेशा हैं और घर के खर्चे के बाद कुछ पैसा बचा पाते हैं और इसकी हाल फिलहाल में कोई आवश्यकता नहीं है तो आप इसे निवेश कर सकते हैं. क्यों यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं तो आप गलती कर रहे हैं, आप अपना नुकसान खुद कर रहे हैं. कारण साफ है कि अगर 10 साल यह पैसा ऐसा ही पड़ा रहा तो यह आपको क्या देगा. कुछ नहीं. इतना ही नहीं इसकी कीमत तब तक कम हो चुकी होगी और पैसा का बाजार मूल्ट घट चुका होगा. यानी 10 साल बाद जब आप यह पैसा लेकर बाजार में जाएंगे तक इतने पैसे में कम सामान खरीदेंगे जो आप आज खरीद पाते. इसका कारण यह है कि आपका पैसा उतने का उतना रहा और बाजार में सामान की कीमत बाजार मूल्य के हिसाब से बढ़ चुकी होगी. इसलिए समझदार बनिए और बेहतर निवेश के विकल्पों को जानिए, समझिए और निवेश कीजिए.
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आज बाजार में उपलब्ध कई निवेश के माध्यमों में एक म्यूचुअल फंड है जो पिछले काफी समय से अच्छा विकल्प बना हुआ है. देखा जा रहा है कि पिछले काफी समय से म्युचुअल फंड ने 12-15 फीसदी सालाना ब्याज दिया है जो एक अच्छा रिटर्न समझा जा सकता है. इसे आसानी से समझिए यदि 12 प्रतिशत ब्याज सालाना मिलता है तब आपका पैसा 5 साल में दोगुना हो जाता है.
क्या होता म्यूचुअल फंड
अंग्रेजी शब्द है म्यूचुअल, इसका अर्थ है आपस में या आपस का या कहें मिलकर और फंड का अर्थ पैसे है. यानी पैसे को मिलकर प्रयोग करना. यानी आप जहां चाहें या फिर आपका निवेशक जहां चाहे वहां निवेश होगा. इतना ही नहीं इसी के दायरे में यह भी आता है कि आप जैसे अन्य निवेशकों का पैसा भी इकट्ठा किया जाता है और इसे एक फंड के रूप में तैयार कर बेहतर निवेस किया जाता है. यानि पैसा बड़ा और निवेश भी बड़ा. इन पैसों को शेयरों, बांडों, आदि निवेश के अन्य माध्यमों में इस्तेमाल होता है.
क्योंकि आप इसे सीधे निवेश नहीं करते हैं, तो जो कंपनी आपसे पैसा लेती है वह इसे अपने फंड मैनेजर के जरिए निवेश करती है. मतलब साफ है कि म्युचुअल फंड मैनेजरों द्वारा निवेश किया जाता है. इन लोगों का प्रयास होता है कि फंड ज्यादा से ज्यादा निवेशकों को रिटर्न दे.
म्यूचुअल फंड अमूमन दो प्रकार के होते हैं. एक को ओपन एंडेड फंड कहा जाता है यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं तो दूसरे के क्लोज एंडेड फंड. इसका मतलब यह है कि ओपन एंडेड में आप अपना निवेश जब चाहें अपने हिसाब से तय कर सकते हैं और जब चाहें अपना पैसा मौजूद वैल्यू के हिसाब निकाल सकते हैं. वहीं क्लोज एंडेड का तात्पर्य साफ है कि वह नियमित अवधि के लिए है, कम से कम तीन साल का समय देना होता है. इसे लॉकिंग पीरड भी कह सकते हैं. यह पीरड तीन साल से लेकर 15 साल तक का हो सकता है. यह फंड न्यू फंड ऑफर के समय खरीदा जा सकता है. म्यूचुअल फंड का फायदा यह है कि निवेशक आसानी से इसे कभी भी मौजूदा NAV के हिसाब खरीद बेच सकते हैं.
निवेश की परिकल्पना के हिसाब से म्यूचुअल फंड चार प्रकार के होते हैं.
ग्रोथ फंड्स वाला म्यूचुअल फंड.
इनकम फंड्स वाला म्यूचुअल फंड.
बैलेंस्ड फंड्स वाला म्यूचुअल फंड.
मनी मार्केट फंड्स वाला म्यूचुअल फंड.
ग्रोथ फंड्स - इस फंड के माध्यम से सबसे ज्यादा शेयरों में निवेश किया जाता है. इनका लक्ष्य मध्य से लंबी अवधि में कैपिटल एप्रिसिएशन उपलब्ध कराना है.
इनकम फंड्स - नाम से ही स्पष्ट है. यह निवेशकों को नियमित और स्थिर आय देता है. इनके जरिए तय आय देने वाली सिक्युरिटीज जैसे बॉन्ड, डिबेंचर और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है.
बैलेंस्ड फंड्स - बैलेंस फंड्स के जरिए ऊपर दिए गए दोनों फंड के बीच का रास्ता निकाला जाता है. यानि यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं दोनों तरह के फंड में निवेश किया जाता है. इसमें ग्रोथ के साथ-साथ लगातार आय होना तय होता है.
मनी मार्केट फंड्स - इस फंड का उद्देश्य आसानी से पैसा उपलब्ध कराना, पूंजी का संरक्षण देना और आय प्रदान करना होता है. इसमें ट्रेजरी बिल, सर्टिफिकेट ऑफ़ डिपाजिट और कमर्शियल पेपर में निवेश किया जाता है.
यहां तक तो म्यूचुअल फंड के बारे में मोटी बात थी. अब कुछ अंदर की बात समझते हैं. अब बाजार में किसी न किसी खास इरादे से म्यूचुअल फंड आते हैं. जिसके बारे में फंड के पेपरों में बताया जाता है. निवेशक इसके बारे में नेट पर चेक कर सकते हैं. कई बार म्यूचुअल फंड इक्विटी यानी शेयरों में निवेश करते हैं. तो कोई सीक्योर फंड में निवेश करताहै. कोई दोनों में निवेश करने की बात कहता है. आप जैसा चाहें निवेश वैसा होता है. साफ है यदि आप निवेश नहीं कर रहे हैं कि जहां रिस्क है वहां ग्रोथ ज्यादा मिलती है. लेकिन यहां रिस्क है यानी कभी नुकसान की संभावना भी है. लेकिन, समझदारी से निवेश करने पर नुकसान टाला जा सकता है.
एक म्यूचुअल फण्ड सेटअप करने का तरीका है, नियम है और सरकारी मान्यता के हिसाब से ही करना होता है. सेबी का रोल यहां काफी अहम हो जाता है. सबसे एक म्यूचुअल फण्ड एक ट्रस्ट के फॉर्म में सेटअप किया जाता है, जिसमें, स्पॉनसर, ट्रस्टी, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) और कस्टोडियन शामिल होते हैं. AMC भी वही काम कर सकते हैं जिनके पास सेबी से मान्यता है.
एनएवी NAV (Net Asset Value) क्या होती है? जब भी म्यूचुअल फंड की बात होती है तब एक टर्म जो बार-बार प्रयोग में आती है, वह है- NAV. एक म्यूचुअल फंड कई जगह पैसे निवेश करता है इसलिए अगर किसी समय फंड से पैसा वापस लेना है तो यह उसकी NAV पर निर्भर करता है. अगर बेचना न भी हो तो फंड में पैसे के बारे में जानने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है. किसी म्यूचुअल फंड की NAV वो कीमत है जिससे उस फंड की एक यूनिट खरीदी या बेची जा सकती है.
म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए किसी सलाहकार से मिलने में कोई बुराई नहीं है. कोई भी नेट के माध्यम से सीधे निवेश कर सकता है. हां, म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने में थोड़ा चार्ज भी देना होता है क्यों कि आपका निवेश मैनेज करने के लिए AMCs जो यह चार्ज लेते हैं. यह चार्ज कुल निवेश का अधिकतम 2.5% तक हो सकता है.