सफलता की कहानी

व्यापर रोक

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मुक्त व्यापार समझौते (एफ.टी.ए.) में गलत क्या है? जानें

मुक्त व्यापार समझौते (एफ.टी.ए.) और द्विदेशिये निवेश समझौते (बी.आई.टी.) को अक्सर अंतरााष्ट्रीय व्यापार और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढावा देने के एक तरीक़े के रूप में देखा जाता है। अधिक सटीक रूप से कहा जाए तो, उन्हें ऐसे विधि के तौर पर देखा जाना चाहिए जिनमे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लोगों और पर्यावरण की कीमत पर अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए अपनाया करती है।

1950 के दशक के उत्तरार्ध से 1970 के दशक में पूर्व ओपनिवेशिक शक्तियों में व्यवसायों की सम्पति को नए देशों की सरकार से बचने के लिए एक साथ कई बी.आई.टी. पर हस्ताक्षर लिए गए थे। कंपनियों ने ये तर्क दिया क़ि क्योंकि इन देशों में कानून का शासन कमज़ोर था तो निवेश संरक्षण की आवशकता बढ़ गए थी। वे अपेक्षा के विरुद्ध संरक्षण चाहते थे - अर्थात, सार्वजनिक हित सहित किसी भी उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा उनकी निजी सम्पति को हथिया लेना। बी.आई.टी. की एक और प्रमुख लहर 1980 के दशक और 1990 के दशक में आया जब सोवियत ब्लॉक का विघटन हो रहा था और दुनिया भर में मुक्त बाजार पूंजीवाद के प्रभुत्व पर हस्ताक्षर किये जा रहे थे। आज, पूरे विश्व में 3000 से अधिक बी.आई.टी. लागू हैं।

विदेशी निवेश की रक्षा के लिए "निवेश" और व्यापक प्रावधानों की विस्तृत परिभाषा के साथ, बी.आई.टी. खतरनाक खनन परियोजनाओं, भूमि और जल अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे के विकास को बचाने और बढ़ावा देते हैं जो स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर कहर बरपाते हैं। बी.आई.टी. में आमतौर पर विवादास्पद निवेशक-राष्ट्र विवाद निपटान (आई.एस.डी.एस / ISDS) तंत्र शामिल होता है। यह कम्पनियाँ को सरकार पर मुकदमा करने में सक्षम बनाता है, यदि कम्पनियाँ यह दावा कर सके कि नए कानून या नियम उनके अपेक्षित मुनाफे को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं। तंत्र लोक अदालतों के बजाय मध्यस्थता (arbitration) पर निर्भर रहता है। दुनिया भर में कंपनियों द्वारा सरकारों के खिलाफ लगभग 1000 निवेशक-राज्य विवाद अब तक लाए गए हैं।

एफ.टी.ए. बहुत व्यापक समझौते हैं। वे वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए, न केवल टैरिफ (आयात शुल्क) को कम करके, बल्कि तथाकथित गैर आयात शुल्क बाधाओं (non-tariff )(जैसे मापदंडों और नियमों जो व्यापर में बाधा पहुंचते है) को संबोधित करके वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं। ये श्रमिकों के अधिकारों, प्रतिस्पर्धा नीति, सार्वजनिक खरीद नियमों या पेटेंट कानूनों से जुड़े हुए नियम हो सकते हैं। एफ.टी.ए. में निवेश (investment) से संबंधित नियम भी शामिल हो सकते हैं जैसे बी.आई.टी.। पहला आधुनिक व्यापक एफ.टी.ए. उत्तर अमेरिकी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ्टा / NAFTA) था, जो जनवरी 1994 में लागू हुआ। तब से, एफ.टी.ए. ने व्यापार को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अधिक लाभदायक बनाने और राष्ट्रों के बीच राजनीतिक और आर्थिक गठबंधन बनाने की प्रमुख भूमिका अदा की हैं। अभी तक दुनिया भर में 250 से अधिक व्यापक एफ.टी.ए. हो चुके है।

नाफ्टा के बाद से दुनिया भर में कई सामाजिक आंदोलन एफ.टी.ए. और बी.आई.टी. दोनों का विरोध कर रहे हैं। क्योंकि ये एफ.टी.ए. के दायरे इतने व्यापक हैं की इन व्यापार संधियों में शिक्षकों, किसानों, छात्रों या मजदूर संघ कार्यकर्ताओं या पर्यावरणवादियों जैसे समुदायों को काफी प्रभावित किया है और इन सभी को एफ.टी.ए. के खिलाफ एकजुट होने का मौका दिया है। कुछ देशों में, एफ.टी.ए. के खिलाफ सामाजिक आंदोलनों ने सरकारों तक को गिरा दिया है।

प्रमुख विषय जिन्होंने एफ.टी.ए. के खिलाफ लोगों को संगठित होने का मौका दिया:

• एफ.टी.ए. में होने वाली वार्ता काफी गोपनीय होती है और यह सार्वजनिक जांच के परे है, भले ही वे लोगों के जीवन के व्यापक प्रभाव क्षेत्र जैसे कि भोजन, स्वास्थ्य, श्रम और पर्यावरण को प्रभावित ही क्यों ना करते हो ।

• एफ.टी.ए. का उपयोग अक्सर कॉर्पोरेट कृषि व्यवसायियों द्वारा अपने कृषि उत्पादों के लिए बाजारों को खोलना हो या भोजन संबंधित उत्पाद मानकों जैसे गैर आयात शुल्क जैसी बाधाओं को कमजोर करना हो जिससे उनकी कृषि उत्पादन को आसानी से प्रवेश मिल सके और छोटे किसानों एवं उपभोक्ताओं के जीवन को गंभीरता से प्रभावित किया जा सके। उदाहरण के लिए, विकसित और विकासशील देशों के बिच होने वाले व्यापार सौदे अक्सर विकासशील देशों में विकसित देशों के अनुदान प्राप्त रियाती सस्ते खाद्य प्रदार्थो या जी.एम.ओ. (जैविक यांत्रिकी से बने) कृषि उत्पादनों को प्रवेश दिलाने के लिए किए जाते हैं।

• अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख शक्तियां अपने बौद्धिक संपदा (intellectual property) के मानकों, जो कि ज्यादातर कॉर्पोरेट घरानों द्वारा लिखे जाते है, को अपनाने के लिए दूसरे देशों को प्रेरित करती हैं। एफ.टी.ए. देशों को मजबूर करता है:

  • ब्रांडेड दवाओं के लिए एकाधिकार (पेटेंट / patent) का विस्तार करने;
  • सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता में बाधा डालने;
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियां और अन्य संस्थागत संयंत्र प्रजनकों (व्यापर रोक institutional plant breeders) को बीजों पर एकाधिकार प्रदान करने के अनुकूल कानून बनाने, जो किसानों को बीज बचाने से रोकते है;
  • उद्योगों के अनुकूल पशु और मछली प्रजनन नियम बनाना जो प्रभावी रूप से मछली की नस्लों या पशुधन को प्रजनन से रोकते हैं;
  • कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के पेटेंट को प्रोत्साहित करना व्यापर रोक जो, स्थानीय कंप्यूटर प्रोग्रामर और बिना पेटेंट वाले सॉफ्टवेयर जिसे ओपन सोर्स मूवमेंट (open source movement) कहते हैं उनको क्षति पहुंचाते हैं; या
  • लोकप्रिय उपभोक्ता वस्तुओं की कथित कॉपीराइट (copyright) के उल्लंघन हुए बिना भी उनपर शिकंजा कस्ते है।

• एफ.टी.ए. श्रमिक के अधिकारों, सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधित सामाजिक मानकों व्यापर रोक और बाजार के नियमों को कमजोर करते हैं। ये मानक और नियम पारंपरिक रूप से अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की शक्ति को प्रतिबंधित करने का काम करते थे।

• एफ.टी.ए. सरकारों की विनियमन क्षमता को कमजोर करते हैं, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता को आघात पहुँचता है। तथाकथित विनियामक सहयोग प्रावधान, जिसको कई समझोतो में शामिल किया जाता हैं, कॉर्पोरेट लॉबी को यह अधिकार देता है कि वो सरकार द्वारा नीति बनाने की प्रक्रिया को काफी हद तक अपने हक़ में प्रभावित कर सके। एफ.टी.ए. के हस्ताक्षरकर्ता देशों को अक्सर एक-दूसरे के नीतिगत बदलावों की जानकारी देनी पड़ती है और नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में एक दूसरे के हित की रक्षा भी करनी होती है। यह अक्सर विशिष्ट समितियों के माध्यम से किया जाता है, जिसे आम जनता से दूर रखा जाता है और इसमें जनता को कभी शामिल नहीं किया जाता। एफ.टी.ए. की दो धाराएं जिसे "स्टैंडस्टिल" (standstill) और "रेचिट” (ratchet clause) धारा कहा जाता है जो एक क्षेत्र के व्यापारिक उदारीकरण के बाद इसे फिर से विनियमित करने पर रोक लगाते हैं।

• निवेश संरक्षण (investment protection) प्रावधान विदेशी निवेशकों (विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय कंपनियों) को किसी भी सार्वजनिक नीतियों को चुनौती देने की क्षमता को बढ़ावा देते हैं जो स्वास्थ सुरक्षा, पर्यावरण या श्रम से सम्बंधित ही क्यों न हो। संप्रभु राष्ट्रों के खिलाफ आई.एस.डी.एस. के दावों की बढ़ती संख्या सार्वजनिक नीति निर्णय और विनियामक उपायों को सीधे चुनौती देती है जिससे लोगों के जीवन और आजीविका के मुकाबले कंपनियों के निजी अधिकारों और हितों के प्रभुत्व का पता चलता है।

• एफ.टी.ए. विदेश नीति और भू-राजनीतिक (geopolitical) शक्ति संघर्ष के शस्त्र हैं। जिनका इस्तेमाल अक्सर व्यापार से परे और दूसरी प्रतिबद्धताओं में देशों को वचन-बध्य करने के लिए प्रलोभन के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, एफ.टी.ए. भागीदार देशों से क्षेत्रीय विवादों या बहुपक्षीय मंचों पर एक-दूसरे के राजनीतिक एजेंडे का समर्थन करने की उम्मीद की जाती है। एफ.टी.ए. को कुछ शक्तिशाली देशों द्वारा पुरस्कार के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है जिन्हें कमजोर देशों के अच्छे व्यवहार पर किये जाते है।

सालों की बहस और विवेचनाओं का ही नतीजा है कि इन व्यापार समझोतो की बेहतर समझ बन पाई है और उच्चतर सार्वजनिक समीक्षा हो पाई है | लेकिन इनका प्रोत्साहन बाजार और राजनीती के बदलते स्वरूप में जारी रहता है|

सब मिलके मानव व्यापार रोकु

जिला सीतामढ़ी, प्रखण्ड सोनबरसा किसान भवन में 23 अगस्त 20014 के अदिथि संस्था के तहत कार्यशाला के आयोजन कयल गेलई। जईमे बाल श्रम, बंधुआ मजदुर एवं मानव व्यापार के रोक थाम के लेल बतायल गेलई। जेकर अध्यक्षता प्रखण्ड विकास पदाधिकारी कलथिन।
जिला से आयल रंजीत कुमार अउर माधुरी कहलथिन कि अभी सर्वे भेलई जेईमें बाल मजदूर, मानव व्यापार बहुत ही हो रहल हई। ऐई के लेल सब जनप्रतिनिधि अउर अधिकारी के सहयोग करे परतई तब ही ऐई कार्य में सफलता मिलतई। बी.डी.ओ. श्री कांत ठाकुर कहलथिन कि हमरा सबके सरकारी काम से त फूर्सत न होईय लेकिन मानवता के नाते हमरा सबके नेपाल इंडिया में हो रहल मानव व्यापार पर ध्यान देवे के होतई कि कोन दलाल ऐईसन घटिया काम करई छई। अगर उ पकड़ा जतई त ओकरा कड़ी सजा देल जतई। जहां कहीं दुकान पर बाल मजदूर मिले ओकरा चाईल्ड लाईन के हवाले कर देवे के हई।
प्रखण्ड बीस सूत्री अध्यक्ष शम्भुशंकर कहलथिन कि देश के आजाद होयला ऐतना दिन हो गेलई लेकिन अभी भी बंधुआ मजदूर कम मजदूरी पर काम कर रहल हई। हम सब संकल्प लेई छी कि ऐकरा जड़ से मिटावे के हई। जीविका के अनुराधा ,रौशन कहलथिन कि ऐई कार्य में सफलता पावे के लेल महिला के शिक्षित करे के होतई।

तालिबान ने भारत के साथ आयात-निर्यात पर लगाई रोक, जानें वजह

भारत और अफगानिस्तान गहरे दोस्त रहे हैं, लेकिन तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही भारत के साथ आयात और निर्यात दोनों ही बंद कर दिया है.

Taliban stops import, export from India through Pakistan

तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना नियंत्रण बनाने के साथ ही भारत के साथ व्यापार रोक दिया है. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा होने के साथ ही अब उसके साथ पड़ोसी या अन्य देशों का संबंध भी बदलने लगा है. भारत और अफगानिस्तान गहरे दोस्त रहे हैं, लेकिन तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही भारत के साथ आयात और निर्यात दोनों ही बंद कर दिया है.

भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (एफआईईओ) के महानिदेशक डॉ. अजय सहाय ने कहा कि हम अफगानिस्तान में चल रहे घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए हैं. भारत के लिए आयात पाकिस्तान के ट्रांजिट मार्ग के जरिये होता है. इससे मुल्क में भारत से सामान की आवाजाही रुक गई है. उन्होंने कहा कि हम अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखे हैं. तालिबान ने पाकिस्तान के लिए जाने वाले सभी कार्गो रोक दिए हैं.

83.5 करोड़ डॉलर का सामान निर्यात

एफआईईओ के महानिदेशक डॉ. सहाय के अनुसार भारत अफगानिस्तान के बड़े व्यापार साझेदारों में से एक है. नई दिल्ली से काबुल को साल 2021 में अब तक 83.5 करोड़ डॉलर (लगभग 6262.5 करोड़ रुपये) का सामान निर्यात किया जा चुका है.

अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश

अफगानिस्तान से भारत में लगभग 51 करोड़ डॉलर (लगभग 3825 करोड़ रुपये) का सामान आयातित हो चुका है. व्यापार के अलावा भारत ने अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश भी कर रखा है. मुल्क में भारत की ओर से संचालित 400 से अधिक परियोजनाओं में तीन अरब डॉलर (लगभग 225 अरब रुपये) का निवेश होने का अनुमान है.

भारत-अफगानिस्तान में द्विपक्षीय व्यापार

एफआईईओ डीजी ने कहा कि भारत फिलहाल अफगानिस्तान को चीनी, दवाइयां, कपड़े, चाय, कॉफी, मसाले और ट्रांसमिशन टावर की सप्लाई करता है, जबकि वहां से आने वाला अधिकतर आयात ड्राईफ्रूट्स का ही है. भारत लगभग 85 प्रतिशत सूखे मेवे अफगानिस्तान से आयात करता है.

भारत से अच्छे संबंध चाहता तालिबान

आपको बता दें कि वैसे तो तालिबान ने ऐलान किया था कि वह भारत से अच्छे संबंध चाहता है, साथ ही भारत यहां पर जारी अपने सभी काम और निवेश को बिना किसी दिक्कत के पूरा कर सकता है.

कारोबार बुरी तरह बाधित

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां से भारत आने वाले ड्राई फ्रूट का कारोबार बुरी तरह बाधित हुआ है. जिस कारण भारत में सूखे मेवे के दाम में इजाफा हो गया है. वहीं, आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में इनकी कीमतें और बढ़ सकती है.

भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करना चाहता है Pakistan!

भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करना चाहता है Pakistan! (Twitter)

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान(Pakistan) सरकार ने भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने का फैसला किया है, इस कार्य के लिए एक व्यापार मंत्री नामित किया है। हालांकि इस फैसले को देश की गंभीर आर्थिक स्थिति के लिहाज से एक बड़े विकास के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान(Pakistan) द्वारा एक बड़े समझौते और 5 अगस्त, 2019 के बाद भारत के खिलाफ अपने पिछले रुख से पीछे हटने के रूप में भी देखा जा रहा है।

शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में एक संघीय कैबिनेट की बैठक में, यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान(Pakistan) भारत के साथ व्यापार को फिर से खोलने की दिशा में काम करेगा और कार्य के लिए नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(PPT) के कमर जमर कैरा को व्यापार मंत्री के रूप में नियुक्त करेगा।

Pakistan प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Twitter)

इसके अलावा, इसी तरह के व्यापार अधिकारियों व्यापर रोक और मंत्रियों को कम से कम 15 देशों में नामित किया जा रहा है, ताकि उनके संबंधित देशों के साथ व्यापार संबंधों और समझौतों को बढ़ाया जा सके। भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने का निर्णय एक कठिन निर्णय है जो शहबाज शरीफ ने लिया है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोदी सरकार द्वारा अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को बदलने के बाद भारत के साथ व्यापार रोक दिया था।

इमरान खान ने भारत के साथ राजनयिक संबंधों को भी डाउनग्रेड कर दिया था और इस्लामाबाद में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त को भी देश छोड़ने के लिए कहा था। इससे पहले, भारत के साथ व्यापार को फिर से शुरू करने की उसी सिफारिश को तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति की बहाली तक खारिज कर दिया था।

वर्तमान निर्णय की विश्लेषकों और बड़े पैमाने पर जनता द्वारा गंभीर आलोचना की गई है, जो शहबाज शरीफ सरकार पर पाकिस्तान के हितों से समझौता करने और कश्मीर के लोगों की आशाओं को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक नाजिम जेहरा ने कहा, "प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा भारत के साथ व्यापार की दिशा में उठाया गया कोई भी कदम न केवल कश्मीरियों को बेचैन करेगा, बल्कि भारतीय आधिपत्य के प्रति नरम समर्पण की शुरूआत होगी।"

इस फैसले से शहबाज शरीफ को राजनीतिक तौर पर कोई मदद मिलने की भी उम्मीद नहीं है। हालांकि, इसने निश्चित रूप से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए एक नया बिंदु दिया है, जिन्होंने शहबाज शरीफ को भारत के सामने झुकने और देश की नीति पर वापस आने के लिए नारा दिया है, 5 अगस्त, 2019 के बाद सहमत हुए। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति एक मंदी की ओर बढ़ रही है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की 6 अरब डॉलर की ऋण सुविधा के पुनरुद्धार के लिए सख्त मांगों के साथ है।

Sugar Export चीनी एक्‍सपोर्ट पर जारी रहेगी अक्टूबर 2023 तक रोक, कीमतों पर काबू के लिए मोदी सरकार का बड़ा कदम

SugarCanes

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नई दिल्ली. व्यापर जगत से आ रही बड़ी खबर के अनुसार, अब मोदी सरकार ने चीनी के एक्सपोर्ट (निर्यात) पर लगे प्रतिबंध को आगामी अक्टूबर 2023 तक बढ़ा दिया है। बता दें कि, इससे पहले बीते 1 जून 2022 से 31 अक्टूबर 2022 तक के लिए ये पाबंदी लगाई गई थी।

बता दें कि, भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है। वहीं इसके प्रमुख ग्राहकों में बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और दुबई शामिल हैं। पता हो कि देश में शुगर की घरेलू कीमतों में बढ़ रही तेजी पर लगाम कसने के लिए चीनी एक्सपोर्ट पर कड़ा प्रतिबंध लगाया गया था।

जान लें कि बीते 24 मई, 2022 को सबसे पहले यह प्रतिबंध लागू किया गया था। वहीँ अब मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ओर से जारी किए गए इस सर्कुलर में बताया गया है कि यह प्रतिबंध CXL और TRQ (tarriff rate qouta) कोटा के तहत EU और US में भेजी जा रही चीनी पर फिलहाल लागू नहीं है। जानकारी दें कि भारत का चीनी निर्यात सितंबर में समाप्त विपणन वर्ष 2021-22 के दौरान 57% बढ़कर 109.8 लाख टन हो गया है।

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