रणनीति चुनना

ETF लिक्विडिटी

ETF लिक्विडिटी

कैसे करें सही ETF का चुनाव? निवेश से पहले रखें इन बातों का ध्यान

ईटीएफ में इन्वेस्टमेंट एक बेहतर विकल्प

इंडियन मार्केट में आम तौर पर पांच प्रकार के ETF देखने को मिलते हैं गोल्ड ETF, इंडेक्स ETF, बॉन्ड ETF, सिल्वर ETF और इंटरनेशनल ETF.

  • News18Hindi
  • Last Updated : February 15, 2022, 13:46 IST

नई दिल्ली. अगर आप लंबे समय के निवेश में बेहतर रिटर्न चाहते हैं तो ईटीएफ में इन्वेस्टमेंट एक बेहतर विकल्प हो सकता है. ETF शेयर बाजार में सूचीबद्ध होते हैं और शेयर की तरह ही इनकी खरीद बिक्री होती है. इसमें एक म्यूचुअल फंड की तरह एक्टिव पोर्टफोलियो मैनेजमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है, इसलिए इसे एक निष्क्रिय इक्विटी इन्वेस्टमेंट माना जाता है.

मार्केट में कई प्रकार के है ETF
इंडियन मार्केट में आम तौर पर पांच प्रकार के ETF देखने को मिलते हैं गोल्ड ETF, इंडेक्स ETF, बॉन्ड ETF, सिल्वर ETF और इंटरनेशनल ETF.

निवेश का तरीका
ETF को शेयरों की तरह स्टॉक मार्केट में खरीदा और बेचा जाता है. ETF खरीदने के लिए आपको अपने ब्रोकर के माध्यम से डीमैट अकाउंट खोलना होता है. एक ETF की कीमत रीयल टाइम में घट या बढ़ सकती है. यह एक म्यूचुअल ETF लिक्विडिटी फंड के यूनिट की कीमत के विपरीत होता है, जिसे सिर्फ एक ट्रेडिंग सेशन के अंत में तय किया जाता है.

निवेश से पहले इन पैरामीटर्स पर परखें ईटीएफ को

>> ETF को चुनते समय या उसमें निवेश करने से पहले निवेशकों को एल4यू स्ट्रेटजी पर भरोसा रखना चाहिए लिक्विडिटी, लो एक्सपेंस रेशियो, लो इंपैक्ट कॉस्ट, लो ट्रैकिंग एरर और अंडरलाइंग सिक्योरिटीज.
>> ETF की लिक्विडिटी से निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज पर इसकी खरीद या बिक्री करने में आसानी रहेगी.
>> आमतौर पर ETF के एक्सपेंस रेशियो एक्टिव फंड्स की तुलना में कम होते हैं लेकिन निवेशकों को विभिन्न ईटीएफ के एक्सपेंस रेशियो की आपस में तुलना जरूर करनी चाहिए.
>> किसी भी ETF को चुनते समय लो ट्रैकिंग एरर महत्वपूर्ण फैक्टर है. इससे इंडेक्स की तुलना में मिलने वाले रिटर्न का अंतर कम करने में मदद मिलती है. आमतौर पर अंडरलाइंग सिक्योरिटीज के मुताबिक 0 2 फीसदी का ट्रैकिंग एरर आदर्श माना जाता है.
>> किसी ETF का चुनाव करते सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर अंडरलाइंग सिक्योरिटीज है क्योंकि रिटर्न इसी के परफॉरमेंस पर निर्भर होता है.

नॉन इक्विटी ETF जैसे गोल्ड और इंटरनैशनल ETFs में 3 साल से कम समय के लिए किए गए इन्वेस्टमेंट्स को शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट माना जाता है, जबकि 3 साल से ज्यादा समय के लिए किए गए इन्वेस्टमेंट्स को लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट माना जाता है. नॉन इक्विटी ETFs के STCG पर मामूली दर से टैक्स लगता है. नॉन इक्विटी ETF के LTCG पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% टैक्स लगता है.

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Mutual Fund Investment : इंडेक्स फंड या ईटीएफ, किसमें निवेश हैं आपके लिए ज्यादा फायदेमंद

इंडेक्स फंड और ईटीएफ दोनों ही पैसिव फंड माने जाते हैं। दोनों में बड़ा फर्क यह है कि ईटीएफ की खरीद-फरोख्त स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange) में होती है। इसलिए इसे एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Exchange trades fund) कहा जाता है।

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हाइलाइट्स

  • इंडेक्स फंड (index Fund) में निवेश के लिए निवेशक के पास डीमैट अकाउट होना जरूरी नहीं है।
  • ईटीएफ (ETF) की खरीद-बिक्री स्टॉक एक्सचेंज पर होती है, जिससे इसकी कीमत बदलती रहती है।
  • इंडेक्स फंड की नेट एसेट वैल्यू (net asset value) रोजाना कारोबार के बाद तय होती है।

निवेशक जब इंडेक्स फंड (index fund) में निवेश करता है या अपनी यूनिट्स बेचता है तो उसकी कीमत नेट एसेट वैल्यू (Net Asset Value) पर आधारित होती है। एसेट मैनेजमेंट कंपनी (Asset Management Company) रोजाना कारोबार के अंत में यूनिट्स की एनएवी घोषित करती है। इसके उलट ईटीएफ की कीमत शेयर बाजार में सूचीबद्ध शेयरों की तरह होती है। बाजार में लिक्विडिटी और मांग और सप्लाई (demand and supply) के आधार पर उसकी कीमत तय होती है। इसलिए उसकी कीमत एनएवी के मुकाबले प्रीमियम पर या डिस्काउंट पर हो सकती है। इसलिए बाजार में ज्यादा उतार-चढ़ाव होने पर ईटीएफ की कीमत और इंडेक्स के स्तर में अंतर दिख सकता है।

इंडेक्स फंड में एक्सपेंस रेशियो (Expense ration) एक्टिव फंड्स के मुकाबले कम होता है। इसकी वजह यह है कि पोर्टफोलियो (portfolio) बनाने और उसके प्रबंधन पर कम खर्च आता है। ईटीएफ में एक्सपेंस और भी कम होता है। लेकिन, इसकी यूनिट खरीदने और बेचने पर कई तरह के शुल्क लगते हैं। इनमें ब्रोकरेज (brokerage), डीमैट चार्ज (demat charge) और कुछ टैक्स (tax) शामिल होते हैं। इंडेक्स फंड और ईटीएफ के रिटर्न की तुलना करने के दौरान इन शुल्क को ध्यान में रखना जरूरी है।

इंडेक्स फंड में निवेश करने के लिए निवेशक के पास डीमैट अकाउंट होना जरूरी नहीं है। इसकी वजह यह है कि यूनिट की खरीद और बिक्री सीधे एसेट मैनेजमेंट कंपनी से की जाती है। ईटीएफ में निवेश के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है। इसलिए डीमैट अकाउंट खोलने और उसके सालाना मेंटेनेंस चार्ज को लेकर खर्च बढ़ जाता है। अगर टैक्स के लिहाज से बात करें तो दोनों में ज्यादा फर्क नहीं है।

लिक्विड ETF की मदद से शेयर बाजार में बढ़ाएं अपनी कमाई, ऐसे करें स्मार्ट इनवेस्टमेंट

लिक्विड ईटीएफ कम जोखिम और ऊंची लिक्विडिटी के साथ बेहतर रिटर्न प्रदान कर सकते हैं. वहीं इसकी मदद से आप बाजार में अपने निवेश पर कुल कमाई भी बढ़ा सकते हैं.

लिक्विड ETF की मदद से शेयर बाजार में बढ़ाएं अपनी कमाई, ऐसे करें स्मार्ट इनवेस्टमेंट

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Oct 08, 2022 | 2:19 PM

सभी जानते हैं कि निवेश का रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है आप अपने पैसे पर कितना जोखिम उठा रहे हैं. बाजार में ऐसे सैकड़ों इंस्ट्रूमेंट्स हैं जहां जोखिम के अलग अलग स्तरों पर अलग अलग रिटर्न मिलता है. स्मार्ट इनवेस्टर बाजार में मौजूद इन सभी विकल्पों का इस्तेमाल इस तरह से करते हैं जिससे वो पैसे की सुरक्षा से लेकर ऊंचे रिटर्न दोनो का ही फायदा उठा सकें. आज हम आपको एक ऐसी ही स्मार्ट रणनीति बताने जा रहे हैं जहां आप ऐसे ही बाजार के दो अलग अलग निवेश विकल्पों का इस्तेमाल कर अपने पैसों को पहले से ज्यादा तेजी के साथ बढ़ते हुए देख सकते हैं.

ये हैं बाजार में निवेश के साथ लिक्विड ईटीएफ का इस्तेमाल. खास बात ये है कि इस रणनीति का इस्तेमाल करना बेहद आसान है और ब्रोकरेज हाउस सिर्फ कुछ क्लिक की मदद से इस रणनीति को ETF लिक्विडिटी पूरा करने में आपकी मदद करते हैं.

क्यों जरूरी है स्मार्ट इनवेस्टमेंट

बाजार में आम निवशक निवेश ट्रेडिंग अकाउंट के जरिए करते हैं जो डीमैट अकाउंट और सेविंग अकाउंट से अटैच होता है. आप का कैश सेविंग अकाउंट में रहता है वहीं स्टॉक डीमैट अकाउंट में रहते हैं. यानि साफ है कि जब आपका पैसा स्टॉक मार्केट में नहीं होता तो उसपर सबसे कम रिटर्न मिल रहा होता है. दरअसल सेंविग्स अकाउंट में ब्याज दरें सबसे निचले स्तरों पर रहती है. वहीं शेयर बाजार में स्टॉक की बिकवाली करने पर पैसा भी 2 दिन में मिलता है. यानि इन दो दिन आपका कैश वास्तव में कोई कमाई नहीं कर रहा होता.

कई बार आपको स्टॉक में निवेश के मौके नहीं मिलते. ऐसे ETF लिक्विडETF लिक्विडिटी ETF लिक्विडिटी िटी में आपका पैसा लंबे समय तक सेविंग्स अकाउंट में ही पड़ा रहता है. दूसरी तरफ समस्या ये है कि बाजार में मौकों की तलाश में इस पैसे की एफडी भी नहीं करा पाते. अगर रकम बड़ी है और वो ज्यादा समय तक सेविंग्स अकाउंट में पड़ी रहती है तो आपको पता ही नहीं चलता कि आपने कितनी कमाई का मौका गंवा दिया.. लेकिन अगर आप लिक्विड ईटीएफ की मदद लेते हैं तो आप अपनी कमाई कहीं ज्यादा बढ़ा सकते हैं. जानिए क्या है ये इनवेस्टमेंट स्ट्रेटजी.

क्या है लिक्विड ईटीएफ

लिक्विड ईटीएफ यानि एक्सचेंज ट्रेडेड फंड निवेश के ऐसे विकल्प होते हैं जो शेयर बाजार में स्टॉक की तरह खरीदे और बेचे जा सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ ये फंड्स बेहद छोटी अवधि के जमा में निवेश करते हैं. यानि सीधे शब्दों में कहें तो लिक्विड ईटीएफ कम जोखिम और सेविंग्स से ज्यादा रिटर्न तो देते ही हैं ये नकदी की तरह तेजी से कैश भी कराए जा सकते हैं. बाजार में ढेरों लिक्विड ईटीएफ हैं. लिक्विड फंड ईटीएफ में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल केवल 0.25% पर कुल खर्च अनुपात के साथ सबसे सस्ता ईटीएफ प्रदान करता है, इसके साथ ही कई और बेनेफिट्स भी मिलते हैं.

कैसे करें स्मार्ट इनवेस्टमेंट

बाजार के जानकार सलाह देते हैं कि अगर आपको शेयरों में निवेश का मौका मिलता है तो अपने पैसे को उस स्टॉक में लगाए, प्रॉफिट मिलने पर पैसे को सेविंग्स अकाउंट में छोड़ने की जगह सीधे लिक्विड ईटीएफ में लगा दें. वहीं आने वाले समय में आप फिर से स्टॉक में निवेश का मौका मिलने पर इस लिक्विड ईटीएफ की रकम से सीधे शेयर खरीद लें. यानि आप सेविंग्स अकाउंट में पैसे छोड़ने की जगह उसे लिक्विड ईटीएफ में लगा दें

देश में अधिकांश ब्रोकर ये सुविधा देते हैं कि आप शेयर बेचने के साथ इस रकम से बिक्री के दिन ही ईटीएफ ले सकें और फिर इसी ईटीएफ की यूनिट्स से शेयर भी खरीद सकें.ऐसें में आपको बाजार से पैसा निकालने की स्थिति में ईटीएफ के ऊंचे रिटर्न का भी फायदा मिल जाएगा. लिक्विड ईटीएफ में जोखिम कम होता है और इसे तेजी से कैश कराया जा सकता है ऐसे में ये आप सेविंग्स अकाउंट के मुकाबले ऊंचे रिटर्न पा सकेंगे

इस दिवाली कैसे चुनें अपने लिए बेस्ट गोल्ड ETF, जानिए किन बातों का रखें ध्यान

इस दिवाली कैसे चुनें अपने लिए बेस्ट गोल्ड ETF, जानिए किन बातों का रखें ध्यान

बाजार में उबलब्ध ETF की लिक्विडिटी, शुद्धता, सिक्योरिटी और टैक्स समेत कई फैक्टर्स एक समान ही होते हैं. ऐसे में अपने लिए बेस्ट ETF चुनने में निवेशकों को परेशानी हो सकती है. लेकिन, कुछ ऐसी बातें भी है जिनके आधार पर बेस्ट ETF का चुनाव किया जा सकता है.

दिवाली के समय पर सोना खरीदने का पुराना चलन है. आज के मॉडर्न समय में फिजिकल गोल्ड के अलावा गोल्ड ETF की भी मांग बढ़ रही है. सोने में निवेश के लिए इसे एक बेहतरीन साधन माना जाता है. बाजार में फिलहाल दर्जनों ETF हैं, जिनमें से आप किसी एक में निवेश कर सकते हैं. इन सभी ETF में सोने की शुद्धता, लिक्विडिटी, सुरक्षा और टैक्स फायदे एक समान ही होते हैं. ऐसे में एक निवेशक के तौर पर आप ETF लिक्विडिटी कन्फ्यूज हो सकते हैं कि आपके लिए कौन सा गोल्ड ETF बेहतर होगा.

किसी खास स्कीम के तहत आने वाली पूरी रकम को AUM यानि एसेट अंडर मैनेजमेंट कहते हैं. ज्यादा AUM वाला ETF बेहतर माना जाता है. ज्यादा AUM का मतलब है कि उस खास AUM में ज्यादा से ज्यादा निवेशक पैसा लगा रहे हैं.

किसी भी स्कीम या निवेश को मैनेज करने के लिए एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) निवेशकों से एक तय फीस वसूलती है. निवेशकों की भाषा में इसे एक्सपेंस रेश्यो कहा जाता है. एक निवेशक के लिए एक्सपेंस रेश्यो जितना कम होगा, उसे उतना फायदा होगा.

फिजिकल सोने के दाम में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिलती है. ETF का नेट एसेट वैल्यू यानि NAV से ETF लिक्विडिटी इसका पता नहीं चलता है. लेनदेन पर खर्च और कैश होल्डिंग का भी असर पड़ता है. इसे ही ट्रैकिंग एरर कहते हैं. ETF में ट्रैकिंग एरर को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है. ऐस में कम से कम ट्रैकिंग एरर वाले ETF में निवेश करना चाहिए.

भारत में अधिकतर ETF का वॉल्यूम बहुत कम होता है, इसलिए लिक्विडिटी के बारे में पता लगाना बेहद जरूरी है. एक निवेशक के तौर पर आपके लिए जरूरी है कि एक ऐसा ETF चुनें, जो एक्सचेंज पर ज्यादा ट्रेड हो रहा हो और उसका वॉल्यूम भी ज्यादा रहे. किसी भी ETF की लिक्विडिटी का मतलब है कि कितनी आसानी से आप उसे बाजार में बेच सकते हैं. अगर किसी ETF की लिक्विडिटी ETF लिक्विडिटी कम है तो बाजार में उसे बेचना आपके लिए मुश्किल भरा हो सकता है.

एक्सपर्ट की मानें तो किसी भी लिक्विडी एसेट को कम नोटिस में भी कैस में ट्रेड होने लायक होना चाहिए. इसीलिए किसी भी ETF की लिक्विडिटी का पता लगाने के लिए इम्पैक्ट कॉस्ट पर ध्यान दिया जाता है. तय यूनिट्स को खरीदने या बेचने के लिए जो खर्च उठाना होता है, उसते ही इम्पैक्ट कॉस्ट कहते हैं. कम से कम इम्पैक्ट कॉस्ट वाली लिक्विडिटी बेहतर होती है.

एक्‍सचेंज ट्रेडेड फंड क्या है, इसमें निवेश कैसे फायदेमंद है?

ईटीएफ क्‍या है?

एक्‍सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ प्रतिभूतियों का बास्‍केट होता है. इसकी स्‍टॉक एक्‍सचेंज पर खरीद-फरोख्‍त हो सकती है. ईटीएफ की पेशकश इक्विटी, बॉन्‍ड या गोल्‍ड जैसे एसेट पर की जाती है. देश में कुछ लोकप्रिय ईटीएफ में निफ्टी50 ईटीएफ, गोल्‍ड ईटीएफ, लिक्विड ईटीएफ और इंटरनेशनल ईटीएफ शामिल हैं. ईटीएफ जिस मूल्‍य पर ट्रेड किए जाते हैं, यह उनके एसेट्स की एनएवी पर निर्भर करता है. इसका मतलब हुआ कि अगर ये गोल्‍ड ईटीएफ हैं तो इनका मूल्‍य सोने से और बॉन्‍ड ईटीएफ हैं तो बॉन्‍ड की कीमत से तय होता है. ईटीएफ जिस मूल्‍य पर ट्रेड किए जाते हैं, यह उनके एसेट्स की एनएवी पर निर्भर करता है. इसका मतलब हुआ कि अगर ये गोल्‍ड ईटीएफ हैं तो इनका मूल्‍य सोने से और बॉन्‍ड ईटीएफ हैं तो बॉन्‍ड की कीमत से तय होता है.

​एक्‍सचेंज ट्रेडेड फंड के क्‍या फायदे हैं?

​एक्‍सचेंज ट्रेडेड फंड के क्‍या फायदे हैं?

इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इन्‍हें रियल टाइम में खरीदा और बेचा जा सकता है. इनमें निवेश की लागत कम होती है. एक बार ट्रेडिंग अकाउंट खुल जाने के ETF लिक्विडिटी बाद कारोबारी घंटों में इनकी आसानी से खरीद-फरोख्‍त हो सकती है. डीमैट अकाउंट का इस्‍तेमाल करके आप ऐसा कर सकते हैं. इनका एक्‍सपेंस रेशियो कम होता है. कम से कम एक यूनिट में निवेश किया जा सकता है. ईटीएफ निवेशकों को मार्केट में इंट्रा-डे मूवमेंट का फायदा उठाने का मौका देते हैं. ओपन-एंडेड फंडों के साथ यह मुमकिन नहीं है. चूंकि, फंड मैनेजर इन्‍हें सक्रिय तौर पर मैनेज नहीं करते हैं. इसलिए इनका कॉस्‍ट स्‍ट्रक्‍चर बहुत कम होता है. आप सिर्फ 0.05 से 0.10 फीसदी एक्‍सपेंस रेशियो में व्‍यापक इंडेक्‍स ईटीएफ खरीद और बेच सकते हैं.

​कब निवेशक ईटीएफ में पैसा लगाते हैं?

​कब निवेशक ईटीएफ में पैसा लगाते हैं?

जो निवेशक यह तय नहीं कर पाते हैं किस शेयर या सेगमेंट में अपना पैसा लगाएं, वे अक्‍सर इंडेक्‍स ईटीएफ में निवेश करते हैं. इसकी मदद से उन्‍हें निवेश को बनाए रखने में मदद मिलती है. अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर इनकी लोकप्रियता बढ़ने का कारण यह है कि इन्‍होंने हाल में सक्रिय रूप से प्रबंधित किए जाने वाले फंडों को पीछे छोड़ा है.

​क्‍या हैं नुकसान?

​क्‍या हैं नुकसान?

कुछ कम लोकप्रिय ईटीएफ में बहुत अधिक बोली हो सकती है जो आपका खरीद मूल्‍य बढ़ा दें या आपको बेचने के वक्‍त पर्याप्‍त लिक्विडिटी नहीं मुहैया कराएं. अगर आप ईटीएफ यूनिटों का बहुत कम हिस्‍सा खरीदते और बेचते हैं तो ब्रोकरेज और डीमैट चार्ज ज्‍यादा बैठ सकते हैं.

Web Title : what is exchange traded fund or etf, how investing is useful in it?
Hindi News from Economic Times, TIL Network

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