वैश्विक बाजार

वैश्विक बाजार
नई दिल्ली, 13 जून (हि.स.)। कमजोर ग्लोबल संकेत और अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव के कारण भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में आज भूचाल की स्थिति बनती दिख रही है। पिछले कारोबारी सत्र यानी शुक्रवार को शेयर बाजार में आई जोरदार गिरावट (strong fall) के बाद आज सप्ताह के पहले कारोबारी दिन ही बाजार बुरी तरह से दबाव नजर आ रहा है।
लगातार हो रही बिकवाली के कारण शुरुआती 1 घंटे के कारोबार में ही बाजार में करीब 3 प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी है। बीएसई का सेंसेक्स शुरुआती 1 घंटे के कारोबार में 1,550 अंक से अधिक लुढ़क चुका है। वहीं एनएसई के निफ्टी में भी 450 अंक से अधिक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है।
शेयर बाजार के सभी इंडेक्स (index) फिलहाल बिकवाली के दबाव की वजह से लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं। सबसे ज्यादा गिरावट बैंकिंग शेयरों में नजर आ रही है। मेटल और आईटी सेक्टर के शेयर में भी करीब 2 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट है। बाजार में दबाव का ये आलम है कि सेंसेक्स में शामिल 30 शेयरों में से सिर्फ सन फार्मास्यूटिकल्स का शेयर मामूली बढ़त के साथ कारोबार कर रहा है, जबकि वैश्विक बाजार शेष सभी 29 शेयर बिकवाली के दबाव में लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स आज अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव की वजह से 1,118.83 अंक की कमजोरी के साथ 53,184.61 अंक के स्तर पर खुला। कारोबार की शुरुआत होते ही बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय बाजार से अपना पैसा निकालने के चक्कर में चौतरफा वैश्विक बाजार बिकवाली शुरू कर दी। बिकवाली के इस जबरदस्त दबाव की वजह से सेंसेक्स तेजी से नीचे की ओर से फिसलने लगा। शुरुआती आधे घंटे के कारोबार में ही सेंसेक्स गिरकर 52,800.73 अंक तक पहुंच गया था।
इस गिरावट के बाद घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने लिवाली करके शेयर बाजार को संभालने की कोशिश की, जिसके कारण सेंसेक्स की स्थिति में अगले 10 मिनट तक कुछ सुधार होता हुआ नजर आया। लेकिन उसके बाद विदेशी निवेशकों ने बाजार में बिकवाली का दबाव (selling pressure) एक बार फिर बढ़ा दिया, जिसके कारण सेंसेक्स दोबारा गोता लगाने के लिए मजबूर हो गया।
जोरदार बिकवाली के कारण सुबह 10 बजे के थोड़ी देर बाद ही सेंसेक्स 1,568.46 अंक की गिरावट के साथ 52,734.98 अंक के स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि इस स्तर पर हुई मामूली खरीदारी के कारण सेंसेक्स की स्थिति में मामूली सुधार भी हुआ। बाजार में लगातार हो रही खरीद बिक्री के बीच शुरुआती 1 घंटे का कारोबार होने के बाद सेंसेक्स 1,545.31 अंक यानी 2.88 प्रतिशत की गिरावट के साथ वैश्विक बाजार 52,758.13 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा था।
सेंसेक्स की तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के निफ्टी ने 324.25 अंक की कमजोरी के साथ 15,877.55 अंक के स्तर से आज के कारोबार की शुरुआत की। शुरुआती कारोबार में ही विदेशी निवेशकों की ओर से बिकवाली का दबाव बना दिए जाने के कारण निफ्टी भी पहले आधे घंटे के कारोबार में वैश्विक बाजार ही गिरकर 15,772.10 अंक के स्तर पर पहुंच गया।
इस स्तर पर बाजार में हुई खरीदारी से निफ्टी की स्थिति में भी मामूली सुधार हुआ। लेकिन इसके बाद एक बार फिर बिकवाली का दबाव बन जाने के कारण निफ्टी 451.90 अंक यानी 2.77 प्रतिशत का गोता लगाकर 15,749.90 अंक के स्तर पर पहुंच गया। बाजार में लगातार हो रही खरीदारी और बिकवाली के बीच शुरुआती 1 घंटे का कारोबार होने के बाद निफ्टी 448.05 अंक की गिरावट के साथ 15,753.75 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा था।
कमजोर ग्लोबल संकेतों के कारण आज घरेलू शेयर बाजार ने प्री ओपनिंग सेशन (pre opening session) में भी जोरदार गिरावट के साथ कारोबार की शुरुआत की थी। इस सेशन में बीएसई का सेंसेक्स 1,124.71 अंक यानी 2.07 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 53,178.73 अंक के स्तर पर था। वहीं निफ्टी प्री ओपनिंग सेशन में 276.30 अंक यानी 1.68 प्रतिशत की गिरावट के साथ 15,925.50 अंक के स्तर पर पहुंचा हुआ था।
इसके पहले पिछले सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन यानी शुक्रवार को सेंसेक्स 1,016.84 अंक यानी 1.84 प्रतिशत गिरकर 54,303.44 अंक के स्तर पर बंद हुआ था। वहीं निफ्टी ने 276.30 अंक यानी 1.68 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 16,201.80 अंक के स्तर पर शुक्रवार के कारोबार का अंत किया था।
मध्य नवंबर के बाद वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार की संभावना
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हालही में, अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (ISO) ने 02 सितम्बर को अपने रिपोर्ट में भारत और थाईलैंड में कम उत्पादन के कारण वैश्विक बाजार में 4.76 मिलियन टन चीनी की कमी का अनुमान जताया था। जिसका सीधा असर कीमतों में देखा जाने की संभावना बनी हुई है। अगर वैश्विक बाजार में चीनी कीमतें बढ़ती है, तो निर्यात भी बढ़ेगी और राजस्व की समस्या से परेशान मिलों को भी राहत मिलने की संभावना बनी हुई है। नवंबर मध्य के बाद भारत से चीनी के निर्यात सौदों में भी सुधार आने का अनुमान है। पिछले कुछ महीनों से वैश्विक बाजार में चीनी कीमतों में दबाव देखा जा रहा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने एक इंटरव्यू में कहा है की वैश्विक बाजार में अब चीनी के दाम 20 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। इसमें 10.50 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी को मिलाकर भाव 30.50 रुपये प्रति किलो होता है। केंद्र सरकार ने चीनी का न्यूनतम बिक्री भाव 31 रुपये प्रति किलो तय किया है। मिलों की लागत इससे ज्यादा है। चीनी मिलें केवल अधिशेष को कम करने के लिए थोड़ा बहुत निर्यात कर रही हैं। चालू पेराई सीजन में अगस्त के मध्य तक 37 से 38 लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ है। अक्टूबर 2019 से चीनी का नया पेराई सीजन 2019-20 शुरू होगा। अक्टूबर के अंत तक ब्राजील का उत्पादन लगभग बंद हो जाएगा। उस समय विश्व बाजार में चीनी की उपलब्धता 40 से 50 लाख टन कम होने का अनुमान है। जिससे वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार आ सकता है, और जिससे निर्यात भी बढ़ने की संभावना है।
सूखा और बाढ़ से गन्ना फसल को क्षति : बुआई में भी गिरावट…
महाराष्ट्र और कर्नाटक में पहले सूखा और बाद में बाढ़ से गन्ने की फसल को नुकसान हुआ है। इस कारण पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले नए पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 282 लाख टन रहने का अनुमान है। यह चालू पेराई सीजन के 330 लाख टन से 48 लाख टन कम है।
केंद्र सरकार ने 28 अगस्त को 6,268 करोड़ रुपये की चीनी निर्यात सब्सिडी योजना की घोषणा की, जिससे देश को 60 लाख टन चीनी निर्यात हासिल करने में मदद मिलने की उम्मीद है। देश चीनी अधिशेष से जूझ रहा है और इसलिए सरकार का मकसद चीनी निर्यात को बढ़ावा देना है। कैबिनेट ने चीनी सीजन 2019-20 के लिए चीनी मिलों को निर्यात करने के लिए 10,448 रुपए प्रति टन के हिसाब से सब्सिडी देने को मंजूरी दी है। चीनी निर्यात का पैसा कंपनी के खाते में नहीं बल्कि किसानों के खाते में जाएगा, और बाद में शेष राशि, यदि कोई हो, मिल के खाते में जमा की जाएगी।
वैश्विक बाजार
येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री विलियम नॉर्डहॉस ने अपना संपूर्ण जीवन जलवायु परिवर्तन के असर को समझने और वैश्विक तापमान को रोकने के लिए कार्बन टैक्स की वकालत में समर्पित किया है।
यह मामूली संयोग नहीं है कि जिस दिन उनका शोध आर्थिक वैश्विक बाजार विज्ञान के नोबेल मेमोरियल पुरस्कार में साक्षा किया गया, उसी दिन संयुक्त राष्ट्र पैनल ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की। वास्तव में, यह शोध नॉर्डहॉस के अधिकांश कार्यों पर आधारित है और हमें चेतावनी देता है कि पर्यावरणीय आपदा से बचने के लिए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे करने के लिए करीब 12 साल ही हैं।
यह चेतावनी और यह पुरस्कार ऐसे समय पर आया है जब देखा जा रहा है कि कुछ अमेरिकी इस ओर ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं। अमेरिका अब जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे के लिए बने पेरिस समझौते का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है। देश का एक व्यापक वर्ग अभी भी समस्या को मानने से इनकार करता है और कुछ राज्य और नीति निर्माता जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान को अपने निर्णय में शामिल नहीं करते।
लेकिन नॉर्डहॉस का कार्य इस बात पर नहीं है कि कुछ लोग या फिर नीति-निर्माता जलवायु परिवर्तन पर विश्वास करते हैं या नहीं। यह मूलत: बाजार और आने वाले वर्षों में मानवता का सामना करने वाले सबसे गंभीर मुद्दे को संबोधित करने की क्षमता के बारे में है।
वह अर्थशास्त्र और प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य करने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए समाधान खोजने के बारे में लगे हैं। उनके शोध यह आशा जगाते हैं कि मनुष्य अब भी वैश्विक आपदा को रोक सकता है।
जलवायु परिवर्तन का विज्ञान
नॉर्डहॉस के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक यह था कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित जटिल मुद्दे को भी उन्होंने बड़े ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए “क्लाइमेट कैसिनो” में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हुए अनेक संबंधित विषयों पर लिखा है। विज्ञान से लेकर ऊर्जा और अर्थशास्त्र से लेकर राजनीति तक के विषय और उपाय उन्होंने चिन्हित किए हैं जो जलवायु परिवर्तन का विनाश रोकने के लिए जरूरी हैं। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार, “यह वैश्विक तापमान का मुख्य स्रोत है, जिसे एक शानदार अर्थशास्त्री ने अपनी नजरों से देखा है।”
यद्यपि उनका लेखन सुलभ था, लेकिन उन्होंने दिखाया कि वह अब भी अनुमानों की अनिश्चितता से ही जूझ रहे हैं। उन्होंने हमें यह दिखाया है वैश्विक बाजार कि कैसे मनुष्य ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के माध्यम से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही उन्होंने इसकी जटिलता को बहुत ही ईमानदारी के साथ रखा है।
उनके शोध का आधार यह था कि पर्यावरण सबके लिए है यानि सार्वजनिक है, सभी द्वारा साझा किया गया है और अब तक किसी भी पर्याप्त या उचित तरीके से इसका भुगतान नहीं किया गया है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि हम सब इससे लाभान्वित होते हैं लेकिन हम इसके लिए कोई भुगतान नहीं करते। हम सभी को इसके क्षरण से नुकसान हो रहा है जिसका मूल्य बाजार में नहीं लगाया जा सकता।
अर्थनीति और जलवायु का मॉडल
नॉर्डहॉस ने 25 डॉलर प्रति टन कार्बन पर टैक्स लगाने की वकालत की या फिर ऐसी योजना लाने पर जोर दिया जिससे कंपनियों को प्रदूषण के लिए आर्थिक भुगतान करना पड़े। यह समस्या से निपटने के लिए रास्ता खोजने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
नॉर्डहॉस ने इसे अपने परिपूर्ण मॉडलों के जरिए दिखाया कि इस तरह के कर और अन्य कारक अर्थव्यवस्था और जलवायु दोनों को कैसे प्रभावित करते हैं, यह दर्शाते हुए कि वे कैसे विकसित होते हैं- जिसे “इंटीग्रेटेड असेसमेंट” मॉडल के रूप में जाना जाता है।
डायनामिक इंटीग्रेटेड क्लाइमेट इकॉनोमी मॉडल इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जो अर्थशास्त्र, पारिस्थितिकी और पृथ्वी विज्ञान से संबंधित जानकारी के उपयोग करने हेतु एक सतत ढांचा प्रदान करता है। यह मॉडल हमें यह जानकारी देता है कि कुछ नीति दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय, परिणामों को कैसे प्रभावित करती हैं।
इस तरह उन्होंने यह महसूस किया कि सरकारों द्वारा कुछ मार्गदर्शन के साथ बाजारों पर भरोसा करने वाली योजनाएं- जैसे कार्बन करों को स्थापित करना, समस्या से निपटने के लिए सबसे कारगर रूप से काम करेगा। और इस प्रकार वह बड़ी स्पष्टता के साथ दिखाने में कारगार हुए कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का सबसे महंगा तरीका कार्बन कर के साथ जीवाश्म ईंधन की कीमत को बढ़ाना है। इसका परिणाम यह होगा कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए ईंधन के कम इस्तेमाल करने में उपयुक्त प्रोत्साहन मिलेगा।
नॉर्डहॉस जलवायु परिवर्तन से होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाने में भी सक्षम थे। उन्होंने पाया कि जो लोग सबसे अधिक नुकसान में रहेंगे वे गरीब और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग होंगे।
बाजार और उसका मार्गदर्शन
नॉर्डहॉस ने माना कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा और प्रभावी समाधान बाजार से ही आ सकता है जो इस धरती का सबसे शाक्तिशाली तंत्र है। वह समझते थे कि बाजार को आगे बढ़ाने की जरूरत है, साथ ही इस समय इसके लिए वे सरकारी नीतियों से सहायता की भी जरूरत समझते थे। नॉर्डहॉस ने पाया कि कार्बन मूल्य निर्धारण इसके समाधान में सबसे शक्तिशाली कारक है। 18वीं सदी के अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने भी इसमें बाजार का अदृश्य हाथ ही बताया था। उन्होंने बताया था कि पूंजीवादियों की जरूरत है और उन्हें कानून की दरकार है। राष्ट्रीय मामलों के संपादक युवल लेविन ने हमें 2010 में याद दिला दिया था कि बाजार को एक सही मार्गदर्शक की जरूरत है। अंतत: नॉर्डहॉस ने दिखाया है कि कैसे पूंजीवाद जलवायु परिवर्तन की चुनौती को बढ़ाने में सक्षम है। ठीक वैसे ही जैसे अन्य समस्याओं जैसे एकाधिकार, ओजोन क्षरण और धूम्रपान के खतरे को इसने बढ़ाया है।
दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विनाश पर अपनी नई चेतावनी जारी की है। ऐसे में नॉर्डहॉस के गहरे विचार, विधिवत कार्य, हमें याद दिलाते हैं कि अब भी उम्मीद है। यही मानवीय सरलता और संसाधन बाजार को एक समाधान दे सकता है और यही हमारे वाणिज्य और बातचीत की संरचना से पूंजीवाद को एक बेहतर रूप दे सकता है।
(हॉफमैन मिशिगन विश्वविद्यालय के रोस स्कूल ऑफ बिजनेस एंड स्कूल ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी में प्रोफेसर हैं। क्रॉमविक यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन एनर्जी इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से हुए विशेष समझौते के तहत प्रकाशित)