अभी बिटकॉइन का क्या मोल है

निवेश के साधन के तौर पर सरकार चाहती है
Cryptocurrency: 100,000 डॉलर तक पहुंच सकता है बिटकॉइन? 2022 में क्रिप्टोकरेंसी के बारे में क्या कहते हैं विश्लेषक
हॉन्गकॉन्ग में सुबह 9:52 बजे बिटकॉइन 0.2% के उछाल के साथ लगभग 46,100 डॉलर पर कारोबार कर रहा था। यहां कुछ मार्केट विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी राय दी है कि इस नए साल यानी 2022 में क्रिप्टोकरेंसी का क्या रुख हो सकता है और इस साल खासकर अमेरिका के संट्रेल बैंकिंग सिस्टम फेडरल रिजर्व की नीतियों का डिजिटल करेंसी पर क्या और कैसा असर पड़ सकता है।
Bloomberg की एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्रिप्टो लेंडर नेक्सो के मैनेजिंग पार्टनर एंटोनी ट्रेंचेव ने एक ईमेल में कहा, "2022 में बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी पर सबसे ज्यादा असर केंद्रीय बैंक की नीति के चलते पड़ेगा। उन्होंने कहा, "लोन सस्ता रहेगा क्योंकि इसका क्रिप्टो पर बड़ा असर होगा। फेड रिजर्व की इतनी क्षमता नहीं है कि वह शेयर बाजार में 10-20% गिरावट का खतरा मोल ले सके। इसके साथ ही बॉन्ड मार्केट पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है।
करेंसी के लीगल टेंडर होने का क्या है मतलब?
सरकार द्वारा किसी भी करेंसी को लीगल टेंडर के रूप में स्वीकारने का मतलब उस देश के भीतर कानूनी रूप से उस करेंसी को मान्यता देना होता है. यानी आप उस करेंसी का इस्तेमाल करके अपनी रोजमर्रा की जरूरत से जुड़े सामान खरीद सकेंगे. चूंकि अब अल साल्वाडोर ने बिटकॉइन को लीगल टेंडर के रूप में अपना लिया है, वहां के लोग बिटकॉइन का करेंसी के तौर पर इस्तेमाल कर सकेंगे.
आपको बता दें कि Al Salvador की अभी अपनी कोई करेंसी नहीं है. वहां के लोग अमेरिकी डॉलर में ही लेन-देन का काम करते हैं.
बुकेले अभी बिटकॉइन का क्या मोल है के एडमिनिस्ट्रेशन ने देशभर में 200 बिटकॉइन एटीएम स्थापित किए हैं जिसका इस्तेमाल करके लोग यूएस डॉलर के बदले में बिटकॉइन ले सकेंगे.
RBI ला रहा भारत की पहली डिजिटल करेंसी, बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो से ये कैसे अलग?
सरकार ने बिटकॉइन को अपनाने के पीछे क्या कारण बताया?
अल साल्वाडोर सेंट्रल अमेरिका का छोटा सा देश है. देश की लगभग 25% जनसंख्या अमेरिका में अपना गुजर बसर करती है. अमेरिका या विदेश में रह रहे लोग जब देश में पैसा (जिसे remittance कहा जाता है) भेजते हैं तो बीच में उस पर कई तरह के शुल्क लगते हैं. 2020 में विदेश में रह रहे लोगों ने करीब 6 अरब डॉलर अभी बिटकॉइन का क्या मोल है स्वदेश भेजा था जो कि वहां की जीडीपी (GDP) का करीब 20 फीसदी है. सरकार ने बताया कि, बिटकॉइन की वजह से हम हर साल remittance में लगने वाली करीब 400 मिलियन डॉलर लगने वाली फीस बचा सकेंगे.
सरकार ने बताया कि देश में करीब 70% लोग अभी बिटकॉइन का क्या मोल है के पास अपना बैंक खाता नहीं है. इस फैसले के बाद आम लोग भी फाइनेंशियल सिस्टम से जुड़ेंगे.
इस फैसले के विपरीत हाल के जनमत सर्वेक्षणों से पता चला है कि अल सल्वाडोर के करीब 70% लोगों ने बिटकॉइन को लीगल टेंडर देने वाले विचार को अभी बिटकॉइन का क्या मोल है अस्वीकार किया और वो अमेरिकी डॉलर का उपयोग करना पसंद करेंगे.
विश्व बैंक और IMF ने सरकार को किया सचेत
यह भी रोचक है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने बिटकॉइन के उपयोग के जोखिमों को लेकर El salvador को चेतावनी दी है. पता हो कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी के वैल्यू में काफी ज्यादा उतार -चढ़ाव होता है. इसी वर्ष अप्रैल से मई के बीच बिटकॉइन ने अपना लगभग आधा मूल्य खो दिया था.
अल सल्वाडोर की सरकार ने विश्व बैंक (World Bank) से इसे अपनाने में मदद करने के लिए अनुरोध किया था. हालांकि विश्व बैंक ने पर्यावरण और ट्रांसपेरेंसी कमियों का हवाला देते हुए सरकार के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.
हम इस लॉन्च के साथ बिल्कुल नई चीज प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन मुझे इस प्रयोग को होते हुए देखकर खुशी हो रही है, और मुझे लगता है कि हम इससे बहुत कुछ सीखेंगे.
डिजिटल करेंसी से खतरा: RBI क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगाने के पक्ष में, कानूनी विशेषज्ञों ने कहा, जल्दी करना चाहिए
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अपनी 8 साल पुरानी राय पर वापस आ रहा है। यह क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है। हालांकि कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जल्दी कर देना चाहिए, क्योंकि इसमें पहले ही बहुत देरी हो चुकी है।
2013 में खतरे की आशंका अभी बिटकॉइन का क्या मोल है जताई गई थी
दरअसल RBI ने साल 2013 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर एक नोट जारी किया था। इस नोट में इसने कहा था कि क्रिप्टोकरेंसी भारतीयों के फाइनेंशियल, लीगल और सिक्योरिटी के लिए जोखिम है। इसके चार साल बाद 2017 में दुनिया की पहली क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन को लॉन्च किया गया। अब 8 साल बाद रिजर्व बैंक इस पर बैन लगाने के पक्ष में है।
बिटकॉइन पहुंचा 43 लाख रुपये के पार, जानें यहां तक कैसे पहुंचा
बिटकॉइन पहुंचा 43 लाख रुपये के पार, जानें यहां तक कैसे पहुंचा (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: आज की तारिख में एक बिटक्वाइन की कीमत 43 लाख रुपये से ज्यादा है। चंद वर्ष पहले इसे कोई जानता तक नहीं था और ये मिट्टी के मोल थी। जबसे टेस्ला के अभी बिटकॉइन का क्या मोल है मालिक एलोन मस्क ने बित्क्वाइन और डॉगक्वाइन के बारे में खुल कर पैरवी की है तबसे इनकी लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ी है।
क्या है बिटकॉइन?
बिटकॉइन एक डिजिटल मुद्रा है क्योंकि यह सिर्फ वर्चुअल रूप में ही उपलब्ध है। यानी इसका कोई नोट या कोई सिक्का नहीं है। यह एन्क्रिप्ट किए हुए एक ऐसे नेटवर्क के अंदर होती है जिसपर किसी बैंक या सरकार का कंट्रोल नहीं होता है। इससे बिटकॉइन या उसके जैसी किसी भी क्रिप्टोकरेंसी को पूरी दुनिया में एन्क्रिप्शन की मदद से इसका इस्तेमाल करने वालों की पहचान और गतिविधियों को गुप्त रखा जाता है।
बिटकॉइन दरअसल कंप्यूटर कोड की एक सीरीज है। यह जब भी एक यूजर से दूसरे के पास जाता है तो इस पर डिजिटल सिग्नेचर किए जाते हैं। लेन देन खुद को गोपनीय रख कर भी किया जा सकता है। इसी वजह से यह अच्छे और बुरे, दोनों लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।
बिटकॉइन को डिजिटल वॉलेट में रखा जाता है जिसे या तो कॉइनबेस जैसे एक्सचेंज के जरिए ऑनलाइन हासिल किया जा सकता है या फिर ऑफलाइन हार्ड ड्राइव में एक खास सॉफ्टवेयर के जरिए। बिटकॉइन का समुदाय यह तो अभी बिटकॉइन का क्या मोल है जानता है कि कितने बिटकॉइन हैं लेकिन वे कहां हैं इसके बारे में सिर्फ अंदाजा ही अभी बिटकॉइन का क्या मोल है लगाया जा सकता है। ये मुद्रा इतनी मशहूर है कि ब्लॉकचेन डॉट इंफो के मुताबिक औसतन हर दिन 3,00,000 लेनदेन होते हैं। हालांकि इसकी लोकप्रियता नगद या क्रेडिट कार्ड अभी बिटकॉइन का क्या मोल है की तुलना में कम ही है। बहुत सारे लोग और कारोबार में इसे भुगतान के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
बिटकॉइन की सुरक्षा
तकनीक के जानकार कुछ लोग जिन्हें माइनर कहा जाता है वो इस सिस्टम में शामिल होते हैं। ब्लॉक चेन हर बिटकॉइन के लेनदेन का हिसाब रखता है। इस तरह से यह उन्हें दो बार बेचे जाने को रोकता है और माइनरों को उनकी कोशिशों के लिए तोहफों में बिटकॉइन दिए जाते हैं। जब तक माइनर ब्लॉकचेन को सुरक्षित रखेंगे इसकी नकल करके नकली मुद्रा बनने का डर नहीं रहेगा।
बिटकॉइन को 2009 में एक शख्स या फिर एक समूह ने शुरू किया जो सातोषी नाकामोतो के नाम से काम कर रहे थे। उस वक्त बिटकॉन को थोड़े से उत्साही लोग ही इस्तेमाल कर रहे अभी बिटकॉइन का क्या मोल है थे। जब ज्यादा लोगों का ध्यान उस तरफ गया तो नाकामोतो को नक्शे से बाहर कर दिया गया। हालांकि इससे मुद्रा को बहुत फर्क नहीं पड़ा यह सिर्फ अपनी आंतरिक दलीलों पर ही चलता रहा।
2016 में एक ऑस्ट्रेलिया उद्यमी ने खुद को बिटकॉइन के संस्थापक के रूप में पेश किया। हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसने कहा कि उसके पास सबूतों को जाहिर करने की "हिम्मत नहीं है।" इसके बाद से इस मुद्रा की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है।
पर्यावरण को नुकसान
कोई भी क्रिप्टोकरेंसी बनाने की प्रक्रिया बेहद खर्चीली और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली होती है। किसी भी क्रिप्टोकरेंसी के निर्माण में एक-दो नहीं बल्कि हजारों कंप्यूटर एक साथ इस्तेमाल किए जाते हैं। और ये कोई मामूली कंप्यूटर नहीं होते बल्कि हेवी कन्फिगरेशन वाले होते हैं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के मुताबिक, बिटकॉइन माइनिंग इतनी बिजली खपाता है जितनी स्विट्ज़रलैंड एक साल में बिजली पैदा करता है।
क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण को लेकर मुखर लोग बिटकॉइन के पूरी थ्योरी को ही नकारते हैं। उन्हें इसका इस्तेमाल समझ नहीं आता क्योंकि दुनियाभर में अमीरी-गरीबी की खाई इतनी गहरी है और समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां तक अभी तक बिजली जैसी बुनियादी जरूरत नहीं पहुंच पाई है। पर्यावरणविदों का मानना है कि डिजिटल करेंसी को लेकर ऐसा पागलपन और एक खास तबके का बिजली का यूं लापरवाही से इस्तेमाल करना, अन्याय है। इसमें कोई हैरानी नहीं होगी अगर अगले क्लाइमेट समिट में बिटकॉइन के विरोध में नारे लगें।
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