वास्तविक उपज

पृष्ठ : कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/११
मस्तिष्क की चिन्तन-क्रिया जिसे वह विचार-तत्व का नाम देकर एक स्वतंत्र वस्तु मान लेते हैं, वास्तविक संसार का देमिऊर्ग (निर्माता, रचयिता) है। इसके विपरीत , मेरे लिए विचार-तत्व मानव-मस्तिष्क द्वारा प्रतिबिम्बित , और चिन्तन के विभिन्न रूपों में परिवर्तित , बाह्य संसार को छोड़कर और कुछ नहीं।" मार्क्स के पदार्थवादी दर्शन के पूर्ण रूप से अनुकूल , और उसकी व्याख्या करते हुए, एंगेल्स ने 'ड्यूहरिंग मत-खंडन' में (जिसकी पाण्डुलिपि मार्क्स ने पढ़ी थी), लिखा थाः “संसार की एकता उसके अस्तित्व में नहीं है। संसार की वास्तविक एकता उसकी भौतिकता में है. जो दर्शन और प्रकृति-विज्ञान के एक सुदीर्घ और कठिन विकास से सिद्ध होती है . गति पदार्थ के अस्तित्व का रूप है। कहीं भी पदार्थ का अस्तित्व गति के बिना नहीं रहा और न ही गति पदार्थ के बिना हो सकती है .. परन्तु यदि . यह प्रश्न उठाया जाय कि विचार और चेतना क्या हैं और इनका उद्गम क्या है, तो यह प्रकट हो जाता है कि वे मानव- मस्तिष्क की उपज हैं और मनुष्य स्वयं प्रकृति की उपज है जिसका अमुक वातावरण में, और प्रकृति के साथ, विकास हुआ है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव-मस्तिष्क की उपज अन्ततोगत्वा प्रकृति की ही उपज होने के कारण शेष प्रकृति का विरोध नहीं करती , वरन् उसके अनुरूप है। " हेगेल आदर्शवादी थे, अर्थात् उनके लिए मस्तिष्क के विचार वास्तविक चीज़ों और प्रक्रियाओं के कमोबेश भाववाचक प्रतिबिम्ब नहीं थे (मूल में Abbilder --प्रतिच्छाया; कभी-कभी एंगेल्स नक़ल उल्लेख करते हैं), वरन् इसके विपरीत , उनके लिए चीजें और उनका विकास , किसी उस विचार-तत्व के ही गोचर रूप थे, जिसका अस्तित्व इस संसार के पहले ही कहीं न कहीं अवश्य था।" अपनी पुस्तक 'लुडविग फ़ायरबाख' में जिसमें फ़ायरबान के दर्शन पर अपने और मार्क्स के मतों की वह व्याख्या करते हैं, और जिसे १८४४-१८४५ में हेगेल, फायरबाल और इतिहास की पदार्थवादी धारणा पर मार्क्स के साथ मिलकर लिखी हुई अपनी एक पुरानी पांडुलिपि को दोबारा पढ़ने के बाद उन्होंने प्रेस में दिया था- एंगेल्स ने लिखा था : वास्तविक उपज वास्तविक उपज सभी तरह के दर्शनों का , विशेषकर आधुनिक दर्शन का मूल महाप्रश्न चित् और सत् (विचार और अस्तित्व),
राज्यों की लेटलतीफी से फसल बीमा दावों के भुगतान में विलंब
23 अगस्त 2021, नई दिल्ली । राज्यों की लेटलतीफी से फसल बीमा दावों के भुगतान में विलंब – केन्द्र सरकार भी मानती है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में दावों के भुगतान में विलंब का प्रमुख कारण राज्य सरकारों द्वारा प्रीमियम सब्सिडी के भुगतान में लेटलतीफी है। इसके अलावा राज्यों द्वारा आंकड़े देने में देरी, बीमित किसानों अपूर्ण या गलत जानकारी भी भुगतान में विलंब के प्रमुख कारणों में से है। हालांकि केन्द्र सरकार पीएमएफबीवाई के कार्यान्वयन पर नियमिति निगरानी रखती है और समय-समय राज्य सरकारों को चेताती भी है। केन्द्र सरकार ने योजना में संशोधन कर दावों के विलंब से भुगतान पर राज्यों और बीमा कंपनियों पर दण्ड का प्रावधान भी किया है। लेकिन यह भी कारगर होता नजर नहीं वास्तविक उपज आ रहा।
नई दिल्ली। लोकसभा में कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि किसानों को दावों का भुगतान समय पर करने और योजना को अधिक किसान अनुकूल बनाने के लिये सरकार ने क्रमश: रबी 2018 और खरीफ से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में व्यापक रूप से संशोधन किये हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को बुवाई पूर्व से फसल कटाई के बाद तक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के लिये आर्थिक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। चूँकि प्राकृतिक आपदा से व्यापक रूप से नुकसान होता है इसलिये क्षेत्रवार बीमा इकाई का निर्धारण कर बीमित मौसम के अंत में फसल कटाई प्रयोगों के द्वारा नुकसान का आकलन किया जाता है।
केन्द्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा पीएमएफबीवाई के कार्यान्वयन की नियमित रूप से निगरानी की जाती है। इसके बाद भी फसल बीमा दावों के निपटान में राज्यों द्वारा बीमा कम्पनियों को प्रीमियम सब्सिडी के भुगतान में देरी, आंकड़े देने में देरी, उपज संबंधी विवाद, किसानों के बैंक खातों की अपूर्ण जानकारी या गलत प्रविष्टि जैसे कारणों से विलंब होता है।
श्री तोमर ने बताया कि पीएमएफबीवाई में किसानों के दावों को समय पर निपटाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ भी लिया जा रहा है। राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केन्द्र आग्रह डेटा, रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी, ड्रोन इमेज के प्रायोगिक अध्ययन कर रहा है।
किसानों को 12 प्रतिशत ब्याज
पीएमएफबीवाई योजना के संशोधित दिशा-निर्देशों के प्रावधान के अनुसार बीमा कंपनियों द्वारा विलंब से दावा निपटान तथा राज्य सरकारों द्वारा निधियों को जारी करने में विलंब के लिए दंड के प्रावधान किए गये हैं।
अंतिम उपज डेटा प्राप्त होने और पूर्ण फसल क्षति सर्वेक्षण को तिथि से दिशा निर्देशों में निर्धारित अवधि के बाद की अवधि के लिए बीमा कंपनियों को किसानों को 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष दर से ब्याज का भुगतान करना चाहिए।
फसल बीमा दावों की गणना
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के प्रावधानों के अनुसार, अंतिम/सीजन के अंत के दावों की गणना और भुगतान उपज में प्रतिशत कमी के आधार पर किया जाता है – यदि बीमित मौसम में बीमा इकाई (फसल कटाई प्रयोगों-सीसीई की अपेक्षित संख्या से उपज डेटा के आधार पर गणना की गई) के लिए बीमित फसल की ‘वास्तविक उपज’ प्रति हेक्टेयर ‘थ्रेशहोल्ड उपज’ से कम होती है, तो परिभाषित क्षेत्र में उस फसल को उगाने वाले सभी बीमित किसानों को उपज मैं समान परिमाण में कमी का सामना करना पड़ा मान लिया जाता है और प्रति हेक्टेयर दावों पर निम्नलिखित फॉर्मूला के अनुसार कार्रवाई की जाती है :
थ्रेसहोल्ड उपज (टीवाई)-वास्तविक उपज (एवाई) …
& बीमित राशि
थ्रेसहोल्ड उपज (टीवाई)
(थ्रेशोल्ड उपज (टीवाई) की गणना 7 वर्षों में से सर्वश्रेष्ठ 5 वर्षों के मूविंग औसत को लेकर की जाती है)
इसके अलावा, यदि मौसम के दौरान अपेक्षित उपज, संबंधित बीमा इकाई में थ्रेसहोल्ड उपज के 50 प्रतिशत से कम होने की संभावना होती है तो फसल के मौसम के दौरान प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों (मध्य-मौसम की प्रतिकूलता) के मामले में बीमित किसानों को तत्काल राहत प्रदान की जाती है। देय राशि संभावित दावों का 25 प्रतिशत है, जो सीसीई के माध्यम से प्राप्त उपज मूल्यांकन डेटा के आधार पर अंतिम दावों के विरूद्ध समायोजन के अध्यधीन है।
समिति द्वारा नुकसान की गणना
हालांकि, ओलावृष्टि, भूस्खलन, बाढ़, बादल फटने और प्राकृतिक आग के स्थानीय जोखिमों और चक्रवात, चक्रवाती/बेमौसम वर्षा के कारण फसलोपरांत नुकसान और कटाई के बाद 14 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के लिए ओलावृष्टि के कारण नुकसान की गणना संबंधित राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति जिसमें राज्य के अधिकारी और बीमा वास्तविक उपज कंपनियों के पदाधिकारी और नुकसान मूल्यांकनकर्ता शामिल हों, के द्वारा निरीक्षण पर व्यक्तिगत बीमित खेत आधार पर की जाती है। साथ ही, मध्य मौसम प्रतिकूलता के मामले में रोकी गई बुवाई/विफल अंकुरण और तदर्थ दावों के दावों के भुगतान का प्रावधान है।
किसानों को लुभाने में जुटी नीतीश सरकार, PM फसल योजना से कैसे खास है यह योजना
हाल में हुए उपचुनाव में हार के बाद अपना जनाधार बचाए रखने की कोशिशों में जुटी नीतीश सरकार की ओर से इसे बढ़ा दांव माना जा रहा है. केंद्र ने भी गन्ना किसानों के लिए 8,500 करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज देने की योजना पर अपनी मंजूरी दे दी है.
सुजीत झा
- पटना,
- 06 जून 2018,
- (अपडेटेड 06 जून 2018, 2:16 PM IST)
देश में आम चुनाव का मौसम आने से पहले केंद्र और राज्य सरकारों ने एक फिर किसानों की सुध लेना शुरू कर दिया है. पहले केंद्र ने गन्ना किसानों के लिए बड़ी राहत देते हुए उनका बकाया का भुगतान करने का ऐलान किया, वहीं अब बिहार ने मौसम की मार से परेशान किसानों के हित के लिए राज्य 'फसल सहायता योजना' की शुरुआत कर दी है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी राज्य 'फसल सहायता योजना' से मौसम की मार की वजह से फसल नुकसान का सामना करने वाले बिहार के लाखों किसानों को फायदा मिलेगा. इससे पहले राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चल रही थी, लेकिन उसमें किसानों को ज्यादा मुआवजा नहीं मिलता था.
राज्य सरकार ने किसानों के लिए 'समावेशी फसल सहायता योजना' के नाम से एक विशेष फसल बीमा योजना भी शुरू की है. इस योजना के लागू होने के बाद प्रदेश में पहले से जो भी फसल बीमा योजनाएं चल रही थीं, उसकी जगह इस नई योजना की शुरुआत की गई है.
हाल में हुए उपचुनाव में हार के बाद अपना जनाधार बचाए रखने की कोशिशों में जुटी नीतीश सरकार की ओर से इसे बड़ा दांव माना जा रहा है. वहीं केंद्र ने भी गन्ना किसानों के लिए 8,500 करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज देने की योजना पर अपनी मंजूरी दे दी है.
कितना मिलेगा फायदा
'फसल सहायता योजना' के तहत बिहार के किसानों को उनके फसल खराब होने की स्थिति पर राज्य सरकार मुआवजा देगी. योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को प्रत्येक खरीफ और रबी की फसल के मौसम में ऑनलाइन पोर्टल पर निबंधन कराना होगा.
योजना के तहत फसल की वास्तविक उपज दर में 20% तक की कमी होने पर 7,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अधिकतम 15 वास्तविक उपज हजार और 20% से अधिक क्षति पर 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर अधिकतम 20 हजार रुपये दिए जाएंगे. इस योजना का लाभ रैयत या गैर रैयत दोनों तरह के किसान उठा सकते हैं.
लाभ लेने के लिए रैयत किसानों को अपनी जमीन का कागज प्रस्तुत करना होगा, जबकि गैर रैयत किसानों को एक स्व-घोषणापत्र देना होगा, जो किसान सलाहकार या वार्ड सदस्य से स्वीकृत होगा.
बिहार PM फसल बीमा योजना से बाहर
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में उनके सरकारी आवास पर हुई कैबिनेट की बैठक के दौरान इस योजना पर मुहर लगी. इसके साथ ही बिहार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दायरे से निकलने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.
इससे पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत केंद्र को 49 प्रतिशत, राज्य को 49 प्रतिशत और किसान को 2 प्रतिशत प्रीमियम राशि के रूप में हिस्सा भुगतान करना पड़ता था, लेकिन इसका फायदा केवल कुछ ऋणी किसानों को मिल पाता था.
राज्य की सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने बताया कि वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत राज्य सरकार की प्रीमियम राशि 495 करोड़ थी जबकि किसानों को मिलने वाली राहत राशि मात्र 221 करोड़ रही. इसी वजह से राज्य के सभी वर्ग के किसानों को राहत पहुंचाने के लिए इस नई समावेशी 'बिहार राज्य फसल सहायता योजना' की शुरुआत की गई है.
इस योजना की शुरुआत करने के साथ ही बिहार ऐसा पहला राज्य बन गया है जहां किसानों को फसल नुकसान पर राहत देने के लिए इस प्रकार की योजना की शुरुआत की गई है. राज्य सरकार की इस नई योजना के लागू हो जाने के बाद प्रदेश में किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए पहले से चल रहे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और अन्य किसी प्रकार की बीमा योजना वास्तविक उपज अब बंद हो जाएगी.
आजादी के 75 वर्ष और कृषि क्षेत्र के वास्तविक सुधार और उत्तर प्रदेश
मिज़ाज की ये पंक्तियाँ वास्तव में एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती बयां करतीं हैं जो कि हरित क्रांति के बाद कृषि क्षेत्र में विकास के अंतराल की एक कहानी है । मौजूदा कानूनों ने भारतीय किसानों को स्थानीय मंडी और बिचौलियों का गुलाम बना रखा था। देश में कृषक के अलावा उत्पादक की प्रत्येक श्रेणी को यह तय करने की स्वतंत्रता हासिल है उन्हें अपने उत्पाद को कहां बेचना है वास्तविक उपज सिवाय भारतीय किसान के ! कृषि बाजारों में प्रस्तावित सुधार जिसकी प्रस्तावना एक भारत एक बाजार की दिशा का रास्ता पकड़ ले तो किसानों की आय दोगुनी की जा सकती है। कृषि क्षेत्र में सुधार के उपचार के रूप में 27 सितंबर 2020 को तीन कृषि से संबंधित अधिनियम सुधारों- को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति प्रदान की।
किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य( संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2020:
इस अधिनियम का उद्देश्य एक ऐसे बाजार तंत्र का निर्माण करना है जहां किसान तथा व्यापारी अपने कृषि उत्पादों का क्रय विक्रय अपनी इच्छा से कर सकें। यह सुधार किसानों और खरीदारों को कृषि उपज को यहां तक कि एपीएमसी मंडियों के बाहर भी बेचने की अनुमति देता है। इस तरह यह विधेयक पारदर्शी और अवरोध रहित अंतर राज्यीय और राज्य के अंतर्गत व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किसानों को एक प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापारिक, रास्ता उपलब्ध कराना सुनिश्चित करता है।
मूल्य आश्वासन और वास्तविक उपज कृषि सेवा अधिनियम पर किसान ( सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम 2020:
इस अधिनियम का उद्देश्य अनुबंध कृषि के लिए एक राष्ट्रीय ढांचे का निर्माण करना है। यह अधिनियम किसानों की सुरक्षा और सशक्तीकरण सुनिश्चित करते हुए उन्हें कृषि व्यवसाय से जुड़ी कंपनियों, प्रसंस्करण कर्ताओं, व्यापारियों, निर्यातकों या कृषि सेवाओं के बड़े खुदरा विक्रेताओं से जुड़ने में सक्षम बनाता है ताकि कृषक भविष्य की खेती की उपज की बिक्री के लिए एक उचित, पारदर्शी आपसी सहमति पर आधारित ऐसा मूल्य प्राप्त कर सकें जो उन्हें बेहतर और ज्यादा उत्पादन करने में सक्षम बनाये।
आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020:
इस अधिनियम का मूल उद्देश्य जिंसों जैसे, अनाजों, दालों, तिलहनों, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से निकालना है। यह सुधार असाधारण और आपातकाल परिस्थितियों को छोड़कर बार-बार ऊपर जाने वाले स्टॉक (भंडारण) करने की सीमा को समाप्त करना चाहता है।
कृषि सुधार उपचार बनाम व्याधि और किसान:
भारत में किसानों को लंबे समय से अपनी उपज को बेचने और अपने पारिश्रमिक लागत का उचित मूल्य प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है। किसानों को राज्य सरकार के पंजीकृत लाइसेंस धारक आढ़तीया एजेंट को छोड़कर किसी अन्य को कृषि उपज को बेचने की मनाही है इसके साथ ही किसानों के लिए अधिसूचित एपीएमसी बाजार से बाहर कृषि उपज को बेचने पर प्रतिबंध है। एपीएमसी कानून की वजह से ही एक राज्य से दूसरे राज्य में कृषि उत्पाद के आवागमन में परिवहन से जुड़ी अनेक बाधाएं आतीं हैं।
अब तक की बाजार व्यवस्थाओं और एपीएमसी कानूनों की वजह से किसानों को विभिन्न प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ता रहा है। सबसे प्रमुख बात किसानों से अंतिम उपभोक्ता तक उत्पाद पहुंचने की प्रक्रिया में असंख्य बिचौलियों की मौजूदगी है, इससे किसान अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस संबंध में किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2020 किसानों के लिए बाजार के आकार को बढ़ाने का प्रावधान करता है जिससे किसान प्रतिस्पर्धी बाजार में अपनी उपज का वाजिब मूल्य प्राप्त कर सकें। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम 2020 किसानों को प्रसंस्करण कर्ताओं, थोक विक्रेताओं, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों के साथ व्यवसाय करने में पहले से बेहतर तरीके से सक्षम बनाएगी और उन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिए एक समान अवसर प्राप्त होगा। इस अधिनियम से किसान अपने जोखिम को प्रायोजक पर स्थानांतरित कर देंगे इसके अलावा किसानों को स्वयं बेहतर तकनीक से खुद को समर्थ बनाने का अवसर भी प्राप्त होगा। आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2000 जिसका उद्देश्य वास्तव में बाजार में अत्यधिक हस्तक्षेप को कम करना और निजी निवेशकों के दर्द को दूर करना जिससे की लेनदेन की प्रक्रिया और वितरण में निजी निवेश को आकर्षित किया जा सके।इन विचारों का सारांश यह है कि किसानों के लिए स्वतंत्र समावेशी बाजार लब्ध होना चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस दिशा में लगातार कृषि को लाभकारी बनाने के प्रयास जारी हैं । क्योंकि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार कृषि है, इसे लाभकारी बनाकर, न केवल उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर प्रदेश बन सकता है एक सशक्त उन्नत प्रदेश बनने की ओर अग्रसर हो सकता है। इस दिशा में विगत 4 वर्षों में भूमिहीन किसानों व छोटे किसानों को किसान सम्मान निधि योजना व खाद्यान्न की आसान खरीद प्रक्रिया के माध्यम से उन किसानों को सशक्त किया जा रहा है। जो उत्तर प्रदेश राज्य के वास्तविक किसान हैं व जिनके पास आय के अन्य स्रोत नहीं हैं।
विगत 4 वर्षों में उत्तर प्रदेश राज्य की प्रशासनिक क्षमता में अभिवृद्धि हुई है, निसंदेह इसका लाभ उत्तर प्रदेश राज्य में निजी निवेश के नए द्वार खोलेगा जिससे कृषि प्रसंस्करण की दिशा वास्तविक उपज में उत्तर प्रदेश पूरे भारतवर्ष के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता है। आवागमन के बेहतर साधनों ने कृषि उपज को छोटी मंडियों के दायरे से हटाकर राष्ट्रीय स्तर की मंडियों तक पहुंच बना दी है। इस दिशा में एक लोक पहल की आवश्यकता यह भी है कि सक्षम किसान उत्पादक के अलावा नियोक्ता की भूमिका में आगे आयें।
फसल बीमा दावा कैसे बनता है
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत देश में सर्वाधिक 42 लाख किसानों को मध्यप्रदेश में बीमित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खरीफ 2016 के बीमित दावों का भुगतान किया गया है। खरीफ 2016 में सीहोर जिले के 43 हजार 850 कृषकों को 55 करोड़ 50 लाख की दावा राशि स्वीकृत हुई है। देखा जाय तो जिले के एक किसान के मान से 12 हजार 657 रुपये बीमा दावे का औसत आता है। लेकिन पटवारी हल्का अनुसार क्षतिस्तर भिन्न-भिन्न होने से कहीं अधिक और कहीं कम बीमा राशि का भुगतान हुआ।
पाँच वर्ष की औसत उत्पादकता और वास्तविक फसल उत्पादकता के अंतर पर बनता है बीमा दावा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पिछले 5 वर्षों की औसत उत्पादकता (जो फसल कटाई प्रयोग से निकाली जाती है) में वास्तविक फसल उत्पादकता के अंतर पर बीमा दावा बनाया जाता है।
उदाहरण के लिये सीहोर वास्तविक उपज जिले की रेहटी तहसील के पटवारी हल्का 44 में वास्तविक उपज तथा थ्रेश होल्ड उपज में फसल कटाई प्रयोगों में कमी मात्र 2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रही। इस वजह से बीमा दावा राशि अत्यन्त कम रही। दूसरी ओर जिन पटवारी हल्के में फसल कटाई प्रयोगों में थ्रेश होल्ड तथा वास्तविक फसल कटाई में अधिक अंतर रहा, वहाँ ज्यादा फसल बीमा राशि बनी।
उदाहरण के लिये इसी तहसील के पटवारी हल्का 42 में थ्रेश होल्ड उपज से वास्तविक उपज में अंतर फसल कटाई प्रयोगों में 319 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहा। इस कारण से इस पटवारी हल्के के ग्रामों में किसानों को फसल बीमा राशि अधिक मिली।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रावधानों के अनुसार पिछले 5 सालों में फसल कटाई प्रयोगों के मान से वास्तविक उपज के अंतर के अनुसार बीमा राशि का भुगतान होता है। कटाई अंतर कम होने पर बीमा राशि कम प्राप्त होती है और वास्तविक उपज का अंतर ज्यादा होता है तो दावा राशि ज्यादा प्राप्त होती है। यह भी कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्षेत्र आधारित है। किसानवार योजना नहीं है।