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सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं

सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं
ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

Budget 2022 से पहले भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में आई बड़ी गिरावट

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 67.8 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 634.287 अरब डॉलर पर पहुंचा

Budget 2022 से पहले भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में आई बड़ी गिरावट

आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट देखी गई है. आंकड़ों के मुताबिक, 21 जनवरी को वीकेंड के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार 678 मिलियन डॉलर की गिरावट के साथ 634.287 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 14 जनवरी को विदेशी मुद्रा भंडार 2.229 बिलियन डॉलर बढ़कर 634.965 बिलियन डॉलर हो गया था. 3 सितंबर, 2021 को वीकेंड में विदेशी मुद्रा किटी $ 642.453 बिलियन के साथ अबतक के अपने सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया था.

भारतीय रिजर्व बैंक के 21 जनवरी सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं को समाप्त हुए वीकेंड आंकड़ो के मुतबिक भंडार में गिरावट विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियो (एफसीए) में गिरावट के कारण थी, जो पूरे भंडार का एक महत्वपूर्ण घटक है. बता दें कि रिपोर्टिंग वीक में एफसीए 1.155 अरब डॉलर से घटकर सीधा 569.582 अरब डॉलर रह गया.

आंकड़ों के मुताबिक 21 जनवरी को खत्म हुए वीकेंड के समय सोने का भंडार 567 मिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ 40.337 बिलियन डॉलर हो गया.

अंतर्रारष्ट्रिय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) $68 मिलियन से गिरकर $19.152 बिलियन तक पंहुच गया. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक वीकेंड रिपोर्टिंग में भारत की आरक्षित स्थिति भी 2.2 करोड़ डॉलर से घटकर 5.216 अरब डॉलर रह गई है.

गौरतलब है कि गिरते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण देश के अंदरूनी और बाहरी वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार और आरबीआई के लिए समस्या पैदा कर सकती है. क्योंकि आरबीआई के लिए विदेशी मुद्रा भंडार बहुत महत्व रखता है.

बता दें कि अर्थव्यवस्था के संदर्भ में किसी भी प्रकार के मुसीबत के समय में उच्च भंडार उसी प्रकार होता है जिस प्रकार एक बड़ा तकिया जो एक साल के लिए देश के आयात बिल को कवर करने के लिए काफी है.

किसी भी देश के भंडार में होने वाली तेजी बाजारों को अपने विश्वास में ले सकती है कि देश उनके बाहरी दायित्वों को पूरा करने में सक्षम है. बाहरी परिसंपत्तियों के माध्यम से अंदरूनी मुद्रा का समर्थन कर सकता है. साथ ही भंडार में तेजी से कोई भी देश विदेशी मुद्रा की आवश्यकता और बाहरी ऋणों के दायित्व को पूरा कर सरकार की सहायता कर सकता है, जिससे रिजर्व बनाया जा सकता है जो किसी भी आपदा और मुसीबत के समय में काम आकर रीढ़ की हड्डी का काम कर सकता है.

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Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?

डॉलर इंडेक्स पर सारी दुनिया की नज़र रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है.

Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?

डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)

What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?

डॉलर इंडेक्स क्या है?

डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता है, डॉलर को उतना मजबूत माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.

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डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?

डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.

  • यूरो : 57.6%
  • जापानी येन : 13.6%
  • कैनेडियन डॉलर : 9.1%
  • ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
  • स्वीडिश क्रोना : 4.2%
  • स्विस फ्रैंक : 3.6%

हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.

डॉलर इंडेक्स का इतिहास

डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.

डॉलर इंडेक्स इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार तीन साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा

कराचीः नकदी संकट का सामने कर रहे पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बड़ी गिरावट के साथ 7.83 अरब डॉलर पर आ गया है। यह वर्ष 2019 के बाद पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा का न्यूनतम स्तर है। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, इस महीने ऋण भुगतान में वृद्धि और बाहरी वित्तपोषण की कमी के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटा है।

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) के इन आंकड़ों से पता चलता है कि देश के विदेशी भंडार में साप्ताहिक आधार पर 55.5 करोड़ डॉलर यानी 6.6 फीसदी की गिरावट आई है। ऐसा इस महीने बढ़े हुए ऋण भुगतान और बाहरी वित्तपोषण की कमी के कारण हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, “पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के आंकड़ों से पता चला है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगभग तीन वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर गिरकर 7.83 अरब डॉलर पर आ गया है। यह अक्टूबर 2019 के बाद का सबसे निचला स्तर है।''

एक सप्ताह पहले पांच अगस्त को पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं भंडार 8.385 अरब डॉलर था। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार एक महीने के आयात खर्चों के लिए काफी है।

डॉलर 15.11.2022, आज 15.11.22

डॉलर का पूर्वानुमान तकनीकी

अधिकांश देश एक अस्थायी विनिमय दर नीति का पालन करते हैं. दरें राष्ट्रीय मुद्रा और विदेशी मुद्रा के मुकाबले डॉलर में मुद्रा विनिमय पर व्यापार करती हैं. सभी गतिकी डॉलर विनिमय दर और बाजार संबंध, संबंधित हैं, जहां बोली प्रभावित होती है, ब्याज दर, आयात जैसी शर्तें / निर्यात.

नीचे ट्रैक करने के लिए डॉलर विनिमय दर के पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका, आप विभिन्न अवधियों के लिए यूरो से डॉलर विनिमय दर का अध्ययन कर सकते हैं. और डॉलर इंडेक्स चार्ट पर इसकी दर की गतिशीलता भी देखें - टोकरी के मुकाबले डॉलर की दर विश्व मुद्राएं.

अन्य सभी मुद्राओं की तरह, डॉलर मुद्रास्फीति के अधीन है, आमतौर पर प्रति वर्ष कुछ प्रतिशत।. तो, किस डॉलर में निवेश किया है-कुछ पांच साल पहले, इस मुद्रा के धारक अभी भी अपनी पूंजी खो देते हैं. यह पूंजी को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए एक संपूर्ण विज्ञान है, और चूंकि वास्तविक डॉलर विनिमय दर सुचारू रूप से गिर रही है और हमेशा गिरती रहेगी, निवेशक मुद्राओं के अलावा अन्य उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे स्टॉक, बांड, वायदा और विकल्प. हालांकि, इन उपकरणों के लिए ज्ञान और अनुभव की आवश्यकता होती है, उनके साथ काम करना अक्सर जोखिम भरा होता है, जो निवेशकों को अक्सर डॉलर की दर के साथ काम करने के लिए प्रेरित करता है।.

विनिमय दरों पर पैसे कैसे कमाए

डॉलर विनिमय दर में वृद्धि और इसकी गिरावट की भविष्यवाणी करना अक्सर मुश्किल नहीं होता है. और उस स्थिति में, आप डॉलर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव पर अच्छा पैसा कमा सकते हैं. इसके अलावा, भले ही विनिमय दर में कमजोर उतार-चढ़ाव हो, और "आगे पीछे करता" आराम के करीब की स्थिति में - और आप इस पर बहुत पैसा कमा सकते हैं, उदाहरण के लिए, डॉलर पर विकल्पों के साथ काम करना. यह अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त है कि क्या डॉलर की दर बढ़ेगी, गिरेगी, उछलेगी या वही रहें और आप भारी मुनाफे में हैं. पाठ्यक्रम और छलांग की भविष्यवाणी करने के लिए (अस्थिरता) व्यापारी और निवेशक समाचार, पिछली कीमतों और अंतर्ज्ञान का उपयोग करते हैं.

मुद्रा बाजार में बड़े खिलाड़ी सैद्धांतिक रूप से डॉलर की दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं, इसे अचानक सही दिशा में ले जा सकते हैं, "दूर ले जा रही है" अन्य खिलाड़ियों से बहुत सारा पैसा, लेकिन उतना नहीं जितना आप अन्य, छोटे पैमाने की मुद्राओं को प्रभावित कर सकते हैं और इससे भी अधिक स्टॉक और वायदा. इसलिए, अशुभ व्यापारी गलती से मानते हैं कि कौन-फिर उसने उनसे पैसा लिया, जिससे डॉलर विनिमय दर में उछाल आया, जो समृद्ध या बर्बाद हो गया. प्रमुख जोड़तोड़ - डॉलर और अन्य मुद्राओं में व्यापार में एक विशेष मामला और अक्सर जमीन पर वित्तीय पुलिस द्वारा अवैध और निगरानी की जाती है.

एक और पल - अधिक लाभदायक आयात के लिए देश डॉलर के मुकाबले विनिमय दर को समायोजित करते हैं / संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात, जो निर्यात के लिए उत्पादित माल में प्रतिस्पर्धात्मकता जोड़ सकता है.

डॉलर की गिरावट?

एक बार डॉलर, कई अन्य मुद्राओं की तरह, सोने द्वारा समर्थित था, जिसने डॉलर को काफी स्थिर बना दिया, और डॉलर में जमा और बचत - संकट के समय एक विश्वसनीय पूंजी और सुरक्षा कवच थे. आज डॉलर की दर राज्य के विभिन्न वित्तीय तंत्रों द्वारा समर्थित, जिसका मुख्य उद्देश्य है - डॉलर को गिरने या तेजी से बढ़ने न दें. नतीजतन, डॉलर कई वर्षों से वास्तविक कीमत में मामूली गिरावट का अनुभव कर रहा है और विश्व मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले स्थिर है।.

मुद्राओं और डॉलर के बीच प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में कुछ भी हो सकता है. डॉलर की गिरावट असंभव रूप से शांत है. डॉलर अपने साथ उन देशों की कई मुद्राओं और अर्थव्यवस्थाओं को खींचेगा जिन्होंने बाजार अर्थव्यवस्थाएं विकसित की हैं और जो अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं और डॉलर के साथ जुड़े हुए हैं।.

डॉलर से रूबल, यूरो और अन्य मुद्राएं - टेज, रिव्निया और पीआर. खरीद मूल्य, बिक्री, अंतिम उद्धरण समय. पाठ्यक्रम, ग्राफिक्स स्पीकर मुद्रा जोड़े.

रूबल सेंट्रल बैंक के लिए डॉलर पाठ्यक्रम पिछले तीन दिनों में, साथ ही डॉलर के चार्ट: डॉलर के लिए यूरो कोर्स की गतिशीलता, और डॉलर को रूबल, बाजार में.

मुद्रा दर वक्ताओं USD/EUR. यह विपरीत है - डॉलर और बाजार से रीयल-टाइम पाठ्यक्रमों में उलटा यूरो शेड्यूल, हर मिनट को अपडेट करना.

डॉलर की दरें आज: सप्ताह के लिए और महीने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार से रूबल को डॉलर की दर की गतिशीलता का दृश्य ग्राफ.

सिकुड़ता विदेशी मुद्रा सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं भंडार फिलहाल खतरे की घंटी नहीं, मगर RBI को संभलकर चलना होगा

अमेरिकी फेडरल बैंक दरें बढ़ा रहा है, तो रिजर्व बैंक को भी रुपये में गिरावट और विदेशी मुद्रा के भंडार को सिकुड़ने से रोकने के लिए दरें बढ़ानी पड़ेंगी लेकिन इससे आर्थिक वृद्धि की रफ्तार थम सकती है.

ग्राफिक्स: प्रज्ञा घोष/ दिप्रिंट

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार सातवें हफ्ते गिरावट दर्ज की गई और 16 सितंबर को खत्म हुए सप्ताह में यह गिरकर 45.6 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. यह 2 अक्तूबर 2020 के बाद का न्यूनतम स्तर है. इसका बड़ा कारण यह है कि रिजर्व बैंक ने रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा बाजार में बढ़चढ़कर दखल दी. कुछ दिनों पहले तक तो रिजर्व बैंक ने रुपये की कीमत को 80 डॉलर की सीमा पर रोके रखा.

डॉलर की कीमत में निरंतर उछाल के कारण रिजर्व बैंक को रुपये को बाजार के फंडामेंटल्स से जुड़ने की छूट देनी पड़ेगी और उसे संभालने के लिए दूसरे उपाय अपनाने पड़ेंगे. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि रिजर्व चालू खाते में सरप्लस की वजह से नहीं बना है बल्कि पूंजी की आवक के कारण बना है, और इस पूंजी में हाल के महीनों में काफी उथल पुथल मची है.

डॉलर में तेजी

कैलेंडर वर्ष के शुरू से, अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में वृद्धि की घोषणाएं कर रहा है. फेडरल फंड रेट अब 3 से 2.25 प्रतिशत के बीच है. फेडरल ओपेन मार्केट कमिटी (एफओएमसी) के सदस्यों का कहना है कि फेडरल फंड रेट 2022 के अंत तक 4.4 फीसदी और 2023 में 4.6 फीसदी होगी. इसका अर्थ हुआ कि अभी दरों में और वृद्धि होगी.

इससे डॉलर ज्यादा आकर्षक बन जाता है. दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक भी दरों में वृद्धि कर रहे हैं लेकिन अमेरिकी फेड की तुलना में धीमी गति से.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

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उदाहरण के लिए, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने दरों में 1.5 फीसदी की वृद्धि की, ऑस्ट्रेलियन सेंट्रल बैंक ने 2.25 फीसदी की वृद्धि की, यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने 1.25 फीसदी की वृद्धि की. नतीजतन, कई मुद्राओं के बीच डॉलर की ताकत का अंदाजा देने वाले डॉलर इंडेक्स में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई. अमेरिकी फेड ने ब्याज दरों में हाल में 75 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की तो डॉलर इंडेक्स दो दशक में सबसे ऊंचे स्तर, 111.8 पर पहुंच गया.

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ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

रुपये में गिरावट

डॉलर इंडेक्स में उछाल से रुपये में गिरावट का दबाव बनता है. यूक्रेन युद्ध के बाद से रुपये की कीमत में 8.9 फीसदी की गिरावट आई है. वैसे, समकक्ष देशों की मुद्राओं की तुलना में रुपया बेहतर हाल में है. लेकिन यह स्थिति उसकी गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री के कारण है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 86 अरब डॉलर की कमी आई है. जुलाई में रिजर्व बैंक ने 19 अरब डॉलर बेची. डॉलर की वास्तविक बिक्री के अलावा, डॉलर के तुलना में यूरो और येन जैसी मुद्राओं में गिरावट से भी रिजर्व पर असर पड़ता है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

डॉलर में उछाल डॉलर के सिवा दूसरी मुद्राओं के डॉलर मूल्य को गिराता है.

इसके उलट, अप्रैल 2013 से सितंबर 2013 के बीच हुए ‘टेपर टैंट्रम’ प्रकरण के दौरान रुपये की कीमत करीब 16 फीसदी कम हो गई. उस दौरान रिजर्व में मामूली, 21.5 अरब डॉलर की कमी आई.

कितना रिजर्व पर्याप्त है

अधिकतर देश विदेशी मुद्रा भंडार को अपनी अर्थनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. बाजार में उथलपुथल का सामना करने, मुद्रा में भरोसा कायम करने, विनिमय दर को प्रभावित करने जैसे कई कारणों से उन्हें रोक कर रखा जाता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश (आइएमएफ) ने कई शोधपत्रों के जरिए बताया है कि रिजर्व की पर्याप्तता को मापने के तीन पारंपरिक पैमाने हैं. जिन देशों में कैपिटल एकाउंट्स पर नियंत्रण रखा जाता है उनमें आयात को प्रासंगिक पैमाना माना जाता है. यह बताता है कि झटके के मद्देनजर आयात के लिए कितने समय तक वित्त उपलब्ध कराया जा सकता है. विकासशील देशों में तीन महीने तक आयात करने लायक रिजर्व को पर्याप्त मानने का नियम चलता है. लेकिन वित्तीय समेकीकरण में वृद्धि के कारण इस पैमाने को अब कम उपयोगी माना जाता है.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा पैमाना बकाया अल्पकालिक बाहरी कर्ज की 100 फीसदी कवरेज है. यह खासकर उन देशों के लिए लागू है जो दूसरे देशों के साथ बड़े अल्पकालिक लेन-देन करते हैं. तीसरा पैमाना है व्यापक धन में रिजर्व के अनुपात का. इसका उपयोग पूंजी के बाहर जाने से उभरे संकट में रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन करने के लिए किया जाता है. हाल के संकट के साथ स्थानीय डिपॉजिट के भी बाहर जाने से संकट पैदा हुआ. इस जोखिम से बचने के लिए रिजर्व व्यापक धन (जनता के पास और डिपॉजिट में मुद्रा) के 20 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए.

भारत के पास पर्याप्त रिजर्व

भारत में रिजर्व अब तक 3 महीने से ज्यादा के आयात बिल भरने लायक रहता आया है. अक्तूबर 2021 में रिजर्व 642 अरब डॉलर के शिखर पर था और 16 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता था. अब यह 545.6 अरब डॉलर पर आ गया है और 9 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता है. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के के बीच आयात में वृद्धि ने आयात कवर को घटा दिया है. हालांकि फिलहाल रिजर्व तीन महीने के आयात कवर की सीमा से ज्यादा है, लेकिन रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन उथलपुथल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक की पहल से किया जाएगा.

उपरोक्त दूसरे पैमाने के हिसाब से भारत का रिजर्व अल्पकालिक बाहरी कर्ज से ज्यादा है. हाल के अनुमानों के मुताबिक, अल्पकालिक बाहरी कर्ज उसके रिजर्व के अनुपात में आधे से भी कम के बराबर है. रिजर्व व्यापक धन के 20 प्रतिशत की सीमा से ठीक ऊपर है. रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, ऐसे भी समय आए जब रिजर्व इस सीमा से नीचे था.

नीति का हासिल और चुनौतियां

डॉलर में तेज उछाल ने न केवल रुपये को बल्कि पाउंड, यूरो, येन सबसे महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा समाचार क्या हैं जैसी मुद्राओं को भी कमजोर किया है. चालू खाते के घाटे के बीच पूंजी की विस्फोटक आवक ने रिजर्व में वृद्धि की गति को धीमा किया. जुलाई में, रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा की आवक को बढ़ाने और रुपये में गिरावट को रोकने के उपायों की घोषणा की थी. इन उपायों में, सरकारी तथा कॉर्पोरेट बॉन्डों में विदेशी निवेश की शर्तों को ढीला करना, विदेशी मुद्रा में उधार की सीमा में छूट देना, और बैंक आप्रवासियों से बड़े डिपॉजिट ले सकें इसकी छूट देना शामिल है. लेकिन डॉलर में तेजी के कारण इन उपायों का विदेशी मुद्रा की आवक पर फर्क नहीं पड़ा.

रिजर्व बैंक को शायद रुपये को सहारा देने के लिए दरों में शायद अतिरिक्त 50 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि करनी पड़ेगी. यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि इससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता पर ऐसे समय में दबाव बढ़ेगा जब क्रेडिट की मांग बढ़ रही है. और ज्यादा विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए बॉन्डों को उभरते बाजार के बॉन्ड सूचकांक में शामिल करना बेहतर होगा.

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