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लाभ पद्धति

लाभ पद्धति
A. ऐलोपैथिक इलाज से कुछ समय के लिए रोगी को राहत मिलती है। पर दवाई का असर खत्म होते ही दर्द फिर शुरू हो जाता है। जबकि सिंकाई पद्धति से नियमानुसार इलाज कराने पर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है।

एस आई पद्धति के क्या लाभ हैं?

इसे सुनेंरोकेंSI इकाइयों की तर्कसंगत प्रणाली है, यह किसी विशेष भौतिक मात्रा को केवल एक इकाई प्रदान करती है। एसआई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इकाइयों की स्वीकृत प्रणाली है। SI मीट्रिक प्रणाली है, सिस्टम की गुणकों और उप-बहुओं को 10 की शक्ति के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

एस आई पद्धति क्या है इसकी चार विशेषताएं बताइए?

इसे सुनेंरोकेंएस आई पद्धति में भौतिक राशि का केवल एक मात्रक ही होता है। जैसे ऊर्जा का मात्रक जूल है, ऊर्जा के सभी रूपों का मात्रक जूल ही होगा। एस आई पद्धति मात्रकों का अंतर्राष्ट्रीय मानक है। एस आई पद्धति के मानक अपरिवर्तित रहते हैं।

मापन की SI पद्धति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमुख्य लेख: मीटरी पद्धति इस पद्धति को संसार भर में वैज्ञानिक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। इसमें लंबाई को सेंटीमीटर में, भार का ग्राम में तथा समय को एक सेकंड में माप जाता है। मीटरी पद्धति ही परिवर्तित परिवर्धित करके मीटर-किलोग्राम-सेकेण्ड पद्धति बनी जो पुनः परिवर्धित होकर अन्तरराष्ट्रीय इकाई प्रणाली (S I ) बनी।

पद्धति से आप क्या समझते हो?

इसे सुनेंरोकेंpaddhati ka arth paribhasha;पद्धति का आशय मिश्रित अर्थव्यवस्था के अनुसार अध्ययन करना पद्धति के अंतर्गत कार्य प्रणालियां और प्रविधियां आती है। साधारण भाषा में पद्धति को कार्य करने की विधि कहा जाता है।

SI प्रणाली में लाभ पद्धति लाभ पद्धति ऊर्जा का मात्रक क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसही उत्तर जूल है। किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता उस वस्तु की ऊर्जा कहलाती लाभ पद्धति है। ऊर्जा एक अदिश राशि है। इसका एसआई मात्रक जूल है।

एस आई पद्धति से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंअन्तर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली (संक्षेप में SI ; फ्रेंच Le Système International d’unités का संक्षिप्त रूप), मीटरी पद्धति का आधुनिक रूप है। इसे सामान्य रूप में दशमलव एवं दस के गुणांकों में बनाया गया है। यह विज्ञान एवं वाणिज्य के क्षेत्र में विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली प्रणाली है।

ठेका की लगात योग पद्धति क्या है? लागत योग ठेका पद्धति के लाभ

ठेका की लगात योग पद्धति क्या है? लागत योग ठेका पद्धति के लाभ

ठेका की लगात योग पद्धति क्या है? लागत योग ठेका पद्धति के लाभ

ठेका की लगात योग पद्धति क्या है? यह पद्धति कब उपयुक्त होती है? लागत योग ठेका पद्धति के लाभ एवं दोष बताइये।

ठेका की लागत योग पद्धति (Cost Plus Method of Contract)- ठेका की लागत योग पद्धति के अन्तर्गत ठेका का मूल्य पूर्व निर्धारित नहीं होता है बल्कि ठेकादाता (Contractee) ठेकेदार (Contractor) को यह आश्वासन देता है कि कार्य की जो वास्तविक लागत आवेगी, उसमें कुल प्रतिशत अप्रत्यक्ष व्ययों उपरिव्ययों या लाभ के लिए जोड़कर जो मूल्य आता है, वह ठेकेदार को देने के लिए तैयार हो जाता है। यह विशेष प्रकार के ठेका होता है क्योंकि कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जब ठेकेदार दृढ़तापूर्वक यह अनुमान नहीं लगा पाता है कि ठेके का सही मूल्य क्या होगा? ऐसी स्थिति में ठेकादाता (Contractee) ठेकेदार को ठेका लेने उत्साहित करने के लिए। ठेके की लागत से कुछ अधिक मूल्य देता है जिसे ‘लागत योगा’ ठेका कहते हैं।

लागत योग ठेका पद्धति के लाभ (Advantages of Cost Plus Contract Method)

(A) ठेकेदार को लाभ (Advantages to the Contractor)

  1. हानि के भय से मुक्त।
  2. सामग्री, श्रम व अन्य व्यय के मूल्य में वृद्धि होने की लाभ पद्धति स्थिति में भी लाभ की निश्चितता।
  3. निविदा मूल्य (Tender Price) की स्वीकृति कराने की समस्या से मुक्त।
  4. कार्य का शीघ्र सम्पन्न होना।
  5. सामग्री, श्रम व विशेषज्ञों की सेवा की प्राप्ति सम्भव ।

(B) ठेकादाता को लाभ (Advantages to the Contractee)

  1. कार्य का शीघ्र सम्पन्न होना।
  2. कार्य उच्च कोटि का होना।
  3. संकटकाल में कार्य कराना सरल होना आदि।

लागत योग ठेका पद्धति के दोष (Disadvantages of Cost Plus Contract Method)

सर्वेक्षण पद्धति के आधारभूत तत्त्व क्या हैं? इस पद्धति का प्रमुख लाभ क्या है? - Sociology (समाजशास्त्र)

सर्वेक्षण पद्धति के आधारभूत तत्त्व क्या हैं? इस पद्धति का प्रमुख लाभ क्या है?

सर्वेक्षण परिणामात्मक समष्टि अनुसंधान पद्धति है। इसकी कोशिश किसी विषय पर समग्र दृष्टिकोण प्रदान करना है।

सिंकाई पद्धति से इलाज कराने पर ग्रामीणों को मिल रहा लाभ

इससे मिल रहे लाभ को देखते हुए तपकरा के प्रभारी डाॅ. रविशंकर सिंह द्वारा व्यक्तिगत रूप से रूचि लेकर यहां भी इस पद्धति से उपचार शुरू किया गया। जिससे यहां भी इस तरह के मरीज आने लगे। तपकरा के राजेंद्र गुप्ता, यदुवर गुप्ता एवं जमुना के भिमसेंट सहित अनेक लोगों ने इस पद्धति से संधिवात एवं पंचकर्म के माध्यम से उपचार कराया। उनके अलावा अनेक ग्रामीण इस पद्धति से लाभान्वित हुए। हालांकि, यहां शासन द्वारा विधिवत स्वीकृति नहीं होने से फंड का अभाव था। इसके बावजूद डॉ. सिंह ने स्वयं पहल कर यहां इस विधि से उपचार शुरू किया। नवंबर से अंकिरा के आयुर्वेदिक औषधालय लाभ पद्धति में भी इस पद्धति से इलाज शुरू किया जा चुका है। जहां तीन मरीजों का इलाज चल रहा है। जिसमें से एक लाभ पद्धति मरीज संधिवात एवं दो घुटने एवं मसल्स दर्द के मरीज हैं।

उल्लेखनीय है कि इन बीमारियों का एलोपैथी में स्थाई इलाज नहीं है। दर्द के समय डॉक्टरों द्वारा दर्द निवारक टेबलेट या इंजेक्शन अवश्य दिया जाता है। दवाई का असर कुछ ही घंटों में समाप्त हो जाता है। फिर वही दर्द शुरू हो जाता है। पर इस पद्धति से नियमानुसार निर्धारित दिन तक इलाज कराने से ये बीमारियां स्थाई रूप से ठीक हो जाती हैंं एवं इससे कोई साइड-इफेक्ट भी नहीं होता है। जिससे डाॅक्टर एवं मरीज दोनों निश्चिंत रहते हैं।

लाभ पद्धति

रिज बेड प्लांटर पद्धति ने बनाया खेती को लाभ का धंधा

विदिशा, 8 फ़रवरी (हि.स.)।जिले की गंजबासौदा तहसील के ग्राम भसूडा में निवासरत कृषक राजेंद्र सिंह पंथी आत्मा परियोजना के अंतर्गत सोयाबीन फसल की नवीन तकनीकी की जानकारी से अवगत होकर नवीन पद्धति रिज वेड प्लांटर पद्धति से फसल की बुवाई कर लाभान्वित हुए हैं।

कृषक राजेंद्र सिंह पंथी ने बताया कि वह पहले साधारण कृषि करते थे। जिसमें खरीफ में सोयाबीन फसल की बुआई साधारण पद्धति से किया करते थे। जिसमें अधिक बीज, अधिक कीड़े, अधिक खरपतवार और उसके नियंत्रण करने में अधिक दवा का खर्च लगता था। उसके बाद भी अधिक वर्षा या कम वर्षा में सोयाबीन फसल खराब हो जाती थी। इससे फसल में अधिक नुकसान होता था।

वर्तमान में कृषक राजेंद्र सिंह ने आत्मा परियोजना के अधिकारी सूर्यभान सिंह थानेश्वर से संपर्क कर प्रशिक्षण लिया और वर्ष 2019-20 खरीफ में सोयाबीन फसल का प्रदर्शन दिया गया। जिसकी बुआई रिज वेड प्लांटर पद्धति से की गई। जिसमें बीज उर्वरक की उचित मात्रा प्रयोग की गई। कीट व खरपतवार का भी प्रकोप नहीं हुआ। जिससे दवाओं का भी खर्च नहीं हुआ और सोयाबीन फसल रिज वेड प्लांटर पद्धति से बुआई करने से अधिक वर्षा होने पर भी नुकसान नहीं हुआ। साथ ही सोयाबीन फसल का उत्पादन 07.75 कि्ंवटल प्रति एकड़ प्राप्त होने से मुनाफे में वृद्धि हुई है।

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