अधिकतम लाभ

Maximization of Wealth
धन के अधिकतमीकरण से अभिप्राय अंश धारकों के धन को अधिकतम करने से होता है।अंश धारकों के धन का अधिकतमीकरण कंपनी के शुद्ध मूल्य पर निर्भर करता है। एक कंपनी का शुद्ध मूल्य जितना अधिक होता है उसके अंशों का बाजार मूल्य उतना ही अधिक होता है एवं अंशों का अधिकतम बाजार मूल्य ही अंश धारकों के धन को अधिकतम करता है। इसलिए कई बार धन के अधिकतमीकरण को शुद्ध मूल्य का अधिकतमीकरण भी कहा जाता है।
धन अधिकतमीकरण के सिद्धांत ( Principles of Wealth Measurement )
धन अधिकतमीकरण के सिद्धांत को निम्न कारणों से लाभ के अधिकतमीकरण सिद्धांत से श्रेष्ठ माना जाता है-
1. यह सिद्धांत लाभों पर आधारित ना होकर भावी रोकड़ अंतर्वाही पर आधारित है। रोकड़ अंतर्वाह गणना की दृष्टि से लाभों से अधिक व्यापक एवं स्पष्ट अर्थ रखते हैं।
2. लाभों के अधिकतमीकरण की अवधारणा धन के अधिकतमीकरण की तुलना में अल्पकालीन अवधि पर आधारित है जबकि धन का अधिकतमीकरण दीर्घकालीन परिदृश्य पर आधारित है एवं संपूर्ण रोकड़ अंतर्वाहों की वर्तमान लागत से तुलना करता है।
3. धन का अधिकतमीकरण की अवधारणा रुपए के वर्तमान मूल्य का ध्यान रखती है।
4. धन के अधिकतमीकरण के अंतर्गत जोखिम एवं अनिश्चितता के संबंध में भी बट्टे की दर में प्रावधान किया जाकर वर्तमान मूल्य ज्ञात किए जा सकते हैं।
सरकार की इन योजनाओं से किसान उठा सकते हैं अधिकतम लाभ, जानिए कैसे
भारत कृषि प्रधान देश है. ऐसे में यहाँ की लगभग 65-70 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य पर निर्भर है, लेकिन फिर भी अगर कृषि व्यवस्था पर नजर डालें, तो हालात काफी खराब नजर आते हैं.
अगर इश पर चर्चा की जाए, तो कुछ बिदुं की ओर ज्यादा ध्यान जाता है.
क्या कमी सरकार की ओर से है?
क्या जनता में जागरूकता की कमी है?
या फिर सरकार द्वारा चलाई गयी योजनाओं का लाभ किसानों तक नहीं पहुँच पा रहा?
आज हम चर्चा करेंगे इन तमाम विषयों पर और पता लगाने की कोशिश करेंगे कि आखिर वो क्या वजह है, जिसके चलते भारत की कृषि व्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले पीछे है,क्योंकि ये हमारे लिए सोचने का विषय है.
जिस देश की अर्थव्यवस्था कृषि और कृषि कार्य पर निर्भर हो उसका खराब होना सरकार, आम जनता और ख़ास कर किसानों के लिए बड़ी मुसीबत की बात है.
बजट में किसानों के लिए लाखों रुपए खर्च किये जानते हैं. सरकार द्वारा पैसे आवंटित किये जाते हैं, लेकिन फिर भी किसानों के आर्थिक हालातों में कोई खासा सुधार देखने को नहीं मिलता है.
इस समस्या का समाधान अगर कुछ है तो वो है किसानों के बीच सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को लेकर जागरूकता फैलाना. ताकि वो सरकारी अधिकतम लाभ योजना का लाभ उठा सके.
साथ ही सरकार को भी यह ध्यान रखने की जरुरत है कि वो समय-समय पर जांच आयोग द्वारा योजनाओं की जानकारी लेते रहें. तो ऐसे में आज हम बात करेंगे सरकार द्वारा चलाई लाभकारी योजनाओं के बारे में, जिससे किसान भाइयों को सबसे अधिक मुनाफा मिल सकता है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojna)
यह योजना 18 फरवरी, 2016 को शुरु की गयी थी. अक्सर ये देखा गया है कि किसानों की तैयार फसल आंधी, ओलावृष्टी और तेज बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो जाती हैं.
जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता अधिकतम लाभ है. ऐसे में इस योजना के अंतर्गत बुआई के पहले से और फसल की कटाई के बाद तक के लिए बीमा सुरक्षा मिलती है.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi Scheme)
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2018 के रबी सीजन में की गई थी. इस स्कीम के अंतर्गत किसान को 6,000 रुपए प्रति वर्ष तीन किस्तों में प्राप्त होते है और यह सहायता राशि सीधे उनके बैंक खाते में आती है.जिससे किसानों की आर्थिक मदद सरकार द्वारा की अधिकतम लाभ जाती है.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना (Kisan Credit Card Scheme)
किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 1998 में की गयी थी. किसानों को इस कार्ड की सहायता से पर्याप्त ऋण (लोन) बहुत ही आसानी से मिल जाता है.
वहीँ जिससे किसान कृषि से सम्बंधित खाद– बीज, कीटनाशक आदि सामग्री खरीद सकते है. सबसे खास बात यह है कि इस कार्ड से 5 वर्षों में 3 लाख तक का लोन ले सकते है. नये अपडेट के मुताबिक़, अब किसान इस क्रेडिट कार्ड का फसल का बीमा भी करवा सकते हैं.
डेयरी उद्यमिता विकास योजना (डीईडीएस) (Dairy Entrepreneurship Development Scheme)
हमारे देश के लगभग किसान पशुपालन अवश्य करते है. ऐसे में सरकार का मानना है कि यदि यही कार्य एक बड़े पैमाने पर किया जाए, तो अच्छी मात्र में दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है और किसान भाई अपनी आय बढ़ा सकते है. इस योजना के माध्यम से किसान को अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया गया है, इसके साथ ही किसान भाई प्रशिक्षण भी ले सकते है.
पीएम कुसुम योजना (PM Kusum Yojna)
भारत के ग्रामीण क्षेत्रो में बिजली की समस्या अभी भी गंभीर है. ऐसे में कृषि कार्य करने में किसानों को अक्सर परेशानियाँ होती रहती है. जब किसानों के खेत को पानी की आवश्यकता होती है, तो उन्हें समय से बिजली नहीं मिल पाती है. पानी के अभाव में उनकी फसलें प्रभावित हो जाती हैं.
किसान भाइयों को निर्बाध बिजली उपलब्ध करानें के उद्देश्य से सरकार की तरफ से पीएम कुसुम योजना (PM Kusum Scheme) चलाई जा रही है. इस स्कीम के अंतर्गत किसानों को सोलर पैनल सब्सिडी पर मिलते हैं, जिससे वह बिजली का उत्पादन कर अपनी आवश्यकता के अनुसार उसका प्रयोग करने के बाद बाकी को बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं.
पूंजीवाद उत्पादन से अधिकतम लाभ कमाने की लालसा
अधिकतम लाभ के विचार का मुख्य उद्देश्य वासना है और यह पूंजीवादी परियोजना का नेतृत्व करता है। दुनिया में बड़े पैमाने पर अधिकतम लाभ लोगों के निर्वासन के माध्यम से अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिए पूंजीवाद ने कई समाजों को नष्ट कर दिया। पूंजीवाद पश्चिमी असाधारणता पर आधारित परियोजना है।
जैसे ही पहले पूंजीवादी यूरोपीय समाज में दिखाई दिए, इस वर्ग के दृष्टिकोण के माध्यम से आगे के विकास के लिए एक प्रोत्साहन बनाया गया था। इससे पहले कभी भी किसी भी मानव समाज में उत्पादन से अधिकतम लाभ कमाने के लिए लोगों के एक समूह ने खुद को सचेत रूप से कार्य करते हुए नहीं देखा था। अधिक से अधिक पूंजी प्राप्त करने के अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए, पूंजीपतियों ने विज्ञान के नियमों में अधिक रुचि ली, जिन्हें काम करने और अपनी ओर से लाभ कमाने के लिए मशीनरी के रूप में दोहन किया जा सकता था। राजनीतिक स्तर पर, पूंजीवाद भी अधिकांश सुविधाओं के लिए जिम्मेदार था, जिन्हें आज ‘पश्चिमी लोकतंत्र’ के रूप में जाना जाता है। सामंतवाद को समाप्त करने में, पूंजीपतियों ने संसदों, गठन, प्रेस की स्वतंत्रता आदि पर जोर दिया, इन्हें भी विकास माना जा सकता है। हालाँकि, यूरोप के किसानों और श्रमिकों (और अंततः पूरी दुनिया के निवासियों) ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई ताकि पूंजीपति मानव श्रम से अपना लाभ कमा सकें जो हमेशा मशीनों के पीछे पड़ा रहता है। यह विकास के अन्य पहलुओं का खंडन करता है, विशेष रूप से उन लोगों के दृष्टिकोण से देखा गया जो पीड़ित थे और अभी भी पूंजीवादी उपलब्धियों को संभव बनाने के लिए पीड़ित हैं। यह बाद वाला समूह मानव जाति का बहुमत है। अग्रिम करने के लिए, उन्हें पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना होगा; और यही कारण है कि फिलहाल पूंजीवाद आगे मानव सामाजिक विकास के मार्ग में खड़ा है। इसे दूसरे तरीके से रखने के लिए, पूँजीवाद के सामाजिक (वर्ग) संबंध अब उतने ही पुराने हो गए हैं, जितने कि उनके समय में गुलाम और सामंती सम्बन्ध बन गए। कुछ के लिए लाभ की मांग के उत्पाद, लेकिन आज मुनाफे की तलाश लोगों की मांगों के साथ तीव्र संघर्ष में आती है कि उनकी सामग्री और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिए। पूंजीवादी या बुर्जुआ वर्ग अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी के निर्जन विकास को फिर से निर्देशित करने में सक्षम नहीं है क्योंकि ये उद्देश्य अब लाभ के उद्देश्य से टकराते हैं। पूंजीवाद ने उत्पादक क्षमता के अभाव, बेरोजगारों के एक स्थायी क्षेत्र की दृढ़ता और 'बाजार' की अवधारणा से संबंधित आवधिक आर्थिक संकटों को पार करने के लिए मूलभूत कमजोरियों को वहन करने में असमर्थ साबित कर दिया है - जो कि लोगों की उनकी आवश्यकता के बजाय भुगतान करने की क्षमता से संबंधित है। माल। (स्रोत: कैसे यूरोप अविकसित अफ्रीका)
कृषि विश्वविद्यालय अपने शोध से किसानों को अधिकतम लाभ प्रदान करें: सुश्री उइके
राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके आज इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप कृषि शिक्षा प्रणाली’’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में शामिल हुई। उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रीसीजन फार्मिंग केन्द्र, अक्ति जैव विविधता संग्रहालय का अवलोकन किया और कृषि के नये तकनीकों की जानकारी ली। इसके अलावा राज्यपाल ने स्वयंसहायता समूहों के उत्पादों तथा कृषि के नवीनतम तकनीक पर आधारित प्रदर्शनी का अवलोकन किया। यह प्रदर्शनी कृषि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्रों, महाविद्यालयों एवं अनुसंधान केन्द्रों द्वारा लगाई गई थी।
राज्यपाल ने इस अवसर पर कहा कि कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निरंतर नये-नये क्षेत्रों में अनुसंधान किये जा रहे हैं, जो कि सराहनीय है। इन अनुसंधानों का अधिकतम लाभ किसानों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों द्वारा बाजार की मांग के अनुरूप उन्नत बीज, कृषि सेवा केन्द्रों से उचित दर पर विक्रय करना चाहिए, जिससे विश्वविद्यालय भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन सके।
राज्यपाल ने कहा कि अधिकतम लाभ अधिकतम लाभ राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफ़ारिशों के अनुरूप विश्वविद्यालय अपने कृषि स्नातक पाठ्यक्रम में भी संशोधन कर उसे रोजगारोन्मुखी बनाने जा रहा है, यह सराहनीय है। नवीन संशोधित पाठ्यक्रम में प्रायोगिक शिक्षा, विद्यार्थियों में दक्षता, क्षमता निर्माण, कौशल अर्जन, विशेषज्ञता एवं आत्मविश्वास विकसित करने हेतु नए विषय सम्मिलित किया जाना चाहिए ताकि हमारे कृषि स्नातक अपना स्वयं का व्यवसाय आरम्भ कर सकें और ‘रोजगार याचकों के बजाय रोजगार प्रदाता’ बन सकें।
उन्होंने कहा कि राज्य के तीनों विश्वविद्यालय आपस में समन्वय से कार्य करते हुए अपने-अपने विश्वविद्यालय के शिक्षा पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली विकसित एवं क्रियान्वित करें, जिससे विद्यार्थियों को स्वयं का रोजगार एवं व्यवसाय स्थापित करने में सफलता मिले।
इस अवसर पर राज्यपाल को जांजगीर-चांपा के बुनकर द्वारा अलसी के रेशे से बनीं जैकेट भेंट की गई। कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि पंचाग और कृषि दर्शिका का विमोचन किया गया। साथ ही कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए महिला स्वयंसहायता समूहों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.एस. सेंगर, प्रबंध मण्डल के सदस्य श्री बोधराम कंवर, श्री आनंद मिश्रा, श्रीमती वल्लरी चन्द्राकर सहित विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण उपस्थित थे।