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निवेश करने दो प्रमुख तरीके

निवेश करने दो प्रमुख तरीके
म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर

पैसे बचाने के 10 क्रिएटीव तरीके

आज के दौर में पैसा बचाना हम सब के जीवन का प्रमुख लक्ष्य निवेश करने दो प्रमुख तरीके हैं। पैसा बचाना पैसा कमाने के ही बराबर है। हम पूरी जिंदगी पैसा बचाने के नए उपाय जानने के लिए प्रयासरत रहते हैं ताकि भविष्य के लिए हम आर्थिक रूप से मजबूत बन सकें और अपने परिवार के सदस्यों की जरूरतें पूरी कर सकें। इस लेख (Creative Ways to Save Money) के माध्यम से कुछ क्रिएटिव तरीकों के बारे में जानेगें जिन्हें अपनाकर हम आसानी से पर्याप्त पैसा बचा सकते हैं।

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कोरोना काल में इस तरह से म्यूचुअल फंड्स में करें निवेश, नहीं होगा कोई नुकसान!

कोरोना वायरस का गहरा असर पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। इस बीच दुनिया भर के प्रमुख शेयर बाजारों में गिरावट का दौर जारी है। भारत 21 दिन के लॉकडाउन के बीच व्यापार-बचत दोनों प्रभावित हुआ है।

Corona scare: invest in mutual fund during coronavirus outbreak in india, how to save tax | कोरोना काल में इस तरह से म्यूचुअल फंड्स में करें निवेश, नहीं होगा कोई नुकसान!

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बारे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें दो तरीके से निवेश किया जा सकता है।

Highlights कोरोना वायरस के प्रकोप का असर शेयर बाजार पर भी पड़ रहा है वैश्विक बाजारों में तेजी के साथ घरेलू बाजार मजबूत हुआ।

कोरोना वायरस के प्रकोप का असर शेयर बाजार पर भी पड़ रहा है। शेयर बाजार में तेजी निवेश करने दो प्रमुख तरीके के साथ निवेशकों की संपत्ति 7,71,377 करोड़ रुपये बढ़ गयी। वैश्विक बाजारों में तेजी के साथ घरेलू बाजार मजबूत हुआ। तीस शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 2,476.26 अंक मजबूत होकर 30,067.21 अंक पर बंद हुआ। इस तेजी के बाद बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 7,71,377.02 करोड़ रुपये उछलकर 1,16,38,099.98 करोड़ रुपये पहुंच गया।

ऐसे में म्‍यूचुअल फंड निवेशकों को इस बात से काफी परेशानी हो रही है। अगर आप भी म्‍यूचुअल फंड निवेशक हैं तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। म्‍यूचुअल फंड मैनेजरों और इनवेस्‍टमेंट एडवाइजरों की मानें तो उन्हें सिप के जरिए अपना निवेश बनाए रखना चाहिए।

एक्सपर्ट कहते है कि ऐसे वक्त में आपको घबरा कर एफडी नहीं करना चाहिए. क्योंकि इसमें आपको सिर्फ दो से तीन प्रतिशत का ही फायदा होगा। जिसके बाद दोबारा आपको बाजारा में एंट्री करना भी काफी मुश्किल हो जाएगा।

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के दो तरीके
म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बारे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें दो तरीके से निवेश किया जा सकता है। पहला SIP और दूसरा एक मुश्त रकम का निवेश। SIP के लिए आपको बाजार में ज्यादा समय देने की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें बीते समय की एक अवधि के दौरान शेयर बाजार की अस्थिरता के चलते जोखिम का औसत निकालते हैं। वहीं म्यूचुअल फंड में एक मुश्त रकम का निवेश करते समय आपको गाइडलाइंस ठीक से पढ़ने की जरूरत है।

क्या है म्यूचुअल फंड
इन सबसे पहले हमें म्यूचुअल फंड को समझने की जरूरत है। जानकारों के मुताबिक किसी एक जगह में लोगों द्वारा बड़ी संख्या में पैसा निवेश करना ही म्यूचुअल फंड है। आपके द्वारा निवेश किए गए रुपयों मैनेज करने के लिए बाकायदा एक फंड मैनेजर होता है।

ताकि मिल सके ज्यादा रिटर्न
फंड मैनेजर रिटर्न और जोखिम के आधार आपके पैसों को कई जगहों पर निवेश करता है। म्यूचुअल फंड हाउस इक्विटी, बॉन्ड, मुद्रा बाजार के साधनों या अन्य सिक्यॉरिटीज में निवेश करते हैं, जिससे निवेशकों को कम-से-कम जोखिम में ज्यादा-से-ज्यादा रिटर्न हासिल हो सके।

निवेश लिए बेहतर विकल्प
एक्सपर्ट के मुताबिक, अन्य फंड्स की तुलना में बेहतर परफॉर्मेंस करने वालों की तुलना में एचडीएफसी इक्विटी ग्रोथ, एबीएसएल फ्रंटलाइन इक्विटी, कोटक सिलेक्ट फोकस फंड, एसबीआई ब्लूचिप रेगुलर ग्रोथ, आईसीआईसीआई प्रु.फोकस्ड ब्लूचिप इक्विटी, आईसीआईसीआई प्रु. वैल्यू डिस्कवरी, एचडीएफसी टॉप 200, मोतीलाल ओसवाल मल्टीकैप 35, फ्रैंकलिन इंडिया प्राइमा प्लस, आईसीआईसीआई प्रु. डायनैमिक प्लान म्यूचुअल फंड शामिल है। इनमें निवेश करना एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

ये है इनकी खासियत
इन 10 शेयरों की निफ्टी (एनएसई का बेंचमार्क इंडेक्स) में हिस्सेदारी 54 फीसदी है। टॉप 10 लार्ज कैप म्यूचुअल फंड की इन शेयरों में 33 फीसदी होल्डिंग है। बाकी निवेशक दूसरे शेयरों में पैसे लगाते हैं। उतार-चढ़ाव का असर कम करने के लिए निवेश डायवर्सिफाई करना होता है।

निवेश करने दो प्रमुख तरीके

निवेशकों और आयकर विभाग के बीच कानूनी विवादों को कम करने के उद्देश्य से केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने हाल ही में निवेशकों को यह तय करने की अनुमति दे दी है कि प्रतिभूतियों की बिक्री से होने वाली आय को कारोबारी आय माना जाए या फिर पूंजीगत लाभ। अब तक यह निर्णय लेने का अधिकार कर निर्धारण अधिकारी (एओ) के पास होता था। इसलिए अगर आपने बड़े पैमाने पर कारोबार किया है या फिर मुनाफावसूली की है तो एओ इसे कारोबारी आय के तौर पर वर्गीकृत कर सकता था और इस आय पर आपसे 30 फीसदी की उच्चतम दर पर कर वसूलने के अलावा उपकर भी वसूलता था। इस कमाई को पूंजीगत लाभ के तौर पर वर्गीकृत करने पर कोई कर नहीं बनता।

इसलिए अगर करदाता 12 महीनों के बाद प्रतिभूतियों की बिक्री से होने वाली आय को पूंजीगत लाभ के तौर पर वर्गीकृत कराना चाहता है तो कर निर्धारण अधिकारी इस मामले में अपनी मर्जी उस पर नहीं थोप सकता और उसे करदाता की बात ही माननी पड़ेगी। महत्त्वपूर्ण चेतावनी: लेकिन निवेशकों को यहां इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि करदाता एक बार जब कराधान के लिए कोई तरीका चुन लेता है तो बाद के वर्षों में वह उसमें किसी तरह की तब्दीली नहीं कर सकता। आरएसएम एस्ट्यूट कंसल्टिंग ग्रुप के संस्थापक सुरेश सुराणा का कहना है, 'सरकार की ओर से यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है और इससे पता चलता है कि वह कानूनी मामलों को कम करने के प्रति गंभीर है।'

हालांकि लघु अवधि के लाभ के कराधान पर एओ अभी भी आपत्ति जता सकते हैं। बड़े पैमाने पर कारोबार करने वाले कारोबारी, दैनिक कारोबारी और ऐसे लोग जो अपने पोर्टफोलियो को लेकर काफी सजग रहते हैं, उन्हें अभी भी कानूनी विवादों का सामना करना पड़ सकता है। प्रतिभूतियों की बिक्री से होने वाली आय को पूंजीगत लाभ या कारोबारी आय मानकर उस पर कराधान को लेकर अत्यधिक विवाद पैदा होने की दो प्रमुख वजहें हैं।

पहली और सबसे अहम वजह तो यह है कि आयकर अधिनियम में इस बात को लेकर किसी तरह के स्पष्टï दिशा निर्देश ही नहीं दिए गए हैं कि किसी निवेश को किस तरह वर्गीकृत किया जाना चाहिए- पूंजीगत परिसंपत्ति के तौर पर या स्टॉक इन टे्रड की तरह। काफी कुछ अलग-अलग मामलों की व्याख्या पर निर्भर करता है। दूसरा अहम मसला दोनों माध्यमों पर कराधान के लिए करों की दरों के बीच भारी अंतर है जिससे कानूनी विवादों को प्रोत्साहन मिलता है। अगर आय को लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है तो इस पर कोई कर नहीं देना होगा।

लघु अवधि पूंजीगत लाभ यानी ऐसी प्रतिभूतियां जिन्हें एक वर्ष से कम समय के लिए आपने अपने पास रखा और उसे बेचकर कमाई कर ली है तो कर की दर 15 फीसदी है, इसके अलावा आपको कुछ उपकर और अधिभार भी देने होते हैं। दूसरी तरफ अगर एओ आपकी आय को कारोबारी आय के तौर पर स्वीकार करता है तो वह आपसे 30 फीसदी कर के साथ उपकर और अधिभार भी वसूल सकता है।

विवादों की आशंका को कम करने के लिए निवेशक कुछ सावधाानियां रख सकते हैं। एक तरीका इक्विटी में लंबे समय यानी एक वर्ष से अधिक समय के लिए निवेश करने का है। दूसरा तरीका जैसा कि डेलॉयट हसकिंस ऐंड सेल्स के साझेदार राजेश एच गांधी ने कहा, 'आपके खातों में और जिस प्रकार के कराधान की मांग कर रहे हैं उसमें कोई अंतर नहीं होना चाहिए।'

इसके अलावा अवसरवादी उतार-चढ़ावों के चक्कर में न फंसे। ऐसा न हो कि लाभ होने पर आप इसे पूंजीगत लाभ मानने के लिए कहें ताकि आपको कोई कर न देना पड़े और घाटा होने पर इसे कारोबारी आय मानने की गुजारिश करें ताकि आप इसकी भरपाई कारोबार से होने वाले लाभ के बदले कर सकें। तीसरी सावधानी यह है कि अगर आपने अपना पैसा निवेश किया है तो अपने दावे की पुष्टिï के लिए दस्तावेज के प्रमाण रखें। अगर आपके पास आय के विभिन्न स्रोत हैं और प्रतिभूतियों की बिक्री उन तमाम माध्यमों में से एक है तो आपके लिए अपनी इस आय को पूंजीगत लाभ के तौर पर वर्गीकृत करना आसान होगा।

एक बार आय को किसी विशेष श्रेणी में वर्गीकृत कराने के बाद आगामी वर्षों में उसमें फेरबदल न कर पाने संबंधी अनुबंध अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भविष्य में अगर सरकार लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ पर कोई कर लगाती है तो भी आप कराधान की श्रेणी में बदलाव नहीं कर सकेंगे। इसलिए आपके लिहाज से बेहतर यही होगा कि कोई भी फैसला लेने से पहले आप किसी कर विशेषज्ञ की राय लें।

म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर

म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर क्या होता है। म्यूचुअल फंड क्या है और SIP क्या है तथा दोनों में क्या अंतर इसे आसान भाषा में समझते हैं। कुछ लोग यह समझ नहीं पाते कि SIP किस तरह से म्यूचुअल फंड से अलग है तो उनकी जानकारी के लिये यहां हम इसे विस्तार से बता रहे हैं।

म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर

म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर

Mutual Fund

Mutual Fund को अक्सर स्टॉक या बॉन्ड के पोर्टफोलियो के रूप जाना जाता है, जो फंड के निवेश के उद्देश्यों के अनुसार निवेश करता है और उसे पेशेवरों द्वारा प्रबंधित फंड के यूनिट के रूप में निवेशकों को खरीद के लिए उपलब्ध कराया जाता है। प्रत्येक ट्रेडिंग डे के अंत में, फंड की सभी होल्डिंग्स की कीमत निकाली जाती है और फंड के नेट एसेट वैल्यू NAV की गणना की जाती है। म्यूचुअल फंड की खरीद एकमुश्त निवेश के साथ या एक व्यवस्थित निवेश योजना Systematic Investment Plan (SIP) के माध्यम से की जा सकती है।

SIP एक निवेशक द्वारा शुरू किया जाता है जो नियमित रूप से एक पहले से निर्धारित राशि का निवेश करता है। उदाहरण के लिए, आप किसी म्यूचुअल फंड के यूनिट ख़रीदने के लिए प्रति माह ₹1000 का एक SIP निर्धारित कर सकते हैं। हर महीने की निश्चित तारीख पर आपको पहले से निर्धारित ऑर्डर खरीदना होगा। निवेश का यह तरीका दो प्रमुख लाभ प्रदान करता है: आसान बचत और रुपए की औसत लागत यानि Rupee cost averaging।

म्यूचुअल फंड और SIP में अंतर

उदाहरण के लिए, ₹1000 के दो अलग-अलग म्यूचुअल फंडों में प्रति माह कुल ₹2000 का निवेश एक SIP होगा। लेकिन म्यूचुअल फंड SIP की तरह निवेश की रणनीति नहीं है। म्यूचुअल फंड एक पेशेवर रूप से प्रबंधित फंड है जिसमें प्रबंधक फंड के प्रॉस्पेक्टस के अनुसार निवेश करता है।

SIP लंबे समय तक के निवेश के लिए

SIP शुरू करने से रिटायर्मेंट या अन्य निवेश के लक्ष्यों के लिए बजट बनाना आसान हो जाता है। जब आप मासिक बजट में एक छोटी राशि निवेश करने का निर्णय लेते हैं, तो इस बात की अधिक संभावना हो जाती है कि आप योजना को लंबे समय तक जारी रखें, जिससे आपके निवेश लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, सेवानिवृत्ति की बचत के लिए प्रति माह ₹1000 का निवेश करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन एक समय में ₹12,000 का निवेश करना अधिक कठिन हो सकता निवेश करने दो प्रमुख तरीके है।

Rupee Cost Averaging

नियमित आधार पर SIP द्वारा म्यूचुअल फंड के युनिटों में निवेश करने से आप यूनिट शेयर औसत लागत को कम कर सकते हैं। समय के साथ बाजार में उतार-चढ़ाव के अवसर आने की संभावना है जहां म्यूचुअल फंड के युनिट कम कीमत पर खरीदे जाते हैं। Rupee निवेश करने दो प्रमुख तरीके cost averaging नामक यह तकनीक कई निवेशकों द्वारा व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है और वित्तीय सलाहकारों द्वारा भी इसकी सिफारिश की जाती है। एक व्यवस्थित निवेश योजना, या SIP का अर्थ है अपने निवेश खाते में नियमित योगदान देना जिससे भविष्य की आवश्यक्ताओं को सुरक्षित किया जा सके। रुपी कॉस्ट ऐवरेज वास्तव में सरलतम रूप में SIP ही है।

म्यूचुअल फंड और SIP

जबकि SIP आपकी संपत्ति को बढ़ाते समय निवेश करने का एक शानदार तरीका है, एक बार जब आप एक बड़ी राशि जमा कर लेते हैं तब आपको कुछ रक्षात्मक रणनीति अपना सकते हैं जिसमें अपने फंड का अधिक सक्रिय प्रबंधन शामिल है।

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

Invest In Digital Gold: आज के समय में सोने में निवेश को सबसे सुरक्षित माना जाता है. गोल्ड के साथ कुछ जोखिम भी जुड़े हैं.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

आप सोने के जेवर या अन्य सामान खरीदते है, तो उसके चोरी और गुम होने का डर हमेशा बना रहता है. ऐसे में डिजिटल गोल्ड निवेश (Digital Gold Investment) का एक नया और सुरक्षित माध्यम बनकर उभरा है.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

डिजिटल गोल्ड में निवेश करने को लेकर लोगों की रूचि बढ़ी है. इनमें सॉवरेन गोल्ड फंड (Sovereign Gold Bond) और गोल्ड ईटीएफ (Gold Exchange Traded Fund) निवेश के दो प्रमुख माध्यम हैं.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

डिजिटल गोल्ड ऑनलाइन (Digital Gold Online) सोना खरीदने का एक तरीका है. इसमें गोल्ड फिजिकली ना होकर आपके डिजिटल वॉलेट में रखा होगा. आप इसकी खरीदी-बिक्री भी कर सकते हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर कुछ एक्स्ट्रा चार्ज देकर डिजिटल गोल्ड को फिजिकल गोल्ड बदल सकते हैं.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

सोने में निवेश के नए विकल्प के तौर पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का विकल्प ग्राहकों को 2015 से मिला है. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI Bank Gold)जारी करता है. इसमें कम से कम एक ग्राम सोना खरीदा जा सकता है. दरअसल निवेश के नजरिये से फिजिकली सोने की खरीदी में कमी लाने के लिए यह योजना लाई गई है.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond) पर सालाना 2.5 फीसदी ब्याज मिलता है. ग्राहक ऑनलाइन या कैश के जरिए इसे खरीद सकते हैं. ये 8 साल की अवधि में पूर्ण होती है. इस स्कीम में एक फाइनेंशियल ईयर में एक व्यक्ति अधिकतम 4 किलोग्राम गोल्ड के बॉन्ड खरीद सकता है.

Digital Gold: डिजिटल गोल्ड क्या है? जानें इसके फायदे और निवेश का तरीका

गोल्ड ईटीएफ को शेयर की तरह खरीदकर डीमैट अकाउंट में रखा जा सकता है. जब आप गोल्ड ईटीएफ में निवेश करते हैं, तो आपके पास वास्तव में फिजिकल सोना (Physical Gold) नहीं होता है, बल्कि आप सोने की कीमत के बराबर नकद रखते हैं. इसी तरह जब आप गोल्ड ईटीएफ बेचते हैं, तो आपको भौतिक सोना नहीं मिलता है, बल्कि उस समय सोने की कीमत के बराबर नकदी मिलती है.

Tags: Gold Sovereign gold bond Gold ETF 24 carat gold price हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

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