अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

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अंतरराष्ट्रीय व्यापार बने राजनीतिक प्राथमिकता
हाल में संपन्न विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की बैठक में भारत के रुख का मजाक बनाते हुए पश्चिमी आर्थिक मीडिया में कुछ आलोचनात्मक लेख लिखे गए हैं। जब इस तरह आपके देश का मजाक बनाया जाता है तो बड़ी तकलीफ होती है। लेकिन सच कहा जाए तो यह उपहास का पात्र है क्योंकि भारत सरकार को 1960 से नहीं पता कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार क्या है।
मैंने 1980 में भारतीय व्यापार नीति का अध्ययन शुरू किया। इसके लिए मुझे अब बंद हो चुकी उस पत्रिका के संपादक ने कहा था, जिसके लिए मैं काम करता था।
वर्ष 1987 में इक्रियर ने मुझे गैट समझौते में सेवाओं को शामिल करने पर एक शोध पत्र लिखने को कहा। इसके नतीजतन 1988 में आए पत्र का सार था कि भारत का भविष्य तकनीक आधारित, बिना व्यक्तिगत मौजूदगी वाली सेवाओं में है। हालांकि यह पत्र कभी प्रकाशित नहीं हुआ क्योंकि इसकी 'शैली काफी अधिक पत्रकारिता' वाली थी।
वर्ष 1989 में इकनॉमिक टाइम्स के संपादक मनु श्रॉफ ने मुझे व्यापार नीति पर ध्यान देने को कहा। श्रॉफ खुद एक व्यापार अर्थशास्त्री और शानदार अर्थशास्त्री थे। इस तरह मैं डंकेल प्रारूप पर एक विशेषज्ञ बन गया। यही डंकेल प्रारूप उस उरुग्वे दौर की बातचीत का आधार बना, जिसमें डब्ल्यूटीओ का गठन हुआ। निस्संदेह भारत ने 1983 में उस दिन तक इसका विरोध किया, जब इसने अपने तहत आने वाली सेवाओं का समर्थन शुरू कर दिया।
1990 के दशक में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अशोक देसाई अमूमन कहा करते थे कि भारत में न व्यापार है और न ही नीति। उनका यह कहना बिल्कुल सही था। देसाई बाद में इस समाचार पत्र में सहकर्मी भी बने। अब सबसे अजीब चीज यह है कि उस समय के बाद सभी तरह के उदारीकरण हो चुके हैं, लेकिन भारत में अब भी उचित व्यापार नीति नहीं है। हम अब भी ‘खाली स्थान को भरने’ की पुरानी परिपाटी पर ही चल रहे हैं।
मेरा मानना है कि इसके तीन कारण है, जिनका एक-दूसरे से सीधा संबंध है। पहला कारण यह है कि देश में कोई स्थायी व्यापार अफसरशाही नहीं अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है है, जो व्यापार मुद्दों को लेकर ठीक से प्रशिक्षित हो। इस वजह से नीति काफी हद तक उन अफसरशाहों द्वारा बनाई जाती है, जो इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं। इन अफसरशाहों की जगह स्थायी नहीं होती है। उनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण होता रहता है।
दूसरा कारण यह है कि उद्योग और व्यापार के लिए आम तौर पर एक ही मंत्री होता है, लेकिन व्यापार नीति को कभी ठीक ढंग से औद्योगिक नीति के साथ नहीं जोड़ा गया। न ही ऐसा करने के अभी तक कोई गंभीर प्रयास किए गए। सेज महज स्थान की नीति थी।
यह खामी चौंकाने वाली है क्योंकि वर्ष 1947 में जब भारत में तुलनात्मक रूप अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है से मुक्त व्यापार व्यवस्था थी, उस समय इसका निर्यात अधिशेष था और वैश्विक व्यापार में 2.3 फीसदी बाजार हिस्सेदारी थी। 1950 के दशक में कुछ ऐसा हुआ कि यह आत्मनिर्भरता के ज्यादा नजदीक आ गया।
इसके बाद के वर्षों में हमें कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ा है, जिनकी जड़ें उपर्युक्त वजहों में निहित हैं। हर संकट ने डर बढ़ाया है। हर संकट ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है इन कमजोरियों को मजबूत किया है।
एक प्रमुख कारोबारी राष्ट्र बनने में भारत की विफलता की वजह से अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में इसके साथ अड़ंगा डालने वाले देश के रूप में बरताव किया जाता है। कम से कम इन वार्ताओं में इसके प्रयास बहुत कमजोर रहे हैं।
लेकिन इन समस्याओं को अगले दशक या मोदी के तीसरे कार्यकाल में दुरुस्त किया जा सकता है। मोदी के तीसरे कार्यकाल के अभी काफी प्रबल आसार नजर आ रहे हैं। पहला कदम, जिसकी कमी 1955 से ही खल रही है, वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार और समीकरणों की बारीकियों को राजनीतिक प्राथमिकता देना है। भारत में यह सबसे मुश्किल काम है। ऐसे में इस पर तुरंत काम शुरू किया जाना चाहिए।
दूसरा कदम वाणिज्यिक मंत्रालय के पुनर्गठन द्वारा स्थायी व्यापार अफसरशाही का गठन करना है। इस समय हमारे पास जो है, वह एक भद्दे मजाक से भी बदतर है।
तीसरा कदम रुपये को कमजोर होने दिया जाए और मुद्रा से छेड़छाड़ की अमेरिकी वॉचलिस्ट पर कभी ध्यान न दें। प्रत्येक तार्किक आकलन दर्शाता है कि यह करीब 88 प्रति डॉलर होना चाहिए।
1950 के दशक के मध्य से असल में भारत व्यापार को लेकर भयभीत रहा है। यह ज्यादा व्यापार की तुलना में कम व्यापार को तरजीह देता है, लेकिन कहता इससे उलट है। भाजपा को यह भय दूर करना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला 2023
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला का आयोजन प्रत्येक वर्ष प्रगति मैदान पर किया जाता है जो कि भैरों रोड़, नई दिल्ली पर स्थित है। आईआईटीएफ ( प्दकपं प्दजमतदंजपवदंस ज्तंकम थ्ंपत ) दुनिया में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है व्यापार मेलों मे से एक है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों को आकर्षित करता है। इस मेले का आयोजन प्रत्येक वर्ष 14 दिनों तथा 14 नवंबर से 27 नवंबर तक किया जाता है। शुरू के कुछ दिन व्यापारियों के लिए तथा बाकि दिनों के लिए आम लोगों के लिए खुला होता है। इस मेले में भारत के सभी राज्य हिस्सा लेते है और अपने अपने राज्यों की प्रगति, संस्कृति, पर्यटक स्थल और व्यापार के बारें में जानकारी देते है।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला का पहला आयोजन 1980 में किया गया था। भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला निर्माताओं, व्यापारियों, निर्यातको और आयातकों के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है। एक मेले का आयोजन प्रगति मैदान में किया जाता है जोकि बड़ी प्रदर्शनियों और सम्मेलनों के लिए एक स्थल है जोकि 72,000 वर्ग तक फैला हुआ है। इस मेले का आयोजन भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन, वाण्ज्यि एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार की व्यापार संवर्धन एजंेसी द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
प्रगति मैदान में कई पवेलियन है जैसे नेहरू पवेलियन, डिफेंस पवेलियन, इंदिरा पवेलियन और सन आफ इंडिया पवेलियन। प्रगति मैदान में एक सिनेमा हाल भी है जिसका नाम शांकुतलम है। प्रगति मैदान में 18 से प्रदर्शनियें हाॅल है।
International Trade Settlement in Rupee: रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनुमति देना अहम फैसला, दुनिया में बढ़ेगी भारतीय करेंसी की साख
International Trade Settlement in Rupee रुपये की लगातार गिरती कीमत और बढ़ते व्यापार घाटे के दबाव के बीच आरबीआइ के इस फैसले का दूरगामी महत्व है। इससे एक अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में रुपये की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा हाल ही में आयात-निर्यात का सेटलमेंट रुपये में करने की अनुमति देना (International Trade Settlement अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है in Rupee) एक सामयिक और दूरगामी महत्व का फैसला है। विशेषज्ञों के अनुसार, मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 11 जुलाई, 2022 को आरबीआइ ने बैंकों से रुपये में निर्यात-आयात के भुगतान के लिए अतिरिक्त व्यवस्था करने के लिए कहा था। आरबीआइ के इस फैसले का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देने के साथ घरेलू मुद्रा में वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहन करना है। यह बात आरबीआइ के पूर्व कार्यकारी निदेशक जी पद्मनाभन ने कही है।
बढ़ेगी रुपये की साख
आईएमसी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आरबीआइ द्वारा रुपये में भुगतान की अनुमति देना निश्चित रूप से एक कदम आगे का फैसला है। उधर डीबीएस बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री और कार्यकारी निदेशक राधिका राव ने कहा कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निपटान मुद्रा के रूप में रुपये की भूमिका को स्थापित करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, "यह रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में एक बहुत ही सामयिक और मजबूत कदम है।" राव ने हालांकि यह भी कहा कि इस घोषणा को रुपये को मजबूत बनाने के उपाय के रूप में नहीं देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह फैसला एक निश्चित दिशा में घरेलू अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है मुद्रा को आगे बढ़ाने के बजाय रुपये के उपयोग का विस्तार करने के बारे में है।
कैसे काम करेगी ये व्यवस्था
आरबीआइ द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया है कि रुपया चालान प्रणाली को लागू करने से पहले अधिकृत डीलर (एडी) बैंकों को आरबीआइ के विदेशी मुद्रा विभाग से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी। किसी भागीदार देश का बैंक एक विशेष आईएनआर वोस्ट्रो खाता खोलने के लिए भारत में किसी एडी बैंक से संपर्क कर सकता है। एडी बैंक, रिजर्व बैंक से अनुमति मांगेगा। पद्मनाभन ने कहा कि इस अनुमोदन प्रक्रिया के साथ केंद्रीय बैंक इस बात पर नजर रखना चाहता है कि वास्तव में ये खाते आयात-निर्यात को रुपये में सेटल करने के लिए खोले जा रहे हैं या नहीं। खाता कौन खोल रहा है? कौन सा देश खाता खोल रहा है? किस तरह के लेन-देन हो रहे हैं? शुरुआत में आरबीआइ इन सभी चीजों पर नजर रखना चाहेगा।