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क्रिप्टो जोखिम

क्रिप्टो जोखिम

क्रिप्टो पर प्रतिबंध उचित होगा या अनुचित?

क्रिप्टोकरेंसी या क्रिप्टो-परिसंपत्तियां नियामकीय नीति के लिए भले ही दु:स्वप्र हों लेकिन एक स्तंभकार के लिए वे प्रसन्नता का विषय हैं। हाल के दिनों में इस क्रिप्टो जोखिम विषय पर अनेक लेख प्रकाशित हुए हैं। बहरहाल, यह विषय महत्त्वपूर्ण है।

क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की बात करें तो इन्हें एक समान रूप से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है और एक टोकन उदाहरण के लिए बिटकॉइन के गुण और उपयोगिता एक्सआरपी जैसे किसी अन्य टोकन से एकदम अलग हो सकते हैं। गुणों में यह विविधता इनके वर्गीकरण को लेकर भ्रम उत्पन्न करती है। इसके कुछ गुण प्रतिभूतियों के समान हैं तो कई क्रिप्टो जोखिम उससे मेल नहीं खाते।

इसकी बुनियाद भले ही विनिमय के माध्यम के रूप में सरकारी मुद्रा का बेहतर प्रतिस्थापन हो लेकिन भारत में एक परिसंपत्ति के रूप में क्रिप्टो की कीमत के संदर्भ में कठिन नीतिगत और नियामकीय सवाल भंडारण मूल्य के रूप में उठ रहे हैं। इन पर प्रतिबंध की मांग करने वालों की दलील यह है कि ये डिजिटल परिसंपत्तियां हैं जिनका कोई मूल्य नहीं है, इनका कारोबार अटकलबाजी पर क्रिप्टो जोखिम केंद्रित है और इसलिए ये खुदरा निवेशकों के लिए अप्रत्याशित रूप से अस्थिर परिसंपत्तियां हैं। बहरहाल, खूबसूरती की तरह इसका मूल्य भी धारण करने वाले की आंखों में होता है। यदि दो करोड़ भारतीयों (ज्यादातर युवा) ने यह परिसंपत्ति रखी है तो आर्थिक स्वतंत्रता की इस अभिव्यक्ति की इज्जत करनी चाहिए और इस पर प्रतिबंध की दलील सावधानीपूर्वक सामने रखी जाए। देश में बीते कई दशक में वित्तीय क्षेत्र के नियमन में ऐसे विध्वंसकारी नवाचार के समय एक खास तरह का रुख देखने को मिला है। समाजवाद के उभार के समय आमतौर पर यही रुख था कि उन परिसंपत्तियों को प्रतिबंधित कर दिया जाए जो सामाजिक रूप से वांछित नहीं थीं। उदाहरण के लिए वायदा अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1952 स्पष्ट रूप से 'एक ऐसा अधिनियम था जो वस्तु कारोबार में विकल्पों पर रोक लगाने के लिए था' जिसे सितंबर 2015 में खत्म कर दिया गया। हालांकि जोखिम प्रबंधन के विशेषज्ञ हमें बताते हैं कि वस्तुओं के मामले में विकल्प एक अहम आर्थिक उद्देश्य पूरा करते हैं और आखिरकार जनवरी 2020 में देश में वस्तुओं में विकल्प कारोबार की इजाजत दी गई।

उदारीकरण के बाद भारत ने सीधे प्रतिबंधों से दूरी बना ली। उदाहरण के लिए सन 1998 की डेरिवेटिव से संबंधित विशेषज्ञ समिति ने अनुशंसा की थी कि इस बाजार को नियंत्रित तरीके से खोला जाए और कुछ डेरिवेटिव मसलन व्यक्तिगत वायदा शेयरों पर रोक लगाई जाए। चार वर्ष बाद जब नियामक अन्य देशों के बाजारों के उदाहरण से यह सुनिश्चित हो गया कि इस 'नवाचार' से कोई नुकसान नहीं है तो इसकी इजाजत दे दी गई। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का शेयर वायदा बाजार अब रोजाना 85,000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है।

वित्तीय क्षेत्र में ऐसे 'नवाचार' को लेकर प्रतिबंधात्मक नियंत्रण अक्सर उचित होता है क्योंकि निवेशकों के संरक्षण को प्राथमिकता देना उचित माना जाता है। यह ठीक है लेकिन नियामकों को इसे स्वचालित रास्ता नहीं बना लेना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इससे नवाचारों का दम घुट सकता है और इससे तमाम अवसर गंवाए जा सकते हैं। यह याद करना उचित होगा कि आज जो फिनटेक उत्पाद वित्तीय समावेशन और वित्तीय सेवाओं की आपूर्ति में मददगार हैं उन्हें एक समय इस काबिल नहीं माना जाता था। उस समय इन पर भी प्रतिबंध की मांग होती थी जिन्हें खुशकिस्मती से स्वीकार नहीं किया गया। यह भी याद रखना उचित होगा कि फिनटेक की तरह क्रिप्टो-परिसंपत्तियों और आईटी सेवाओं के बीच भी गहरा संबंध है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम आरबीआई के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जो कहा वह नियामकों और कानून निर्माताओं को याद दिलाता है कि किसी पेशे, क्रिप्टो जोखिम व्यापार या कारोबार को प्रतिबंधित करने वाले कदम के पीछे उचित कारण होने चाहिए और वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के अनुरूप हो। दूसरे शब्दों में जब तक प्रतिबंध का कोई बड़ा कारण न हो तब तक न्यायिक निगरानी कठिन होगी। साबित करने का बोझ सरकार पर होता है। उसे ही यह दिखाना होता है कि जनता का बड़ा हिस्सा इन परिसंपत्तियों पर रोक चाहता है। यदि प्रतिबंध के बजाय नियमन के साथ आगे बढ़ा जाता है तो उन कारणों को समझना आवश्यक होगा कि आखिर क्यों भारतीय नियामकों ने इस तेजी से उभरते परिसंपत्ति वर्ग को तत्काल नियमित नहीं किया तथा ऐसे क्रिप्टो जोखिम विधान क्यों नहीं बनाए गए कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। जब हम क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की बात करते हैं तो न तो आरबीआई और न ही भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को इनसे निपटने के लिए सशक्त बनाया गया है।

शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए मार्च में वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग ने 2013 में कहा था कि मौजूदा व्यवस्था में खामियां हैं जहां किसी नियामक के पास प्रभार नहीं है। उसने यह भी कहा था, 'बीते वर्षों के दौरान ये समस्याएं तकनीकी और वित्तीय नवाचारों से और बिगड़ जाएंगी।' इस आधार पर तथा अन्य बातों पर विचार करते हुए रिपोर्ट में अनुशंसा की गई कि एक एकीकृत वित्तीय एजेंसी बनाई जाए जो उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू करे तथा बैंकिंग और भुगतान से इतर सभी वित्तीय फर्म के लिए माइक्रो प्रूडेंशियल कानून बनने चाहिए। अब वक्त आ गया है कि हम सभी एकीकृत वित्तीय नियामक ढांचे पर विचार करें ताकि हमें भविष्य में समस्या न हो। लब्बोलुआब यह है कि आमतौर पर नवाचार तभी होता है जब कानूनी प्रक्रिया में कुछ छूट ली जाती है। अक्सर नियामकीय ढांचे को नियमन का तरीका तलाश करना होता है। क्रिप्टो-परिसंपत्तियों की विशेषताओं को देखते हुए नियामकों को इन परिसंपत्तियों के तकनीकी और आर्थिक पहलुओं को देखते हुए परिसंपत्ति तैयार करनी होगी। जब ऐसी परिसंपत्तियों का नियमन होता है तो सुरक्षित निवेशक और उपभोक्ता इस बात पर निर्भर होंगे कि नियामक को परिसंपत्तियों की कितनी समझ रखता है। बुनियादी तौर पर क्रिप्टो-परिसंपत्ति के मामले में उपभोक्ताओं के लिए बाजार विफलता के जोखिम वैसे ही हैं जैसे कि अन्य वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के मामले में। ये हैं साइबर सुरक्षा भंग होना, बचत का गंवाना, अनुचित व्यवहार आदि।

बहरहाल, क्रिप्टो-परिसंपत्ति प्रबंधन की विकेंद्रीकृत व्यवस्था बाजार विफलता के विशिष्ट बिंदु उत्पन्न कर सकती है। इस गतिविधि को समझने और इसकी निगरानी करने के लिए नियामकीय क्षमता विकसित करना अहम है। ऐसा करके ही ग्राहकों का संरक्षण किया जा सकता है क्रिप्टो जोखिम तथा नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

क्रिप्टो पर सरकार की मंशा साफ, वित्त सचिव ने कहा-भारत में क्रिप्टो को नहीं मिलेगा लीगल करेंसी का दर्जा

संसद का शीतकालिन सत्र शुरु होने से पहले केंद्र सरकार ने क्रिप्टो बिल को लेकर अपनी मंशा साफ कर दी है. वित्त सचिव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि क्रिप्टो को लीगल करेंसी का दर्जा नहीं मिलेगा.

वित्त सचिव टीवी सोमनाथन

संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से क्रिप्टो जोखिम शुरु होने वाला है. इसमें सरकार क्रिप्टोकरेंसी के नियमन वाला बिल 'द क्रिप्टोकरेंसी एंड रेगुलेशन ऑफ ऑफिशियल डिजिटल करेंसी बिल- 2021' लेकर आ रही है. बिल के पेश होने से पहले इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. वहीं, सरकार क्रिप्टो को पूरी तरह से लीगल करने के मूड में नजर नहीं आ रही है. वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने गुरुवार को कहा कि देश में किसी भी स्थिति में क्रिप्टोकरेंसी को लीगल टेंडर नहीं किया जाएगा. जिससे साफ है कि लेनदेन में इस करेंसी का इस्तेमाल पूरी तरह से बैन रहेगा.

बता दें कि संसद में क्रिप्टो बिल के जरिए ये क्रिप्टो जोखिम सुनिश्चित करेगी कि निवेशक क्रिप्टोकरेंसी से सुरक्षित दूरी बनाएं. निवेशकों के ऐसा नहीं करने से इसका पूरा जोखिम उन्हें खुद भुगतना होगा. वित्त सचिव ने अनुसार, संसद में क्रिप्टो बिल पेश करने से पहले काफी स्टडी की जा रही है. हालांकि उन्होंने साफ तौर पर कहा कि क्रिप्टोकरेंसी को किसी भी तरह से लीगल टेंडर नहीं होगी. देश में सोना भी लीगल टेंडर नहीं है न ही चांदी या शराब को लीगल टेंडर माना गया है. उन्होंने आगे कहा कि इससे ज्यादा वे अभी कुछ कहने की स्थित में नहीं हैं. फिलहाल बिल का मसौदा तैयार किया जा रहा है. उन्होंने इशारों में कहा कि नए बिल में प्रतिबंधित जैसे शब्द को हटा दिया गया है.

वहीं, आपको बता दें कि क्रिप्टो पर बरकरार सारी शंकाओं का समाधान संसद में बिल पेश होने के बाद ही होगा. देश में अधिकृत रूप से इस पर सरकार क्या राय रखती है ये बिल पेश होने के बाद ही पत्ता चल पाएगा. अभी की स्थिति को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि सरकार चाहती है कि आरबीआइ अपनी क्रिप्टोकरेंसी जारी करे और भारत में मौजूद जितने भी निजी क्रिप्टोकरेंसी हैं उन पर बैन लगे. संभावना ये भी कि है कि शायद सरकार मुख्य रूप से चलने वाले क्रिप्टो को कुछ शर्तों के साथ मान्यता दे दे. लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट और दावों के साथ नहीं कहा जा सकता है.

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क्रिप्टो बनाम सोना: अंतर, कैसे चुनना है, किसे चुनना है

क्रिप्टो बनाम सोना: बेहतर विकल्प कौन है

नए वैश्विक निवेश साधन क्रिप्टो के प्रति भारतीय निवेशकों की भी रुचि बढ़ी है। बिटकॉइन, इथीरियम, टीथर और यहां तक कि मेम-आधारित डॉगकोइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी ने कम समय में ही चौंकाने वाला रिटर्न दिया है। दूसरी तरफ 2020 की महामारी के दौरान उच्चतम स्तर बनाने वाले सोने के रिटर्न में गिरावट आई है।

जो लोग वैकल्पिक निवेश विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, उनके लिए सोना और क्रिप्टो में से किसी एक को चुनना सचमुच मुश्किल है! तो दोनों एक दूसरे से अलग कैसे हैं?

बिटकॉइन जैसी स्थापित क्रिप्टोकरेंसी और सोना दोनों ही किसी के निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने और पारंपरिक परिसंपत्ति वर्गों के खिलाफ बचाव के रूप में प्रभावी तरीके हैं। हालांकि, कुछ समय पहले तक निवेश पेशेवरों और अनुभवी निवेशकों ने दोनों के बीच गंभीर तुलना नहीं की थी।

सोना हजारों वर्षों से विनिमय का माध्यम रहा है और हर तरह की आर्थिक पृष्ठभूमि और भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों के बीच इसकी स्वीकार्यता बेजोड़ है। दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी केवल नए जमाने के डिजिटल निवेशकों के लिए सुलभ है और इसे विशेषाधिकार प्राप्त उपकरण के रूप में माना जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि क्रिप्टो संपत्ति कभी भी उसी तरह की सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सकती है जैसा सोने के मामले में है।

सोने के पक्ष में एक और तर्क यह है कि केंद्रीय बैंक और अन्य सरकारी और वित्तीय संस्थान संपत्ति का बड़ा भंडार रखते हैं और इसका समर्थन करते हैं। दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी अभी भी भारत में वैधता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है। गुमनामी और विकेन्द्रीकृत लेनदेन प्रक्रिया सरकार के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठा पा रही है। क्रिप्टो क्या निवेश साधन के रूप में नाकाम होगी या स्थायी संपत्ति के रूप में स्वीकार्य होगी, ये देखा जाना बाकी है।

हालांकि कई प्रगतिशील अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां जैसे टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, होम डिपो, पेपाल, ट्विच और स्क्वायर समेत कई कंपनियां क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान स्वीकार कर रही हैं। वैश्विक वित्तीय दिग्गज फिडेलिटी ने हाल ही में बिटकॉइन की कस्टोडियनशिप ली है। ब्लॉकचेन लेज़र की सुरक्षा, तरलता और लेन-देन में आसानी क्रिप्टोकरेंसी को सोने की तुलना में बहुत अधिक गतिशील बनाती है।

क्या आपके पोर्टफोलियो में सोना या क्रिप्टो होनी चाहिए?

हां, लेकिन दोनों से किसे चुनना है, इस पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है। सोना और क्रिप्टोकरेंसी दोनों ही विविधीकरण का काम कर सकते हैं। हालांकि दोनों आपके पोर्टफोलियो में अलग भूमिका निभाएंगे। यदि वैकल्पिक परिसंपत्तियों के लिए आपका आवंटन पोर्टफोलियो का 5% -10% है, तो आप एक्सपोजर को दोनों के बीच समान रूप से विभाजित करने पर विचार कर सकते हैं।

पिछले 50 वर्षों में सोने ने लगातार 8% के करीब रिटर्न दिया है। यह मुद्रास्फीति का मुकाबला करने में मदद करता है। सोने के मामले में अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक मूल्य-स्थिर संपत्ति है। क्रिप्टोकरेंसी ने पिछले 10 वर्षों में हर दूसरे परिसंपत्ति वर्ग से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन यह बहुत अस्थिर है। अस्थिरता और जोखिम का मुकाबला करने के लिए, निवेश प्लेटफार्मों द्वारा या म्युचुअल फंड के माध्यम से पेश किए गए एसआईपी के माध्यम से 3-5 शीर्ष क्रिप्टो संपत्तियों की एक टोकरी में निवेश कर सकते हैं।

अपनी पसंद के बावजूद, जल्दी अमीर बनने की उम्मीद मत कीजिए। इसके बजाय, परिसंपत्ति आवंटन बनाए रखें और लंबी अवधि में संपत्ति निर्माण पर फोकस करें। क्रिप्टोकरेंसी में कारोबार करने की योजना बना रहे हैं? क्रिप्टो चार्ट पढ़ने का तरीका यहां दिया गया है

अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए है और इसे निवेश या कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में निर्णय लेते समय आपको अलग से स्वतंत्र सलाह लेनी चाहिए।.

नए वैश्विक निवेश साधन क्रिप्टो के प्रति भारतीय निवेशकों की भी रुचि बढ़ी है। बिटकॉइन, इथीरियम, टीथर और यहां तक कि मेम-आधारित डॉगकोइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी ने कम समय में ही चौंकाने वाला रिटर्न दिया है। दूसरी तरफ 2020 की महामारी के दौरान उच्चतम स्तर बनाने वाले सोने के रिटर्न में गिरावट आई है।

जो लोग वैकल्पिक निवेश विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, उनके लिए सोना और क्रिप्टो में से किसी एक को चुनना सचमुच मुश्किल है! तो दोनों एक दूसरे से अलग कैसे हैं?

बिटकॉइन जैसी स्थापित क्रिप्टोकरेंसी और सोना दोनों ही किसी के निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने और पारंपरिक परिसंपत्ति वर्गों के खिलाफ बचाव के रूप में प्रभावी तरीके हैं। हालांकि, कुछ समय पहले तक निवेश पेशेवरों और अनुभवी निवेशकों ने दोनों के बीच गंभीर तुलना नहीं की थी।

सोना हजारों वर्षों से विनिमय का माध्यम रहा है और हर तरह की आर्थिक पृष्ठभूमि और भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों के बीच इसकी स्वीकार्यता बेजोड़ है। दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी केवल नए जमाने के डिजिटल निवेशकों के लिए सुलभ है और इसे विशेषाधिकार प्राप्त उपकरण के रूप में माना जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि क्रिप्टो संपत्ति कभी भी उसी तरह की सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सकती है जैसा सोने के मामले में है।

सोने के पक्ष में एक और तर्क यह है कि केंद्रीय बैंक और अन्य सरकारी और वित्तीय संस्थान संपत्ति का बड़ा भंडार रखते हैं और इसका समर्थन करते हैं। क्रिप्टो जोखिम दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी अभी भी भारत में वैधता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है। गुमनामी और विकेन्द्रीकृत लेनदेन प्रक्रिया सरकार के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठा पा रही है। क्रिप्टो क्या निवेश क्रिप्टो जोखिम साधन के रूप में नाकाम होगी या स्थायी संपत्ति के रूप में स्वीकार्य होगी, ये देखा जाना बाकी है।

हालांकि कई प्रगतिशील अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां जैसे टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, होम डिपो, पेपाल, ट्विच और स्क्वायर समेत कई कंपनियां क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान स्वीकार कर रही हैं। वैश्विक वित्तीय दिग्गज फिडेलिटी ने हाल ही में बिटकॉइन की कस्टोडियनशिप ली है। ब्लॉकचेन लेज़र की सुरक्षा, तरलता और लेन-देन में आसानी क्रिप्टोकरेंसी को सोने की तुलना में बहुत अधिक गतिशील बनाती है।

क्या आपके पोर्टफोलियो में सोना या क्रिप्टो होनी चाहिए?

हां, लेकिन दोनों से किसे चुनना है, इस पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है। सोना और क्रिप्टोकरेंसी दोनों ही विविधीकरण का काम कर सकते हैं। हालांकि दोनों आपके पोर्टफोलियो में अलग भूमिका निभाएंगे। यदि वैकल्पिक परिसंपत्तियों के लिए आपका आवंटन पोर्टफोलियो का 5% -10% है, तो आप एक्सपोजर को दोनों के बीच समान रूप से विभाजित करने पर विचार कर सकते हैं।

पिछले 50 वर्षों में सोने ने लगातार 8% के करीब रिटर्न दिया है। यह मुद्रास्फीति का मुकाबला करने में मदद करता है। सोने के मामले में अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक मूल्य-स्थिर संपत्ति है। क्रिप्टोकरेंसी ने पिछले 10 वर्षों में हर दूसरे परिसंपत्ति वर्ग से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन यह बहुत अस्थिर है। अस्थिरता और जोखिम का मुकाबला करने के लिए, निवेश प्लेटफार्मों द्वारा या म्युचुअल फंड के माध्यम से पेश किए गए एसआईपी के माध्यम से 3-5 शीर्ष क्रिप्टो संपत्तियों की एक टोकरी में निवेश कर सकते हैं।

अपनी पसंद के बावजूद, जल्दी अमीर बनने की उम्मीद मत कीजिए। इसके बजाय, परिसंपत्ति आवंटन बनाए रखें और लंबी अवधि में संपत्ति निर्माण पर फोकस करें। क्रिप्टोकरेंसी में कारोबार करने की योजना बना रहे हैं? क्रिप्टो चार्ट पढ़ने का तरीका यहां दिया गया है

अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए है और इसे निवेश या कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में निर्णय लेते समय आपको अलग से स्वतंत्र सलाह लेनी चाहिए।.

Cryptocurrency: निवेश करने से पहले जोखिम जान लें, क्रिप्टो के चक्कर में करोड़पति शख्स एक झटके में हो गया कंगाल

cryptocurrency

नई दिल्ली। आजकल लोग निवेश के लिए क्रिप्टोकरेंसी जैसे प्लेटफॉर्म का सहारा लेते हैं। क्योंकि लोगों क्रिप्टो जोखिम को लगता है कि अगर यहां पैसे लगा दिए जाएं तो वे जल्द ही अमीर हो जाएंगे। कई आर्टिकल में तो यह भी दावा किया जाता है कि क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाएं और करोड़पति बनें। लेकिन इसके इतर एक सच्चाई और है। दरअसल, एक बिटकॉइन ट्रेडर ने खुलासा किया है कि पासवर्ड चोरी हो जाने के बाद उसने लगभग 15 करोड़ मूल्य की क्रिप्टोकरेंसी गंवा दी। शख्स का कहना है कि अगर उसका पासवर्ड चोरी नहीं होता तो वह आज करोड़पति होता।

इसके कई जोखिम हैं

यह सच है कि क्रिप्टोकरेंसी भविष्य की मुद्रा है। लेकिन इसके कई जोखिम हैं। सबसे बड़ा जोखिम यही है कि यह एक डिजिटल मुद्रा है। हैकर इसे आसानी से गायब कर सकते हैं। जैसे रेडिट यूजर TomokoSlankard के साथ हुआ। उन्होंने अपने क्रिप्टो को लेकर एक डरावनी कहानी शेयर की है। उन्होंने लिखा कि पासवर्ड चोरी हो जाने के बाद मैंने लगभग 2 मिलियन डॉलर की क्रिप्टोकरेंसी गंवा दिया है।

हैकर ने चुरा लिया पासवर्ड

दरअसल, हैकर्स शख्स के उस सर्वर में घुस गए थे, जहां उनका पासवर्ड सेव था। उसने इन बिटकॉइन को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए इनक्रिप्टेड हार्ड ड्राइव में स्टोर किया था, लेकिन हैकर्स ने उसपर ही हमला कर दिया और पासवर्ड चोरी करके बिटकॉइन को वहां से उड़ा दिया। शख्स ने शुरूआत में 20 हजार डॉलर का निवेश किया था। उसकी मानें तो अगर पासवर्ड चोरी नहीं होता तो वह अब एक करोड़पति की जिंदगी गुजार रहा होता।

कई यूजर्स ने शेयर की अपनी कहानी

TomokoSlankard की पोस्ट पर और क्रिप्टो जोखिम भी कई यूजर्स ने ऐसी ही कहानी साझा की है। एक शख्स से जब पूछा गया कि उसने पासवर्ड कैसे खोया तो उसने कहा कि “बैकअप सर्वर हैक हो गया था।” गौरतलब है कि कई लोग ऐसे हैं जो इस डिजिटल करेंसी का समर्थन करते हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो इसकी अस्थिरता और असुरक्षित होने पर इसका विरोध करते हैं। लोग अपनी एक छोटी सी गलती के चलते अपनी मोटी रकम बिटकॉइन में गंवा बैठते हैं। ऐसे में अगर आप भी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करना चाहते हैं तो सबसे पहले इसके जोखिम को जानें, उसके बाद ही निवेश की योजना बनाएं, नहीं तो आप एक झटके में कंगाल हो जाएंगे।

कहीं आपके पास भी तो नहीं है फेक क्रिप्टो करेंसी, दुबई से हो रही है क्रिप्टो ट्रेडिंग

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इंदौर. अगर आप भी क्रिप्टो करेंसी ( crypto trading) में ट्रेडिंग कर रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है। क्रिप्टो ट्रेडिंग में बड़े मुनाफे की चाहत में लोग जमकर खरीदारी करने लगे हैं। बड़े मुनाफे के लालच में कभी-कभी रकम गवाने का जोखिम होता है और अब यही क्रिप्टो ट्रेडिंग में होने वगा है देश में क्रिप्टो ट्रेडिंग को लेकर लोग अवेयर नहीं हैं और जो प्लेटफॉर्म उनको दिखाया जाता है वह उसी को जेनुअन मान लेते हैं और बडा़ नुकसान कर बैठते हैं।

मध्य प्रदेश के इंदौर में एक अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग (International Trading) प्लेटफॉर्म पर क्रिप्टो ट्रेडिंग के लिए नकली सर्वर बनाकर करोड़ों का फ्रॉड का मामला सामने आया है, जिससे सैकड़ो लोगों से ठगी की गई है। पुलिस की छापेमारी में पता चला है कि कंपनी के एक्सिस बैंक अकाउंट से 20 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन हुआ है। कंपनी द्वारा ठगे गए 300 से ज्यादा लोगों पुलिस के पास पहुंचे है। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को भी हिरासत में लिया है।

इंदौर की विजय नगर थाना क्षेत्र में अपोलो प्रीमियर बिल्डिंग में प्लेटिनम ग्लोबल और बीएनबी नाम की कंपनियो के दफ्तर है। कंपनी ग्राहकों को रकम कई गुना बढ़ाने का लालच देती थी। इसके लिए बाकायदा कंपनी ने एक फर्जी सॉप्टवेयर भी तैयार किया था। ये कंपनी जल्द ही क्रिप्टो करेंसी की तर्ज पर क्वीन कॉइन लॉन्च करने वाली थी।

पुलिस की कार्रवाई में विदेशी मुद्रा व्यापार के नाम पर लोगों को ठग रही कंपनी के 4 बैंक अकाउंट का पता चला है। फॉरेन ट्रेडिंग कंपनी देश लोगों से डॉलर में निवेश कराती थी। कंपनी का जो सर्वर को विदेश से रिमोट ऑपरेट किया जा रहा था। पुलिस को सर्वर ऑपरेट करने वाले को ट्रेस कर रही है। पुलिस ने मौके से महालक्ष्मी नगर के रहने वाले अनिल और उसके साथी हरदीप सलुने को गिरफ्तार किया है।

क्रिप्टो करेंसी की तर्ज पर क्वीन कॉइन
डीसीपी संपत उपाध्याय ने कहा कि इस गैंग का सरगना अतुल बिष्ट क्वीन कॉइन को फर्जी सर्वर के जरिए पूरे देश में संचालित करना चाहता था। कार्रवाई के बाद पुलिस के पास बड़ी संख्या में ठगी का शिकार हुए लोग पहुंचने लगे हैं। कंपनी के तार दुबई से जुड़े बताए जा रेह हैं। दुबई में बैठकर अतुल बिष्ट और मोनिका ही इस कंपनी का संचालन करते हैं। पुलिस दोनों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर मौके से पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ शुरू कर दी बताया जा रहा है कि पूछताछ में और भी बड़े खुलासे हो सकते है।

पुलिस पड़ताल में पता चला है कि आरोपी अतुल बिष्ट कुछ समय पहले इंदौर आया था। उसने एक एडवाइजरी कंपनी इंदौर में शुरू की थी। अतुल ने शेयर मार्केट की तर्ज पर फर्जी सर्वर भी बनवाया जिससे ट्रेडिंग का पूरा बाजार अपने अनुसार दुबई से ऑपरेट करने लगा। जब लोग बड़ा निवेश कर देते तो उनकी प्रोफाइल डिलीट कर देता और पूरा पैसा अपने खाते में ट्रांसफर कर लेता था।

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